Book Title: Adhyatmasara
Author(s): Yashovijay Upadhyay, Bhadrankarvijay
Publisher: Bhuvan Bhadrankar Sahitya Prachar Kendra

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Page 12
________________ अध्यात्म सार: • आत्मशास्त्र सुराज्ये-स्वराज्ये वा सर्वोपद्रवाभावः. • यदि हदि, अध्यात्मशास्त्रार्थतत्त्वं निष्ठितं तदा रागादिक्लेशाभावः. • आत्मशास्त्रार्थज्ञानं विना निर्दयकामपीडितः पण्डितोऽपि भवेत् . मनो-वर्धमान तृष्णाऽध्यात्मशास्त्र-दात्रेण, परमर्षि-छेद्येच. ध्वान्ते तेजोवत्कलावध्यात्मशास्त्रं सुदुर्लभं धन्यैः प्राप्यत एव. अन्यशास्त्रवेत्ता क्लेशमनुभवति, अध्यात्मशास्त्री रसमनुभवत्येव. अध्यात्मशास्त्रज्ञास्तु निर्विकारनयनाः मन्तो वदन्ति. अध्यात्मशास्त्रहमाचलमथितागमसागराद् विबुधा गुणरत्नानि लभन्ते एव. कामे भोगपर्यन्तो रसः, सद्भक्ष्ये भोजनान्तो रसोऽध्यात्मशास्त्रसेवायामनन्तो रसः अध्यात्मग्रन्थमेषजाद विकारिणी दृष्टि निर्मलीभवत्येव. अध्यात्मवजितशास्त्रं पाण्डित्यहप्तानां संसारवृद्धय एव. अन्तिमप्रेरणा=अध्यात्मशास्त्रमेवाध्ययन-भावनाविषयीकर्तव्यं पुनः पुनः, तदर्थश्चानुष्ठेयः, योग्यस्य देयः कस्यचिदिति ॥ Jain Education Intema Far Private & Personal use only www.jainelibrary.org

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