Book Title: Adhyatma Aradhana
Author(s): Basant Bramhachari
Publisher: Taran Taran Sangh Bhopal

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Page 15
________________ "पूजा पूज्य समाचरेत्" * देवदर्शन * पप गुरू शाका पूजा सुद्ध दिस्टी च दिस्टंते, सार्धं न्यान मयं धुवं । सुद्ध तत्वं च आराध्यं, वंदना पूजा विधीयते ॥ शुद्ध निज स्वभाव की वेदिकाग्र थिर होके, ज्ञानी अनुभवते चिद्रूप निरग्रंथ है। यही परम धौत्य धाम शुद्धातम देव जो, सदा चतुष्टय मयी अनादि अनन्त है।। तीन लोक माँहि स्व समय शुद्ध है त्रिकाल, देह देवालय में ही रहता भगवन्त है। ज्ञानी अनुभूति करते निज सुद्धात्म की, यही देव दर्शन निश्चै तारण पंथ है। (श्री पंडित पूजा -पद्यानुवाद गाथा - २१) ब. बसंत चिदानंद चैतन्य स्वरूप शुद्ध स्वभाव को शुद्ध दृष्टि से देखना, अनुभव करना, ज्ञान मयी ध्रुव स्वभाव की साधना करना और शुद्ध तत्व की आराधना में रत रहना ही वंदना पूजा की वास्तविक विधि है। (श्री पंडित पूजा - २८) 26

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