Book Title: Adhyatma Aradhana
Author(s): Basant Bramhachari
Publisher: Taran Taran Sangh Bhopal

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Page 20
________________ ४.धर्म का स्वरूप जयमाल वीतराग जिन प्रभु का, यह सन्देश महान । चिदानन्द चैतन्य तुम, शाश्वत सिद्ध समान ||१|| द्वादशांग मय जिन वचन, श्रुत महान विस्तार। जीव जुदा पुदगल जुदा, जिनवाणी का सार ||शा करो सबुद्धि जागरण, सम्यक् मति श्रुत ज्ञान ।। निश्चय जिनवाणी कही, तारण तरण महान ||३|| जिनवाणी की वन्दना, करूं त्रियोग सम्हार । ब्रह्मानंद में लीन हो, हो जाऊं भव पार ||४|| करो साधना धौव्य की, बढ़े ज्ञान से ज्ञान । ज्ञान मयी पूजा यही, पाओ पद निर्वाण ||५|| चेतन अचेतन द्रव्य का, संयोग यह संसार है। निश्चय सु दृष्टि से निहारो, आत्मा अविकार है। रागादि से निर्लिप्त ध्रुव का, करो सत्श्रद्धान है। सत धर्म शुद्ध स्वभाव अपना, चेतना गुणवान है |॥१॥ आतम अनातम की परख ही, जगत में सत धर्म है। इस धर्म का आश्रय गहो, तब ही मिले शिव शर्म है। जिनवर प्रभु कहते सदा ही, भेदज्ञान महान है। सत धर्म शुद्ध स्वभाव अपना, चेतना गुणवान है ॥२॥ जितनी शुभाशुभ क्रियायें, सब हेतु हैं भव भ्रमण की। यह देशना है वीतरागी, गुरू तारण तरण की ॥ निज में रहो ध्रुव को गहो,धर लो निजातम ध्यान है। सत धर्म शुद्ध स्वभाव अपना, चेतना गुणवान है ||३|| चिन्मयीशुद्ध स्वभाव में,जो भविक जन लवलीन हों। वे अन्तरात्मा शुद्ध दृष्टि, सब दुखों से हीन हों। पल में स्वयं वे प्राप्त करते, ज्ञान मय निर्वाण हैं। सत धर्म शुद्ध स्वभाव अपना, चेतना गुणवान है ॥४॥ जिसमें ठहरता न कभी, शुभ अशुभ राग विकार है। वह भेद से भ्रम से परे, पर्याय के भी पार है ॥ जो है वही सो है वही, निज स्वानुभूति प्रमाण है। सत धर्म शुद्ध स्वभाव अपना, चेतना गुणवान है ।।५।। सब जगत कहता है, अहिंसा परम धर्म महान है। निश्चय अहिंसा का परंतु, किसी को न ज्ञान है ॥ वीतरागी जिनेन्द्र परमात्मा के द्वारा जो अर्थ रूप से उपदिष्ट है तथा गणधरों के द्वारा सूत्र रूप से गुंथित है। स्व पर का बोध कराने वाले ऐसे श्रुतज्ञान रूपी महान सिन्धु को मैं भक्ति पूर्वक प्रणाम करता हूँ। 35 36

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