Book Title: Adhyatma Aradhana
Author(s): Basant Bramhachari
Publisher: Taran Taran Sangh Bhopal

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Page 22
________________ * ॐशुद्धात्मने नमः * इस देह को "मैं" मानना, सबसे बड़ा यह पाप है। सब पाप इसके पुत्र हैं, सब पाप का यह बाप है। आत्मा ब्रिविधि प्रोक्तंच, परू अंतरू बहिरप्पयं। परिणामं जं च तिस्टंते, तस्यास्ति गुण संजुतं ॥ 0 जबतक आत्मा अपने परम पुरुषार्थ को निज बल से प्रकट कर अनादि कालीन कर्म निमित्त जन्य विभावों और विकल्पों से अपने को नहीं निकालता तब तक इस संसार रूपी गहन वन में नाना दुःखों की परम्परा को प्राप्त होता है। मोक्ष मार्ग में स्थित वे हैं जी सम्यग्दृष्टि भेद विज्ञानी हैं। जब आत्मा अपने चित्त में कोई विकल्प न करे, निर्विकल्प स्वानुभूति में लीन हो उस समय आत्माहीपरमात्मा है। आत्मा को तीन प्रकार का कहा गया है-परमात्मा, अंतरात्मा, बहिरात्मा जी आत्मा जिन परिणामों में रहता है उसको उन्हीं गुणों (भावी) से संयुक्त - परमात्मा, अंतरात्मा या बहिरात्मा कहा जाता है। (श्री तारण तरण श्नावकाचार - ४८) 39

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