Book Title: Adhyatma Aradhana
Author(s): Basant Bramhachari
Publisher: Taran Taran Sangh Bhopal

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Page 14
________________ (३)कारूण्य भावना संसार में जो जीव दु:ख से, त्रस्त साता हीन हैं। वे अशुभ कर्मोदय निमित से, दरिद्री अरू दीन हैं। ऐसे सकल जन दीन दुखियों, पर मुझे करूणा रहे। दु:ख मय कभी न हो निजातम, सत धरम शरणा गहे ॥५८।। ब्रम्हानन्द स्वरूप मय, वीतराग निज धर्म । धारण कर निज में रमूं, विनसें आठों कर्म ||४|| देव गुरू आगम धरम, ज्ञायक आतम राम । तीनों योग सम्हारि के,शत-शत करूं प्रणाम ||५|| (४)माध्यस्थ भावना जो जीव सत्पथ से विमुख हैं, धर्म नहिं पहिचानते। अज्ञान वश पूर्वाग्रही, एकान्त हठ को ठानते ॥ ऐसे कुमार्गी हठी जीवों, पर मुझे माध्यस्थ हो । मैं रखू समता भाव सब पर, स्वयं में आत्मस्थ हो ॥५९॥ अध्यात्म ही संसार के, क्लेशोदधि का तीर है। चलता रहूं इस मार्ग पर, मिट जायेगी भव पीर है। ज्ञानी बनूं ध्यानी बनूं अरू, शुद्ध संयम तप धरूं । व्यवहार निश्चय से समन्वित, मुक्ति पथ पर आचरूं।६०॥ जय तारण तरण देव (परमात्मा) - तारण तरण गुरू - तारण तरण धर्म (स्वभाव) - तारण तरण शुद्धात्मा - तारण तरण बोलो तारण तरण - जय तारण तरण दोहर मुझको दो मां आत्मबल, करूँ परम पुरूषार्थ । निज स्वभाव में लीन हो, पा जाऊं परमार्थ ||१|| शुद्ध षटावश्यक विधि, पूजा भाव प्रधान । कीनी है शुभ भाव से, चाहूँ निज कल्याण ॥२॥ आवश्यक षट् कर्म जो, शुद्ध कहे गुरू तार । इनका मैं पालन करूं, हो जाऊं भव पार ॥३॥ अध्यात्म अध्यात्म का अर्थ है - अपने आत्म स्वरूप को जानना । अध्यात्म एक विज्ञान है, एक कला है, एक दर्शन है, अध्यात्म मानव के जीवन में जीने की कला के मूल रहस्य को उद्घाटित कर देता है। 23

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