Book Title: Acharanga Stram Part 05
Author(s): Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 6
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥७९१ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बुद्धिमान पुरुषो, ते तखने जाणनारा श्रुत चारित्र नामनो धर्म छे, तेनी पार पहोंचनारा छे, अर्थात् सम्यग् जाणनारा छे, ते पंडितो धर्म स्वरूपने जाणनारा प्रवज्याना अनुक्रमे संयम पाळीने जाणे के हवे मारा जीववाथी कंइ विशेष गुण नथी, एथी हवे मोक्षनो अवसर मळ्यो छे, एथी हुं क्या मरणे मरवा योग्य छु एम विचारीने शरीर धारण करवामाटे अन्न पान विगेरे शोधवारुप आरंभथी छुटे छे, (अहीं पांचमीनां अर्थमां चाथी विभक्ति छे) तथा कोइ प्रतिमां (कम्मुणाओ तिट्टई) पाठ छे, एटले आठ भेदवाळा कर्मथी पोते छुटे छे, (व्याकरणना नियम प्रमाणे वर्त्तमानना समीपमां वर्त्तमान माफक थाय छे) पा. ३-३- १३१ना नियम प्रमाणे भविष्यकाळना अर्थमां वर्त्तमान काळ छे, [२] अने ते अभ्युदत मरण माटे संलेखना करतो प्रधान भूत (श्रेष्ट भावे संलेखना करे ते बतावे छे. एटले कप ते संसार छे. तेनो आय ते कषायो छे. ते क्रोध विगेरे चार छे, तेने पातळा [ओछा] करतो थोडं खाय, ते बताये छे:-- ते पण वधारे प्रमाणमां नहि, ते बतावे छे, अल्पाहारी (थोडं खानारो) ते छठ अठम विगेरे संलेखनाना अनुक्रमे आवेला तपने करतो पारणामां पण अल्प खाय, अने अल्प आहार खावाथी क्रोधनो उद्भव थाय, तेनो उपशम करवो. ते बतावे छे तुच्छ | माणसथी पण तिरस्कारनां वचन सांभळे, तो पण सहन करे, अथवा रोग विगेरे पण बरोबर रीते सहन करे, ते प्रमाणे संलेखना करतो आहारने ओछा प्रमाणमां लेवाथी ते मुमुक्षु भिक्षु ग्लानता पामे, ते समये आहारनी अंत अवस्थाने स्वीकारे, एटले चार विकृष्ट विगेरे संलेखनाना क्रमनो तप छोडीने भोजन करे, अथवा ग्लानता पाम्याथी आहारनी समीपमां न जाय. ते आ प्रमाणेहमणां थोडा दिवस खाइ लडं, अने पछी बाकीनी संलेखनानो तप करीश एवीआहार खावानी भावनामां न जाय ॥३॥ वळी For Private and Personal Use Only सूत्रम् ।।७९१॥

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