Book Title: Acharanga Stram Part 05
Author(s): Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सुत्रम्
७१॥
राखे, आ भक्त प्रत्याख्यान मरणथी मोक्षमां जाय, अथवा देवलोकमां जाय. आचा०NIA
भक्त परिज्ञा कहीने हवे गित मरण अडवा श्लोकथी कहे छे. प्रकर्षथी ग्रहित माटे प्रकर्ष ग्रहिछे, अने ते प्रकर्षयी लोधाथी
प्रग्रहित तर छे. [अनेक, प्रत्यय लागबाथी] प्रग्रहित तरक छे. हवे इंगित मरण कहे छे कारण के आ भक्त प्रत्याख्यानना नियमथीज ॥७९५॥
चार आहरनुं प्रत्याख्यान छे तथा इंगित प्रदेशमा संथारानी जग्यामांन विहार लेवाथी विशिष्टतर घृति संहनन विगेरेथी युक्त हाय, तेज प्रकर्षथी ले हे,
प्र०-आ कोने होय छे ? द्रव्य (संयम जेने होय ते द्रविक छे, अने ते गीतार्थनेज छे, अने ते जघन्यथी पण नव पूर्वनें | 13 ज्ञान होय तेवाने छे. बीनाने नथी, अीं इंगित मरणमां पण संलेखनामां कहेल तृग संथारो विगेरे समज. (११)
आ अपर विधि छे ? ते कहे छे. आ उपर बतावेलो विधि भक्त परिज्ञाथी जुदो इंगित मरणनो विधि विशेष प्रकारे वीर वर्द्धमान स्वामीए सम्पक प्रकारे पाप्त कर्यो छे, आ बन्ने जोडे कहेबाथी अने प्रत्यक्ष समान कहेवाथी (इदं) 'आ' विशेषण मुक्यु छे, आ, इङ्गित मरणमां पण प्रत्रज्या विगेरेनो विधि कहेवो, संलेखना पूर्व माफक जाणवी, तेज प्रमाणे उपकरण विगेरे त्यजीने संथारानी |
जग्या बरोबर देखीने आलोचना करी पापथी पाछो हटीने पंच महा व्रत फरी उचरीने चार आहारर्नु प्रत्याख्यान करीने संथारामां * से, अहीं आटलं विशेष छे.
____ आत्माने छोडे एटले अंग संबन्धी वेपार विशेष प्रकारे त्यजे. त्रिविधि त्रिविधि ते त्रण मन वचन कायाथी करवु कराव 13/ अनुमोदवु विगेरे वधु आत्म वेपार शिवायन त्यागे. जरुर पडतां पासु फेरनवु पडे हालवु पडे अथवा पेशाब विगेरे करवो होय
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 ... 328