Book Title: Acharanga Stram Part 05 Author(s): Shilankacharya Publisher: Shravak Hiralal Hansraj View full book textPage 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ।।७९४ ।। 6*6* www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संपगाय जे पाणा, जेय उड्डूमहाचरा ॥ भुञ्जन्ति मंससोणियं न छणे न मज ॥ ९ ॥ पाणा देहं विहिंसन्ति, ठाणाओ नवि उब्भमे ॥ आसवेहिं विवितेहिं, तिप्पमाणोऽहियासए ॥१०॥ गन्थेहिं विवितेहिं, आउकालस्स पारए || पग्गहिय तरगं चेयं, दवियस्स वियाणओ ॥११॥ अयं से अवरे धम्मे, नायपुत्रेण साहिए ॥ आयवज्जं पडीयारं; विजहिजा तिहा तिहा ||१२|| संसर्पन करे, ते कीडी क्रोष्ट (शियाळ) विगेरे जे प्राणीओ छे, तथा उंचे उडनार गीध विगेरे छे, तथा बीलमां नीचे रहेनारा साप विगेरे छे, तथा सिंह वाघ विगेरे आवीने मांस भक्षण करे, तथा डांस मच्छर विगेरे लोही पीए, ते समये ते जीवाने आहार अ आवेला जाणीने अवंति सुकुमार माफक तेमने हणे नहीं. तेम रजोहरण विगेरेथी उडाडीने खावामां अंतराय न करे (९) विळी आवेलां प्राणीओ मारी कायाने हणशे, पण मारां ज्ञानदर्शन चारिवने नहीं हणे, तेम विचारी कायानो मोह छोडेल होवाथी तेने खातां अन्तरायना भयथी पोते न रोके, अने ते स्थानथी पोते भयना कारणे बीजे खसे नहि. प्र० – केवो बनीने ? उ०- प्राणातिपात विगेरे पांच आश्रवो अथवा विषय कषाय विगेरेथी दूर रहीने शुभ अध्यवसाय वाळो बनीने डांस मच्छर | विगेरेथी लोही पीवातो पण अमृत विगेरेथी सिंचन थवा माफक तेओनी करेली पीडाने पोते तथ्या छतां पण सहन करे; (१०) | वळी वाह्य अभ्यंतर ग्रंथ तथा शरीरना प्रेम विगेरेथी पोते दूर रही तथा अंग उपांग विगेरे जैन आगमथी आत्माने भावतो शुक्ल ध्यान ने धर्म ध्यानमां रक्त बनी मृत्यु कालनो पारगामी बने एटले ज्यां सुधी छेवटना श्वासोश्वास होय त्यां सुधी तेवी समाधि For Private and Personal Use Only सूत्रम् ।।७९४ ॥Page Navigation
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