Book Title: Acharanga Stram Part 05
Author(s): Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ७९८॥ 8| बेसे तेमां पण उत्तानक ( सीधो उंचे मोढुं राखीने ) मुवे अथवा पासुं फेरवे अथवा सीधो मुवे अथवा लगंडशायी सुवे जेम समाधि रहे तेम करे. (१६) बळीआचा० आसीणेऽणेलिसं मरणं, इन्दियाणि समीरए ॥ कोलावासं समासज्ज, वितहं पाउरे सए ॥१७॥ ॥७९८॥ जओ वजं समुपजे, न तत्थ अवलम्बए ॥ तउ उकसे अप्पाणं, फासे तत्थऽहियासए ॥१८॥ अयं चाययतरे सिया, जो एवमणुपालए ॥ सबगायनिरोहेऽवि, ठाणाओ नवि उब्भमे ॥१९॥ अयं से उत्तमे धम्मे, पुबहाणस्स पग्गहे ॥ अचिरं पडिलेहिता; विहरे चिट्ठ माहणे ॥२०॥ प्र-शु आश्रयीने ? उ०--अपूर्व आ मरण छे. अने ते सामान्य माणसने विचार पण दुर्लभ छे. -तेवो बनीने शुं करे? ते कहे छे. इन्द्रियोना इष्ट अनिष्ट पोताना विषयोथी रागद्वेष न करतां तेने समभावे मेरे कोलावास (घुणना कीडान स्थान ) अथवा उधइनो समुह चोंटेलो देखीने जे चीज होय अथवा तेमां नवी जीवात उत्पन्न न थाय तेवू 18 जोइने खुल्लु देखातुं पोलाण रहित पोताने टेको लेवा शोधे. (१७) | इंगित मरणने आश्रयी जे निषेध छे. ते कहे छे. आ अनुष्ठानथी अथवा टेका विगेरेथी वज्र माफक दूर रहे अर्थात् की-13 डाने यतुं दुःख साधुने वज्र लेप माफक त्यां दोष लागे माटे ते घुणवाळा लाकडानो टेको विगेरे ले नहीं, तथा उंची निची कायाने करता अथवा खराब वचनथी अथवा आर्तध्यान विगेरे मनना योगयी पोताना आत्माने दोष लागतो जाणीने तेनाथी दूर रहे अर्थात् For Private and Personal Use Only

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