Book Title: Acharanga Stram Part 05
Author(s): Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 11
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 2 2- सूत्रम् ७९६॥ 8/तो जातेज करे [बीजानी मदद न ले] वळी बधी रीते प्राणीनु रक्षण वारंवार करवु ते बतावे छे. आचा० - हरिएसु न निवजिज्जा, थंडिलं मुणियासए । विओसिज अणाहारो, पुट्ठो तत्थऽहियासए ॥१३॥ इंदिपहिं गिलायंतो, समियं आहरे मुणी ॥ तहावि से अगरिहे, अचले जे समाहिए ॥१४॥ अभिकमे पडिकमे, संकुचए पसारए ॥ काय साहारणहाए, इत्थं वावि अचेयणा ॥१६॥ परिक्कमे परिकिलन्ते, अदुवा चिट्ठ अहायए । ठाणे ण परिकिलन्ते, निसोइजाय अंतसो ॥१६॥ हरित ते द्रोना अकुरा विगेरेमां न मूर, पण निर्दोष जग्या जोइने मूर, तथा बाह्य अभ्यन्तर उपधि छोडीने अनाहारी बनीने 2 8 परिसहो तथा उपसर्गथी फरसायलो पण संथारामां बेठेलो रही सम्यक् प्रकारे सहन करे, (१३) वळी आहारना अभावे मुनि इन्द्रि| योथी ग्लान भाव पामे, तोपण आत्माने समाधिमा राखे एटले शमिनो भाव शमिता एटले समभावने धारण करी आर्तध्यान न करे. तथा जेम समाधान रहे तेम बेसे. एटले संकोचथी खेद पामे तो हाथ विगेरे लांबा करे. तेनाथी पण खेद पामे तो स्थिर चित्ते बेसे. अथवा मुकरर जग्यामां फरे. तेमां पण आ पोते छुट राखेली होबाथी निंदवा जोग नथी ते केवी छे, ते कहे छे. अचळ | प्र ते समाधिमां रहे ते इङ्गित प्रदेशमा पोतानी मेळे शरीर चलावे. पण खेदथी कंटाळी अभ्युदत्त मरणथी चलायमान न थाय. तेथी | ते अचळ छे. (शरीरथी हाले पण शुभ ध्यान चलायमान न थाय.) पोते धर्म ध्यान के शुकध्यानमां मन राखे. अने भावथी निश्चळ रहीने इगित प्रदेशमा संक्रमण विगेरे करे. (१४) ते वतावे छे. For Private and Personal Use Only

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