Book Title: Acharanga Stram Part 05
Author(s): Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥७९७॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रज्ञापकनी अपेक्षाएं संमुख ते अभिक्रमण छे. अर्थात् संथाराथी दूर जाय. तथा प्रतीप एटले पाछो संधारा तरफ आवे पोताना मुकरर भागमां जा आव करे तथा निम्पन्न अथवा निपत्र रहीने जेम समाधि रहे तेम भुजा विगेरेने संकोचे अथवा लांबा करे. म० - शा माटे ? उ० – ते बतावे छे. शरीरनी प्रकृतिना कोमळपणाना साधारण कारणथी करवुं पडे छे. अने कायने साधारणपणुं होवाथी पीडा थतां आयुना उपायना परिहार वडे पोतानो आयुनी स्थिति क्षय थवाथी मरण थाय. [शरीरनो तेवो स्वभाव होवाथी ते करवुं पडे छे. पण तेमने महा सत्त्रपणुं होवाथी शरीरनी पीडा थवाथी चित्तमां खोटो भाव थाय तेम न जाणवुं.] शंका- जेणे कायानो बधो व्यापार रोकेलो छे. ते सुका लाकडा माफक अचेतन पणे पडेलो होय. तेने पुन्यनो समूह घणो एकठो थयेलो छे. तो शा माटे कायाने हलावे ? उ०— तेवो नियम नथी, शुद्ध अध्यवसायथी यथाशक्ति भारवहन करवा छतां तेनी बरोबरज कर्म क्षय छे. अहीं वा अव्यय होवाथी जाणवुं के, पादपोपगमनमां अचेतन अक्रिय माफक इङ्गित मरणवाको सक्रिय होय. तो पण बन्ने समाजन छे. (बन्नेनी भावमां समानता छे. काया संबन्धि इङ्गित मरणमां सक्रिय छे। अने पादपोपगमनमां कायाने हलावत्रानी नथी. माटे अक्रिय छे. अथवा इंगित मरणमा अचेतन सुका लाकडा माफक सर्व क्रिया रहित जेम पादपोपगमनवाळो होय तेम पोते शक्ति होय तो निश्चळ रहे. (१५) तेषु सामर्थ्य न होय तो आ प्रमाणे करे. ते कहे छे. जो बेठे अथवा न बेठे. गात्र भंग थाय तो त्यांथी उठीने फरे ते समये सरळ गतिए नियमित भागमां आवजा करे अने थाकी जाय तो जेम समाधि रहे तेम बेसे अथवा उभो रहे. जो स्थानमां खेद पामे तो बेसे, अथवा पलांठी मारीने अथवा अडवी पलांठी मारीने अथवा उत्कुटुक आसने बेसे अने थाके तो सीधो For Private and Personal Use Only सूत्रम् ।।७९७ ।।

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