Book Title: Acharanga Stram Part 05 Author(s): Shilankacharya Publisher: Shravak Hiralal Hansraj View full book textPage 5
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् अनुष्टुप् छंद. आचा० अणुपुवेण विमोहाइं, जाई धोरा समासज ॥ वसुमन्तो, मइमन्तो, सवं नच्चा अणेलिसं ॥१॥ दुविहपि विइत्ता णं; बुद्धा धम्मस्स पारगा ॥ अणुपुत्वीइ सङ्खाए, आरंभाओ (य) तिउद्दई ॥२॥ H७९० I७९०॥ कसाए पयणू किच, अप्पाहारे तितिक्खए ॥ अहभिक्खू गिलाइज्जा, आहारस्सेव अन्तियं ॥३॥ जीवियं नाभिकंखिज्जा, मरणं नोवि पत्थए । दुहओऽवि न सजिज्जा, जीविए मरणे तहा ॥४॥ अनुक्रमे दीक्षा लीधी. हित शिक्षा मळी, मूत्रार्थ मेळवी स्थिर मति थया पछी एकाकी विहार विगेरे प्रतिमा स्वीकारी होय, I 18/ अथवा अनुपूर्वी ते चार वर्षनी संलेखना विधि जेमां चार बरस विकृष्ट तप विगेरे अनुक्रमे पूर्व तप बताव्यो छे ते जाणवू, त्यार-181 पछी मोह रहित ते जेमांथी के जेनाथी मोह दूर थयो, तेवाने भक्त परिज्ञा इंगित के पादपोपगमन अणसण अनुक्रमे करवानां छे, | तेमां धीर ते, क्षोभायमान न याय, तेवा वसु (संयम) वाला तथा मनन, ते मति होय उपादेय छोडवू लेवू ते संबन्धी विचार करनार मतिमंत छे, तथा सर्वे कृत्य अकृत्य जाणीने जे साधुने भक्त परिज्ञा विगेरे कोइ मरण उचित लागे तथा पोतानी धैर्यता संघ-15 यण विगेरे विचारी अद्वितीय (उत्तम) रीते जाणीने तेवा मरणे समाधिनुं पालन करे, (१) बे प्रकारनी अवस्था तथा तपनी बाह्य - अभ्यंतर अवस्थाने विचारी पालन करीने, अथवा मोक्षाधिकारमा वे प्रकारनुं मुकाबु छे, तेमां पण बाह्य ते शरीर उपकरण विगेरे तथा अभ्यंतर रागादि छे तेने हेयपणे जाणे अने त्यागीने आरंभथी दूर थाय एटले, ज्ञाननु फळ हेयने त्यागवानुं छे, कोण त्यागे ? For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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