Book Title: Abhidhan Rajendra Kosh Part 06
Author(s): Vijayrajendrasuri
Publisher: Rajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan
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________________ मउर 4 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 6 मंखावंत मउयहियय पु० (मृदुकहृदय) कुण्डलवरद्वीपरथकुण्डलपर्वतरथे रवनाग- निष्पन्ने संस्तारकाऽऽदौ च / त्रि० / आचा०२ श्रु०१ चू०२ अ०३ उ०। ख्यात नागकुमारे दी। मऊरचंदगागार त्रि० (मयूरचन्द्रकाऽऽकार) मयूरचन्द्रकसदृशे, 'मयूरमउर पुं० (मुकुल) "उतो मुकुलाऽऽदिष्वत्" ||6/1170 / / इति चन्द्रकाऽऽकारं, नीललोहितभासुरम् / प्रपश्यन्ति प्रर्द 'पाऽऽदेर्भण्डल प्राकृतसूत्रेणाऽदेरुकारस्याऽत्त्वम् / प्रा०१ पाद। कुड्मले, कलिकायाम. मन्दचक्षुषः।। 1 / / " षो०५ विक०। औ० / “कुंचल-कुंपल-कारय-छारय-कलिआ उ मउलं ति (88)" मऊरपिच्छ न० (मयूरपिच्छ) मयूरपुच्छे, “मोरपिच्छकयमुद्दयं कल्प०१ पाइ० ना०५४ गाथा। रा०। देहे, आत्मनि च / वाच० / अपामार्गे, दे० अधि०३ क्षण। ना०६ वर्ग 118 गाथा। मऊरसिहा स्त्री०(मयूरशिखा) मयूरस्येव शिखाऽस्याः। स्वनामख्याते मउल पु० न० (मुकुल) 'मउर' शब्दार्थे, प्रा०१ पाद। महौषधिभेद, ती०६ कल्प। मयूरचूडाऽऽदयोऽप्यत्र / वाच०। मउलि पुं० (मौली) स्त्री० मूलस्यादूरभवः इञ / चूडा, याम, किरीट. मऊह पु० (मयूख) माड् उख मयाऽऽदेशः / “न वा मयूख-लवण "अउः पौराऽऽदौ च" ||8/1162|| इति प्राकृतसूत्रेणीवारस्याऽ- चतुर्गुण-चतुर्थ-चतुर्दश-चतुरि-सुकुमार-कुतूहलोउरादेशः / प्रा०१ पाद। मौलिः शेखर इति। स्था०८ ठा० / मौलिमुकुट- दूखलो-लूखले" / / 8 / 1 / 171 / / इति प्राकृतसूत्रेणाऽऽदेः स्वरस्य विशेषः / उपा०२ अ01 मौलिः शिरोवेष्टनविशेषः / ध०२ अधि०। संयतके परेण सस्वरव्यञ्जनेन सह ओद्वा / प्रा०१ पाद। त्विषे, किरणे, शेषु च। अशोकवृक्षे, पुं०। भूमौ, स्त्री०।डीए / वाच० / शिखायाम, शोभाया च / वाच०। “असू रस्सी पाया, करा मकहा मउलि (ण) पु० (मुकुलिन) मुकुलं फणाविरहयोग्या शरीरावयवविशेषा-1 गभत्थिणो किरणा।” (73) पाइ० ना०४७ गाथा। ऽऽकृतिः, सा विधते यस्य स मुकुली। फणा, करणशक्तिविकले अहिभेदे, | मं अव्य० (मा) "एवं-परं-सम-ध्रुवं मा-मनाक् एम्व पर समाणु प्रज्ञा०१ पद। प्रश्न / किरीटे, “मउलो मउडो किरीडो य (251)" धूवु मं मणाउं" ||84418 // इति प्राकृतसूत्रेणापभ्रंशे मा इत्यस्य पाइ० ना०११५ गाथा। म इत्यादेशः। प्रा०४ पाद। निषेधे, वाच०। से किं तं मउलिणो? मउलिणो अणेगविहा पण्णत्ता। तं जहा- | मंकारअणुओग पुं० (मकारानुयोग) अनुस्वारोऽलाक्षणिको मकार दिव्वागा, गोणसा, कसाहीया, वइउला, चित्तलिणो, मंडलिणो, इत्यर्थः, तस्यानुयोगो मकारानुयोगः / शुद्धवागनुयोगभेदे, मकारानुयोगो मालिणो, अही, अहिसलागा, वासपडागा, जे यावण्णे यथा-"समणं वा महाणं व त्ति।" सूत्रे माशब्दो निषेधे। अथवा-"जेणामेव तहप्पगारा, सेत्तं मउलिणो / / रामण भगव महावीरे तेणामेवेति।" अत्र सूत्रे आगमिक एव. येनैवेत्यनेनैव एतेऽपिलोकतोऽवसेयाः / प्रज्ञा०१ पद। जी०। विवक्षितप्रतीतेः / स्था०१० ठा०। मउलिय त्रि० (मुकुलित) मुकुल-कुड्मलम्-कलिका संजाता अस्येति मंकुणहत्थि (ण) पुं० (मत्कुणहस्तिन) गण्डीपदजन्तुभेद, प्रज्ञा०१ पद / मुकुलितः / कलिकोपेते, रा० / आव० / जं० / मुकुलाऽऽकृतीकृते च। / मंख पुं० (मड्ख ) चित्रफलव्यग्रकरे भिक्षुकविशेषे, 2015 श० मताश्चिऔ० / “अजंलिमउलियहत्था / " आ० म०१ अ० / “संवेल्लिअं त्रफलकहस्ता भिक्षुका गौरीपुत्र इति प्रसिद्धाः। कल्प०१ अधि०५ क्षण। मउलिअं" पाइ० ना०१८२ गाथा। अनु० / ज्ञा० / प्रश्न०। जं०। रा०। औ०। आ० म०। आ० चू० / वृ०॥ मउली (देशी) हृदयरसोच्छलने, दे० ना०६ वर्ग 115 गाथा। स्था०। मङ्गः केदारको यः पीठमुपदर्य लोकमावर्जयति। पिं० अण्डे, मऊ (देशी) पर्वत, दे० ना०६ वर्ग 113 गाथा! दे० ना०६ वर्ग 112 गाथा। मऊर पुं० (मयूर) मी-उरन लोमपक्षिमे, १०१पद / षोता मयूरा: मंखंत त्रि० (मक्षत) मृक्षण कुर्वनि, नि० च०१० उ० / स्वकलापवर्जिता इति / प्रश्न०१ आश्र० द्वार / प्रा० / रा० / स्थान मंखपेक्खा रस्त्री० (मङ्कप्रेक्षा) ये चित्रपाटेकाऽऽदिहस्ता भिक्षां चरन्ति ते "मोरं केकाइण्णं / " अनु० ।मोरगीवाइ वा / रा० / प्रज्ञा० / जं० / स्त्रियां मलाः तेषां प्रेक्षा मन प्रेक्षा। मङ्कप्रेक्षणे,जी०३ प्रति४ अधि०। डीए। विद्याभेदे च। सा हि मयूरीरूपेण प्रतिवादिप्रयुक्ता वादिनमुपसर्ग- | मंखलि पुं० (मङ्ख लि) गोशालकपितरि, मङ्खल्यभिधाने मङ्के, 11010 यतीति। कल्प०२ अधि०८ क्षण : आक० / अनु० / जी० डा० / “गोसालस्स मखलिपुत्तस्रा मखलिणामे मंखे पिया होत्था।" मऊरग पु० (मयूराङ्क) निधिर थापक नामख्याले राजनि, नि० 1015 20 / कल्प। आ०५०। आ०म०। संथा। भ०॥ चू१३ उ०। मंखलिपुत्त पुं० (मङ्क लिपुत्र) मल्यभिधानमङ्खपत्रे गोशालके, संथा०। मऊरंगचूलिया स्त्री० (मयूराङ्ग चूलिक!) आमरणविशेषे, व्य०३ उ०। / मऊरग न० (मयूरक) स्वनामरख्यात सन्निवेशे, यत्र कुण्डपुरान्निगत्य | मंखसिप्प पु० (मस शिल्प) मङ्ख कलायाम्, "मंखसिप्प अहिजिओ।" आ० भगवान महावीरोगतः। स्था१० दाण्डले.बृ०४ उ० / मयूरपिच्छ- | म०१ अ०। मा

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