Book Title: Abhaydan ki Katha
Author(s): Vikrant Patni
Publisher: Jain Chitrakatha

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Page 3
________________ जैन चित्रकथा देवलि और धर्मिल के प्रयत्नों से कुछ ही दिनों में वहां एक सुन्दर धर्मशाला बनकर तैयार हो गयी। एक दिन... Go आइये मुनिराज ! इस धर्मशाला में आप विश्राम करें और जब तक जी चाहे यहां रहें। cor साताल Wil मुनिराज धर्मशाला में रह कर पूजा- तप करने लगे । CD 20 DC फल फिर एक दिन धर्मिल, एक साधु को लेकर आया । आइये साधु महाराज ! आप यहां मेरी बनवाई धर्मशाला में विश्राम करें।

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