Book Title: Abhaydan ki Katha
Author(s): Vikrant Patni
Publisher: Jain Chitrakatha

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Page 7
________________ वहां! यह तो वही जानें। किंतु उन्होंने मुनिराज का बहुत अपमान किया। मुनिराज शांत भाव से सुनते रहे। धर्मिल ने तब उन्हें यहां से चले जाने को कहा। जैन चित्रकथा क्या ? धर्मिल का यह साहस? उसने मुनिराज को निकाल दिया पर मुनिराजगए। कहां? सामने वृक्ष के नीचे वह बैठे हैं। DAADMAAMIR । हां, क्योंकि यह (धर्मशाला मुनियों के लिए नहीं है! मुनिराज के अपमान और कष्टों की बात सुनकर देवलि क्रोध से भर गया। तभी धर्मिल आ गया। धर्मिल! तुम्हारी ये मजाल कि मेरे अतिथि,मुनिराज को धर्मशाला से तुमने निकाल दिया। मत भूलो कि इस धर्मशाला पर आधा हकमेरा भी है।

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