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जैन चित्रकथा मालवा में घटगांव नामक एक समृद्ध नगर था।
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- अभयदान का कथा
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AN और धमिल नामक एकनाई रहता था।
यहां देवलि नामक एक कुम्हार रहता था।
एक दिन---
भाई घर्मिलमैंने मिट्री के बर्तन बच-बेचकरबहुत धन कमा लिया है। सोचता हूँ उसे किसी अच्छे कार्य में लगाऊ
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देवलि भाई! तुमने तो मेरे मन की बात जान ली। मैं भी यही सोच
रहा था कि क्या करूं?
अभयदानकीकथा
हम जो भी करें,उससे मानव कल्याण होना चाहिए।
हां मैं भी इसबात से सहमत हा
तो क्यों न हम दोनों मिलकर एक धर्मशाला बनवा दें, जहां मुनि-तपस्वी भी रह सके अपने यहां ऐसी कोई धर्मशाला
है भी नहीं।
अच्छा सुझाव है मित्रालो कलसेही काम शुरू करदो।
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जैन चित्रकथा देवलि और धर्मिल के प्रयत्नों से कुछ ही दिनों में वहां एक सुन्दर धर्मशाला बनकर तैयार हो गयी।
एक
दिन...
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आइये मुनिराज ! इस धर्मशाला में आप विश्राम करें और जब तक जी चाहे
यहां रहें।
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मुनिराज धर्मशाला में रह कर पूजा- तप करने लगे
।
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फिर एक दिन धर्मिल, एक साधु को लेकर आया ।
आइये साधु महाराज ! आप यहां मेरी बनवाई धर्मशाला में विश्राम करें।
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अभयदान की कथा किंतु जब धर्मिल ने वहां मुनिराज को देखा तो उसको बड़ा क्रोध आया। मुनीमजी! आपने
मैनें नहीं। ये तो देवलि किसकी अनुमति से इस जीने मुनिराज को यहां ठहराया कमरे में मुनिको
है। मेरे लिए तो आप दोनों ही ठहराया है?
धर्मशाला के मालिक हैं।मैं उन्हें
कैसे रोक सकता था?
नहीं। धर्मशाला में, मेरी अनुमति के बिना कोई नहीं ठहर सकता। देवलि कौन होता है?
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किंतु..
इसके बाद गुस्से से भरा हुआ धर्मिल मुनिराज के पास गया।
मुनिराज! आपको यहां (ठहरने का कोई अधिकार नहीं है। आप कृपा कर यहां से इसी समय चले जाएं।
देवलि!
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जैन चित्रकथा
देवलि की बात देवलि जाने। मुझे
यह कमरा इसी समय खाली चाहिए !
आप स्वयं चले जाएं तो अच्छा है, वरना मैं आपको धक्के मारकर बाहर निकाल दूंगा,
मुनिराज ने अपना कमंडल उठाया और बाहर एक पेड़ के नीचे आकर बैठ गए ।
那
क्रोध न
करो! मैंने जाने
के लिए मजा तो नहीं
किया। मैं अभी चला
जाता हूं, पर तुम
शांत रहो।
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आइए साधु महाराज। आप इस कमरे में विश्राम कीजिए !
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अभयदान की कथा मुनिराज पेड़ के नीचे बैठ रहे। रात में उन्हें मच्छरों ने सवेरे देवलि धर्मशाला में आया तो मुनिराज को न देखबहुत काटा,पर वह शांत भाव से सब सहन करते रहे। | कर परेशान हुआ।
मुनिराज कहां गए? कहीं वह नाराज होकर चले तो नहीं गए।पर ऐसा संभव
नहीं लगता।
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तभी मुनीमजी आए---
मुनीमजी!कल जो मुनिराज यहां ठहरे थे,वह अचानक कहां
चले गए?
स्वामी। क्या कह मेरे लिए तो आप भी स्वामी है और धर्मिल भी। कल शाम घमिल जी एक साधु के साथ आए थे। वह मुनिराज को देरखकर बहुत क्रोधित हुए!
लेकिन क्यों?
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वहां!
यह तो वही जानें। किंतु उन्होंने मुनिराज का बहुत अपमान किया। मुनिराज शांत भाव से सुनते रहे। धर्मिल ने तब उन्हें यहां से चले जाने को कहा।
जैन चित्रकथा
क्या ? धर्मिल का यह साहस? उसने मुनिराज को निकाल दिया
पर मुनिराजगए। कहां?
सामने वृक्ष के नीचे वह बैठे हैं।
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। हां, क्योंकि यह (धर्मशाला मुनियों के
लिए नहीं है!
मुनिराज के अपमान और कष्टों की बात सुनकर देवलि क्रोध से भर गया। तभी धर्मिल आ गया।
धर्मिल! तुम्हारी ये मजाल कि मेरे अतिथि,मुनिराज को धर्मशाला से तुमने निकाल दिया।
मत भूलो कि इस धर्मशाला पर आधा हकमेरा
भी है।
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उससे क्या होता हैं? यहां वही ठहरेगा, जिसे मैं चाहूंगा।
अभयदान की कथा नहीं। जिसे
यह नहीं मैं चाहूंगा,वही
होगा। ठहरेगा।
यही
होगा!
धर्मिल और देवलि का क्रोध बढ़ता गया। दोनों मारपीट करने लगे।
दोनों में इतनी जबरदस्त मारपीट हुई कि दोनों ही मर गए।
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जैन चित्रकथा अपने कर्मो और क्रोध में एक दूसरे की हत्या करने का और धर्मिलने शेर की योनि में जन्म लिया। पापलेकर वे पशू योनि में गए। देवलि ने सूअर योनि में जन्म लिया।
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ये दोनों एक ही जंगल में रहते थे।
एक दिन दो मुनिराज कहीं से आए और जंगल की गुफा में ठहरे।
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अभयदान की कथा उन्हें देखकर,सुअर को अपना / पूर्व जन्म अगले दिन वह गुफा द्वार पर आकर बैठ गया।उस समय पूर्व जन्म याद हो आया। में मैंने भी मुनि
मुनिराज उपदेश दे रहे थे। सेवा का वृत लिया था।
मुनिराज के उपदेशों से मेरा कष्ट निवारण होगया।
किंतु तभी उसे दर से शेर की गन्ध आयी।
तो इसका अर्थ है किधर्मिल जो शेरका रूप है। उसे यहां मनुष्य होने कीगन्ध लग गयी।
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जैन चित्रकथा उधर मनुष्य की गंध पाकर दहाड़ता हआ शेर चला आ रहा था।
जो भी हो। मुझे (इन मुनियों की रक्षा तो
करनी ही है।
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सुअर,मुनियों की रक्षा करना चाहता था और शेर उन्हें रवाना चाहता था।
दोनों मुनि शांतभाव से तप करते रहे।
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अभयदान की कथा
शेरने आते ही सुअर पर आक्रमण किया।
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सुअर भी तैयार था। उसने अपने दांतो से शेर को दूर फेंक दिया।
किंतु शेर फिर झपटा और दोनों में युद्ध शुरू हो गया।
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अंत में दोनों ने प्राण त्याग दिए।
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________________ Vikrant Patnt JHALRAPATAN जैन चित्रकथा दोनों मुनि बाहर आए ---- ओह! इन्होने इस जन्म में भी आपस में लड़ कर प्राण दे दिए सुअरने मुनि रक्षा का वृत लिया हुआ था उसे पुण्यफल स्वग मिला। ARMY और शेर ने हत्या करने की इच्छा की इसलिए उसे नरक मिला