Book Title: Aasis
Author(s): Champalalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 9
________________ शरुआद श्री भाईजी महाराज रै सुरगवास नै हाल पूरा तीन महिनां ही को हुया है नीं। बीं दिन १७ दिसम्बर हो, अर आज के दिन १५ मार्च है। अबार-अबार गुरुदेव रे दरसणां ने राजस्थान रा वित्तमंत्री चन्दनमलजी बैद आवण वाला है। मै सुजानगढ़ रामपुरिया-भवन रै पोल परलै अगूणै कमरै मै बैठ्यो हूं। म्हारै सामै घणासारा कागज-पतर, ओलिया-परच्या, चींपा-चिमठिया, काप्यां-चोपनियां बिखऱ्या पड्या है। इत्तै मै आया सुमेर मुनि 'सुदरसण', बै अवतांइ बोल्या-ओ के अरारो बिखेर राख्यो है आज ? मै बोल्यो-भाई ! भाईजी महाराज रा दूहा-सोरठा, ढूंढ़-छांट'र एक जग्यां भेला करण री सोच रह्यो हूं। सुदरसणजी बोल्या-भाईजी म्हाराज के म्हारै स्यूं छाना हा? बै कदेइ पद्य बणाताइ कोनी हा। म्हे बातां कर ही रह्या हा। इत्तै मै लाडणूं स्यूं संतोष बहन-श्रीमती राणमलजी जीरावला-पारमार्थिक शिक्षण संस्था री बैरागण्यां बायां साग कमरै मैं आ'र बन्दणा करी । मैं जीकारो दियो-'जे राणीजी ! ब बार गया'र बायां पूछ्यो-आज म्हाराज राणीजी कियांन फरमायो ? बांही पगां बै पाछा कमरै मै आ'र बोल्या-है ओ ! सागरमलजी स्वामी ! आपनै ठाह है नीं, भाईजी म्हाराज म्हारो नांव राणीजी एक दूहो फरमार दियो हो? मै कह्यो-हां, सदाई भाईजी म्हाराज राणीजी रे नांव स्यूं ही जीकारो दिरायां करता, पण बो दूहो किस्यो? राणीजी केवण लाग्या - म्हाराज ! याद करो, हैदराबाद यात्रा मै एक दिन मै आचार्यश्रीजी नै गोचरी पधारण री अर्ज करी, विमला बाई साग हा । गुरुदेव नको फरमा दियो । म्हारो मन कोनी मान्यो। आख्यां भरीजगी । मै भाईजी महाराज ने अरज करी । बै दयालू पुरुष हा । फरमायो, बेराजी क्यूं हुवो। पाछा पधारवाद्यो। भाईजी महाराज थोड़ा सा'क पेहली पधार'र पग थांम्या। जद आचार्यश्री को पधरावणो हुयो तौ मोटापुरुष एक दूहो फरमा'र अर्ज करी । बो दूहो मनै हाल बीयां को बीयां याद है - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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