Book Title: Aasis
Author(s): Champalalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

Previous | Next

Page 13
________________ दो बोल भाईजी महाराज आपरी एड़ी स्यूं चोटी तांईं हीयो ही हीयो हा। बां री हृत्तंत्री रा तार इत्ता कस्योड़ा हा के जरा-सो हिलको लागतां ही झणझणाण लाग जाता । बै कोई री आंख्यां में आंसू कोनी देखण सगता। जे देखता तो बां रो हाथ बां आंसवां नै पूंछण सारू उठ्यां बिना को रैवंतो नीं। इंयालक मोम जियालक मुलायम चित्त रो मिनख कवी नई हो तो फेर के बै । बेदरदी ढांढा कवी होसी जकां रै कालजै मै विधाता दिल री जग्यां एक मोटो सो भाटो रख दिया करें । बै तेरापंथ रै युगप्रधान आचार्य तुलसी रा बड़भाई हा। ई कारण लोग बान्नै 'भाईजी महाराज' कैवता । पण आ पदवी बान्नै कोई बगसीस मै को मिली ही नी । लोग आपरी मनमरजी स्यूं ही बान्नै पूजता अर बां रै चरणां मैं आपरो सिर नंवाता। जको आदमी जित्तो दुखी अर दबेड़ो होतो बो बां रै बित्तो ही नेड़ो हो जांवतो। बां री अणमाप अपणायत रै कारण लोग बांरै आगे आपरी निज स्यूं निजू बात कहण में भी संकोच को करता नीं। बां रे हाथ में कोई भामाशाह री थैली को ही नी' जकी रो मूंडो खोल-खोल बै गरजी री गरज सार देवंता । बां खनै कोई हाकमी भी को ही नी जकै रे जोर स्यूं आगलै रो वारो-न्यारो कर देवंता। पण, बां रो हीयो इत्तो हमदरदी स्यूं भरेड़ो हो के बी मै हरेक नै आप आप रै दरदरी दवा मिल जांवती। ___ लोग भाईजी महाराज रै खनै हार्या-थक्या आंवता पण बांरी बच्छलता रै बड़लै री ठण्डी छायां मैं बैठतां ही बां रै अंग-अंग मै उमंग री नवी तरंग दौड़ण लाग जांवती। बै घणा लूंठा विद्वान को हा नी, बड़ा भारी तपस्वी भी कोनी हा, बां स्यूं बड़ा ग्यानी-ध्यानी भी बहोत देखण मै आवै, पण आ कह्यां बिना को रह सकां नी के बां जियालकां तो बै ही हा । आपरी आखी उमर बै कोई नै तोड़ण री नई, जोड़नै री ही चेष्टा करी। बै सदा सुई री जियां सीणो रोई काम कर्यो, कतरणी री जियां काटण-छांटण री कोशीश को करी नी। बै लोगां रै बीच आएई आंतरै नै पाटण री खातर पुल ही बणाया, कदे ई कोई खाई को खोदी नी। बां रो तो ओ एक ही मन्तर हो: Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 ... 372