Book Title: Aasis Author(s): Champalalmuni Publisher: Adarsh Sahitya SanghPage 11
________________ आ नया साधा ने हिदायत ही । 'साधक शतक' हिसार 'र दिली प्रवास विचै पच्चीसवीं महावीर निर्वाण शताब्दी री देण है । वर्णमाला रे हर अक्खर पर तीन-तीन सोरठा, मांय- मांय योगसाधना रा निजी अनुभव बोल है । - शिक्षा सुमरणी आतमारी उवाज | वि० सं० २०३२ जैपुर में पूरी करी । न्यारी न्यारी वगत, टेम-टेम रा भाव, उतारां- चढ़ावां री धूप- छियां में नीसेड़ी लुकती-छिपती बातां, पढ्यां सुण्यां ठा पड़े। बाकी रह्योड़ा सगला दूहा 'फुटकर फूल' बण' र खिलग्या । 'यादगारां' कुछ संता - श्रावकां रै जाणै पर बणी । 'पद्यात्मक पत्र' आता-जाता साध-सत्यां सागै कागद लिखण रो मोको तो पड़तोइ पड़ती । कोई कागद दूहा सोरठा मै लिखाया। बां मैं मैं भेलो बैठ्यो । संस्मरण पदावली मनै सांस्यूं रुचती, चोखी, चरपरी, फुरकती -फडकती रंगदार र रसीली लागी । इं वास्ते मै म्हांरी जाणकारी मुताबिक, कीं बीत्योड़ी, की आंख्या देख्योड़ी, बाकी की सुण्योड़ी बातां हिन्दी मैं लिख र पोथी र लारै दे दी है । असल बात स्यूं आ पोथी शुरू हुवै है । श्री भाईजी महाराज आपरै मन री बात कन्या सामै मेली है । आ तो मैं मान'र चालूं, भाईजी महाराज कवि कोनी हा ( बांरा सबदा मै) पण काव्य रसिक हा, कविता रा पारखी हा । सैकड़ां दूहासोरठा - छन्द कवित्त बां रै कंठां हा । बै कव्या ने चाहता हा । कविराजा नै मान देता हा । मन री आह कदेइ-कदेई बार दूहा- सोरठां में बारैं आती ही । बीं मन री आह, चाह' र मान - तान सागै, आ पोथी (आसीस) कवि-कुलकिरीट महामना आचार्यश्री तुलसी ( भाईजी महाराज रा अनुज) र चरणां मै, तथा गणपति स्वरूप जोगीराज युवाचार्य महाप्रज्ञजी महाराज - जका १५ वर्षा तांई लगोलग भाईजी महाराज र संरक्षण में रह्या, बेठ्या । आपरं जीवन रो दूसरो पड़ाव सागै साग पार कर्यो — बांरै लम्बा हाथां मै निजर करूं । WHAT एकर भाईजी महाराज दुकड्यां, तिकड्यां और चोकड़ियां लिखण रो मन भी कर्यो हो । थोडाक अधूरा पद्य हाल भी म्हारै कनै लिख्योड़ा पड्या है । कुल मिलार इं 'आसीस' मै गहरा अर्थ स्यूं भर्योड़ा, अनुप्रासां स्यूं सझ्योड़ा, भावां स्यूं भींज्योड़ा, लक्ष्यभेदी तीरिया सा ( ११७० ) अंदाज दूहा- सोरठा- छन्द है । खाटै मीठे, खारै'र चरपरै इ संग्रह मैं मुनि मणिलालजी रो बचन अगोचर सहारो सरायां बिनां मन कोनी मान । मुनि मोहनलालजी 'आमेट' बार-बार ताना मार-मार' र प्रेरणा करता रह्या । मुनि दुलहराजजी रो के आभार मानूं । वै तो भाईजी महाराज रा अनन्य विश्वासपात्र हा । वे ईं पोथी मैं आपरा श्रम-बिन्दु जोड' र आपरो फरज निभायो है । मोडो बेगो कियांलइ मानो, आ पोथी हाजर है । दोष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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