Book Title: Aasis Author(s): Champalalmuni Publisher: Adarsh Sahitya SanghPage 10
________________ रांणा-रांणी रंग स्यूं, साझे सद्गुरु सेव । साथै बिमला सेठिया, महर करो गुरुदेव ।। सुणतां-सुणतां बीइ टेम गुरुदेव गोचरी पधारग्या । बीपछ सदाई मोटा पुरुष मन राणीजी! राणीजी ! ही फरमाता रह्या।। मै सगलां रै सामैइ सुदरसण मुनि ने कह्यो-ओल्योजी ! एक जींवतो जागतो मुंडमंड प्रमाण । अबै बालो ! भाईजी म्हाराज दूहा वणावता हा'क कोनी? संस्था री बायां खड़ी खड़ी म्हारै मुंहडै कानी देखण लाग्गी। राणीजी रै कह्योड़े बी है नै मै बीटेमई लिख्यो'र बोल्यो--सूदरसणजी! एक कै, इयाकला के ठा किताइ दहा मिलसी, जद ओ संग्रह त्यार होसी । आज रै इं प्रसंग स्यूं ही बीरी शरुआद करण रा म्हारा भाव है। सुदरसण मुनि मानग्या। हाथोहाथ बोल्या-पण म्हांस्यूं आ बात छांनी कियां रही? मै दूहा-सोरठा भेला कां जा रह्यो हो । राजलदेसर वाला सोहनलालजी चंडालिया आया। बात चाली । बै बोल्या-एक कोपी भाईजी महाराज रै दूहारी म्हारै कन्हैइ धार्योड़ी पड़ी है। वि० सं० २०१५, २०१६, २०१७ मै जद जद मनै सेवा रो मोको मिल्यो, मै दूहा धाऱ्या हा । कोपी आई। देखी तो दो सौ दूहा-सोरठा मिल्या । बै प्राय प्राय संत वसन्त रा संकलित हा । मै बीमायलो 'श्रावक-शतक' हो ज्यू को ज्यू सोरठा मै ही राख्यो । दूसरै 'सागर-शतक' रा दूहा 'पंचक बत्तीसी' मै आयग्या। पंचक बत्तीसी-वि० सं० २००५ स्यूं १४ तांई को संग्रह है। टेम टेम पर मन (श्रमण सागर) फरमायोडी 'सीख'आशीष बत्तीसी बणगी। - मुनि गुलाबचन्दजी भाईजी महाराज रा अपणा वंशज है। छोटे भाई रो बेटो, बेटोह हुवै है । गुलाव गुणचालीसी वि० सं० २०२२ की है । इं मै कुल परम्परागत उदारता, विशालता, विवेक, बडप्पण है'र ठीमरता बढ़ाण रै सागै-सागै अकड़-पकड़ छाती रो ठड्डो' र बादाबादी छोड़ण री बावै-बेटै बिचै सलासूत हुई सी लागे । खुदरा निजी अनुभव, चेतना री चोकसी, साधना री सुगन्ध, भीतरलै नै भेदण री अटकल, ककारादि ककारान्त दूहा मै-परमारथ पावड्यां पढ़ता जी सोरो हुवै। जद दूजो कोई नहीं लाधतो, जणां मै ही धक्कै चढ़तो। गलती करतो कोई, झाड़ो लागतो म्हारै । 'श्रमण बावनी' रो पात्र मै हूं। बस इंरोइ नांव किरपा है। . सरड़का सोहली मै मुनि मणिलालजी रो विश्वास'र परतीत बोल है। आ सोहली वि० सं० २०२८ सरदारशहर मै एक खास मोके पर लिखीजी। शान्ति सिखावणी वि० सं० २०२६ सुजानगढ़ मै सरू हुई शान्ति मुनि रै मिष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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