Book Title: Aasis Author(s): Champalalmuni Publisher: Adarsh Sahitya Sangh View full book textPage 8
________________ दिल रा दरियाव, पकड़ रा पका, खेचीज्यां पछै खैर रा खूटा, परायी भीड में पड़णिया, सीधा-सादा-सरल, गरीबां रा बेली, करुणा रा अवतार-सा, पूरा प्रभावी पर मिलनसार, कठोर अनुशासक फेर भी दयालू, स्वाभिमानी साग-सागै विनम्र, पुरातनी लेकिन बगत रा पारखी, अडोल प्राण-प्रणी परन्तु परगतीशील, समरथ होकर भी उदार, मनमोजी-मस्त, आण-बाण-शान और प्रमाण र साथै ५० वर्षा तांई साधपणो पाल'र वि० सं० २०३२ मिगसर सुद तेरस नै 'धां' गांव मै (सालासर साहरे) शरीर छोड्यो । बांरो अगनी-संस्कार जैन विश्व भारती लाडण मै १८-१२-१९७५ रै दिन बीस हजार लोगां री साख स्यूं हयो। __ आपरी रीत-नीत' र मर्यादा मै रै'र बै सैकडां साध-सत्यां री सेवा-चाकरी र सारणा-वारणा करी । बांरी बच्छलता स्यूं बंध्योड़ा हजारां-हजारों लोग अपणायत जोड़ी। तेरापंथ द्विशताब्दी समारोह पर आचार्यश्री तुलसी आपरै मुखारबिन्द स्! बांन सेवाभावी रो खिताब इनायत कियो। श्री भाईजी महाराज काव्य रा रसिया, साहित्य रा प्रेमी, विद्या रा उपासी, है'र कला रा सोखीन हा । आप र खन्है रेवणियां किताइ ऊगता नखतरां (साधुवां) नै मांज्या, साझ्या-संवाऱ्या'र उजाल्या । बां मायलो एक नमूनो है युवाचार्य महाप्रज्ञजी। बै मातृ-भाषा राजस्थानी रा सारां सिरे सपूत हा। बांरी रंगीली, रजमेदार रंगरली बांरा आपरा लिख्योड़ा दहा-सोरठा मुंडे बोल-बोल'र केहवै है। जद-जद भी बै परसन चित्त या फेर लेहर मै होता, जणां दूहा-सोरठा बणायालिखाया करता। न्यारी-न्यारी टेमां, न्यारा-न्यारा लिखायोड़ा बां छुट-पुट पदां ने मै म्हारी मन-मरजी प्रमाण छांट-छांट'र न्यारा-न्यारा नावां स्यं अठ भेलाकरर मेल्या है। तेरापंथ संघ रा ओपता, दीपता, दीखता'र रलता मिलता जोगीराज श्री भाईजी महाराज री विचारां स्यूं ओलखाण औ पद करासी । जकां मै अनुभवां रो परिपाक, अलंकारां री झिणकार'र अनुप्रासा री भरमार है। तुकां री जोड़तोड़, बेण सगायां री बोहलता है'र किताक मै है आदि-अन्त एक ही अक्खर । बांगे शबद भंडार'र रचना सिंणगार, कव्यां रो आकर्षण केन्द्र बणसी। ___श्री भाईजी महाराज, भाईजी महाराज हा, थांका'र म्हांका, बस आही है स्वर्गीय सेवाभावी मुनिश्री चम्पालालजी स्वामी री ओलखाण।। मै ३० वर्षा तांई बार साग रह्यो। घणां उतारां-चढ़ावां मै बानै उतरतांचढ़ता देख्या। पण बां जिसी इकतारी, साहस, उदारता, विशालता, भाईचारो'र संघीत भावना विरला मै ही होसी । बी जोडी रो दूजो कोइ सन्त ओर हुवै तो मनैइ बतायीज्यो। निमस्कार बीं अनोखं अलवेलै सन्त नै। वि० सं २०४४, दिवाली, राययुर मध्यप्रदेश --श्रमण सागर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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