Book Title: Aagam Manjusha N 01 Aayaro Nijjutti Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri Publisher: Deepratnasagar View full book textPage 5
________________ जयमाणगा सुविहिया, एरिसया हुँति अणगारा॥१०५॥ अ०१उ०२। आउस्सयि दाराई ताई जाई हवंति पुढवीए। नाणत्ती उ विहाणे परिमाणुवभोगसत्थे य॥१०६॥ दुविहा उ आउजीवा सुहुमा तह बायरा य लोगंमि । सुटुमा य सबलोए पंचेव य बायरविहाणा ॥१०७॥ सुद्धोदए१ य उस्सा२ हिमे य३ महिया४ य हरतणू५ चेव। बायराउविहाणा पंचविहा वणिया एए॥१०८॥ जे बायरपजत्ता पयरस्स असंखभागमित्ता ते । सेसा तिजिवि रासी वीसुं लोगा असंखिज्जा ॥१०९॥ जह हस्थिस्स सरीरं कललावत्यस्स ऽहुणोववनस्स। होइ उदगंडगस्स य एसवमा सब(आउ) जीवाणं ॥११०॥ण्हाणे पिअणे तह धोअणे य भत्तकरणे य सेए अ। आउस्स उ परिभोगो गमणागमणे य जीवाणं ॥१११॥ एएहिं कारणेहिं हिंसंती आउकाइए जीये। सायं गवेसमाणा परस्स दुक्खं उदीरति ॥११२॥ उस्सिचणगालणधोवणे य उवगरणमत्तभंडे या बायरआउकाए एवं तु समासओ सत्यं ॥११३॥ किंची सकायसत्यं किंची परकाय तदुभयं किंची। एवं तु दासत्थं | भाये य असंजमो सत्यं ॥११४॥ सेसाई दाराई ताई जाई हवंति पुढवीए। एवं आउद्देसे निज्जुत्ती कित्तिया एसा (होइ)॥११५॥अ०१उ०३ तेउस्सवि दाराई ताई जाई हवंति पुढवीए। नाणत्ती उविहाणे परिमाणुवभोगसत्थे य॥११६॥ दुविहा य तेउजीवा सुहुमा तद बायरा य लोगंमि। सुहुमा य सबलोए पंचेव य बायरविहाणा ॥११॥ इंगाल१ अगणि२ अची३ तह जाला४ मुम्सुरे५ य बोधे। बायरतेउविहाणा पंचविहा वण्णिआ एए॥११८॥ जह देहप्परिणामो रत्ति खजोयगस्स सा उवमा। जरियस्स य जह उम्हा तओवमा तेउजीवाणं ॥११९॥ जे वायरपजत्ता पलिअस्स असंखभागमित्ता उ । सेसा तिष्णिवि रासी वीसुं लोगा असंखिज्जा ॥१२०॥ दहणे पयावण पगासणे य सेए य भत्तकरणे य। वायरउक्काए उक्भोगगुणा मणुस्साणं ॥१२१॥ एएहिं कारणेहिं हिसंती तेउकाइए जाये। सायं गवेसमाणा परस्स दुक्खं उदीरंती ॥१२२॥ पुढवी आउक्काए उल्ला य वणस्सई तसा पाणा । बायरतेउक्काए एवं तु समासओ सत्यं ॥१२३॥ किंची सकायसत्वं किंची परकाय तदुभयं किंची। एयं तु दवसत्यं भावे य असंजमो सत्यं ॥१२४॥ सेसाई दाराई ताई जाई हवंति पुढवीए। एवं तेउद्देसे निज्जुत्ती कित्तिया एसा॥१२५॥अ.१ उ.४॥ पुढवीए जे दारा वणसइकाएऽवि हुँति ते चेवा नाणत्ती उ विहाणे परिमाणुवभोगसत्थे य॥१२६॥ दुविह वणस्सइजीवा सुहुमा तह वायरा य लोगमि। सुहुमा य सबलोए दो चेव य बायरविहाणा ॥१२७॥ पत्तेया साहारण बायरजीवा समासओ दुविहा । बारसविहऽणेगविहा समासओ छविहा हुंति ॥१२८॥ रुक्खा१ गुच्छा२ गुम्मा३ लया४ य वाल्ली५ य पञ्चगा ६ चेव। तण१ वलयर हरिय३ ओसहि४ जलमह५ कुहणा६ य बोदल्या ॥१२९॥ अग्गबिया मूलबीया खंधबिया चेव पोखीया या बीयरुहा समुच्छिम समासओं वणस्सईजीवा ॥१३०॥ जह सगलसरिसवाणं सिलेसमिस्साण वत्तिया बट्टी। पत्तेयसरीराणं तह हुँति सरीरसंघाया ॥१३१॥ जह वा तिलसक्कुलिया बहुएहिं तिलेहिं मेलिया संती। पत्तेयसरीराणं तह हुंति सरीरसंघाया ॥१३२॥ नाणाविहसंठाणा दीसंती एगजीविया पत्ता। खंधावि एगजीवा तालसरलनालिएरीणं ॥१३३॥ पत्तेया पजत्ता सेढीएँ असंखभागमित्ना ते। लोगासंखप्पज्जत्तगाण साहारणाऽणंता॥१३४॥ एएहिं सरीरेहिं पञ्चक्खं ते परूविया जीवा । सेसा आणागिज्झा चक्खुणा जं न दीसंति॥१३५॥ साहारणमाहारो साहारण आणपाणगणं च । साहारणजीवाणं साहारणलक्खणं एयं॥१३६॥ एगस्स उजं गहणं बहूण साहारणाण तं चेवाजं बहुयाणं गहणं समासओ तपि एगस्स ॥१३७॥ जोणिभूए बीए जीवो वकमइ सो व अन्नो वा। जोऽवि य मूले जीवो सो चिय पत्ते पढमयाए॥१३८॥ जो पुण मूले जीवो सो निवत्तेइ जा पटमपत्तं । कंदाइ जाव बीयं सेसं अन्ने पकुवंति। (अव्याख्या)।चकागं भजमाणस्स, गंठी चुण्णघणो भवे। पुढवीसरिसभेएणं, अणंतजीवं वियाणेहि ॥१३९॥ गूढसिरागं पत्तं सच्छीरं जंच होइ निच्छी। जं पुण पणट्ठसंधिय अर्थतजीवं वियाणाहि ॥१४०॥ सेवालकच्छभाणि य अवए पणए य किंनए यहढे। एए अणतजीवा भणिया अन्ने अणेगविहा॥१४१॥ एगस्स दुष्ह तिण्ह व संखिजाण व तहा असंखाणं । पत्तेयसरीराणं दीसंति सरीरसंघाया ॥१४२॥ इकस्स दुण्ह तिषह व संखिजाण व न पासिउं सका। दीसंति सरीराई निओयजीवाणऽणताणं ॥ १४३॥ पत्येण व कुडवेण वजह कोइ मिणिज समधन्नाई। एवं मक्जिमाणा हवंति सोया अणता उ॥१४४॥ जे बायरफजत्ता पयरस असंखभागमित्ता ते। सेसा असंखलोया तित्रिवि सादारणाऽणंता ॥१४५॥ आहारे उवगरणे सयणासण जाण जुम्गकरणे य। आवरणपहरणेसु अ सत्यविहाणेसु अ बहूसु ॥१४६॥ आउज कट्ठकम्मे गंधगे वत्य मत जोए य । झावणवियावणेसु अ तिउविहाणे अ उज्जोए ॥१४॥ एएहिं कारणेहिं हिंसंति वणस्सई बहू जीये। सायं गवेसमाणा परस्स दुक्खं उदीरति ॥१४८॥ कप्पणिकुहाणिअसियगदत्तियकुदलवासिपरसू अ। सत्थं यणस्सईए हत्था पाया महं अग्गी ॥१४९॥ किंची सकायसत्यं किंची परकाय तदुभयं किंची। एयं तु दबसत्यं भावे अ असंजमो सत्यं ॥१५०॥ सेसाई दाराई ताई जाई हवंति पुढवीए। एवं वणस्सईए निजुत्ती कित्तिया एसा ॥१५१॥ अ.१ उ.५। तसकाए दाराई ताई जाई हवंति पुढबीए। नाणत्तीउ विहाणे परिमाणुवभोगसत्थे अ॥१५२॥ दुविहा खलु तसजीवा लदितसा चेव गहतसा चेव । लद्वीय तेउवाऊ तेणऽहिगारो इहं नस्थि ॥१५३॥ नेरइयतिरियमणुया सुरा य गइओ चउबिहा चेव । पजत्ताऽपज्जत्ता नेरइयाई अनायथा ॥१५४॥ तिविहा तिविहा जोणी अंडयपोभअजराउआ चेवा बेइंबिय तेइंदिय चउरो पंचिंदिया चेय ॥ १५५॥ दारं ॥ दसणनाणचरित्ते चरियाचरिए अ दाणलाभे अ। उवभोगभोगयीरिय इंदियक्सिए य लदी य ॥१५६॥ उचओगजोगअजावसाणे वीसुं च १३००१२४१श्री आचारांगं नियुक्ति मुनि दीपरत्नसागरPage Navigation
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