Book Title: Aagam Manjusha N 01 Aayaro Nijjutti
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar

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Page 9
________________ TO तित्वयरो चउनाणी सुरमहिओ सिज्झियवय धुवम्मि । अणिगृहियबलविरिओ तवोवहाणंमि उज्जमइ ॥२९५॥ किं पुण अवसेसेहिं दुक्सक्खयकारणा सुविहिएहिं। होइ न उज्जमियत्रं सपञ्चवायंमि माणुस्से ? ॥२९६॥ चरिया १ सिजार य परीसहा३ य आयंकिया (ए) चिगिच्छाट य । तवचरणेणऽहिगारो चउसुहेसेसु नायवो ॥२९७॥ नामंठवणुवहाणं दवे भावे य होइ नायव । एमेव य सुत्तस्सवि निक्खेवो चउविहो होइ ॥२९८॥ दनुवहाणं सयणे भावुवहाणं तवो चरित्तस्स । तम्हा उ नाणदसणतवचरणेहिं इहाहिगयं ॥२९९।। जद्द खलु मइलं वत्थं सुज्झइ उदगाइएहिं दवेहिं । एवं भावुवहाणेण सुज्झाई कम्ममढविहं ॥३०॥ओधुणण धुणण नासण विणासणं झवण खवण सोहिकरं । छेयण मेयण फेडण डहणं धुवणं च कम्माणं ॥३०१॥ एवं तु समणुचिन वीरवरेणं महाणुभावेणं । जं अणुचरितु धीरा सिवमचलं जन्ति निवाणं॥३०२॥(२८४)अ०९,श्रुत.शदवोगाहण आएस काल कम गणण संचए भावे। अग्गं भावे उ पहाणबहुयउवयारओ तिविह ॥३०३॥ उवयारेण उपगयं आयारस्सेव उवरिमाइंतु।रुक्खस्स पवयस्स यजह अम्गाइं तहेयाई ॥३०४॥ थेरेहिऽणुग्गहट्टा सीसहि होउ पागडल्यं च । आयाराओ अत्थो आयारंगसु पविभत्तो ॥३०५॥ बिइअस्स यपंचमए अट्ठमगस्स विइयंमि उदेसे। भणिओ पिंडो सिजा वत्थं पाउरगहो चेव ॥३०६॥ पंचमगस्स चउत्थे इरिया वणिजई समासेणं। छट्ठस्स य पंचमए भासजाय वियामाहि ॥३०७॥ सत्तिकगाणि सत्तबि निजूढाई महापरिचाओ। सत्यपरिना भावण निजूढाओ धुयविमुत्ती ॥३०८॥ आयारपकप्पो पुण पञ्चक्खाणस्स तइयवत्यूओ। आयारनामधिज्जा वीसइमा पाहुडच्छेया ॥३०९॥ अबोगडो उ भणिओ सत्यपरिभाय दंडनिक्खेवो। सो पुण विमजमाणो वहा तहा होइ नायत्रो॥३१०॥ एगविहो पुण सो संजमुत्ति अज्झत्थ वाहिरो य दुहा। मणवयणकाय तिविहो चउविहो चाउजामो उ॥३११॥ पंच य महत्वयाई तु पंचहा राइभोअणे छदा । सीलंगसहस्साणि य आयारस्सप्पवीभागा ॥३१२॥ आइक्खि विभइउं विनाउं चेव सुहतर होइ । एएण कारणेणं महत्वया पंच पञ्चत्ता॥३१३ ॥ तेसिं च रक्खणट्ठा भावणा पंच पंच इकिकाता सत्यपरिवाए एसो अभितरो होई॥३१४ ॥ जावोग्गहपडिमाओ पढमा सत्तिकमा विइअचला।भावण विमत्तिआयारपकप्पा तिमि इअपंच॥३१५॥ (अ०१,१०)पिंडेसणाएँ जाणिजुत्तीसाचेव होइ सेजाए। वत्येसण पाएसण उग्गहपडिमाएं सच्चेव ॥३१६॥ सवाक्यणविसोही णिजत्ती जा य वकसुदीए । सचेव णिरवसेसा भासज्जाएवि णायबा ॥३१७॥ सेजाइरिया तह उग्गहं य तिण जायजा तहिं पगयं। केरिसिया सिना खल संजयजोगत्ति नायचा?॥३१९॥तिविहा य दवसिज्जा सञ्चित्ताऽचित्त मीसगा चेव । खित्तंमि जंमि खित्ते काले जा जंमि कालंमि ॥३२०॥ उकलकलिंग गोअम वग्गुमई चेव होइ नायबा। एयं तु उदाहरणं नायवं दवसिज्जाए ॥३२१॥ दुविहा य भावसिज्जा कायगए छविहे य भावंमि । भावे जो जत्थ जया सुहदुहगम्भाइसिज्जासु ॥३२२॥ सोऽवि य सिजविसोहिकारगा तहवि अस्थि उ क्सेिसो । उद्देसे उद्देसे वुच्छामि समासओ किंचि ॥३२३॥ उग्गमदोसा पढमिडयंमि संसत्त पचवाया यशवीयंमि सोअवाई बहुविहसिजाविवेगोर य॥३२४ा तइए जयंतछलणा सज्झायस्सऽणुवरोहि जइया । समविसमाईएसुयसमणेणं निजरद्वाए३॥३२५॥(अ०२,११) नामं१ ठवणाइरियार दवे३ खित्ते४ य काल५ भावे६ य। एसो खलु इरियाए निक्खेवो छविहो होइ ॥३२६॥ दवाइरिया उ तिविहा सञ्चित्ताचित्तमीसगा चेव । खित्तमि जंमि खित्ते काले कालो जहिं होइ ॥३२॥ भावइरिया उ दुविहा चरणिरिया चेव संजमिरिया य । समणस्स कहं गमणं निदोसं होइ परिसुदं? ॥३२८॥ आलंबणे य काले मग्गे जयणाइ चेव परिसुदं। भंगेहि सोलसचिहं जं परिसुद्धं पसत्थं तु ॥३२९।। चउकारणपरिसुद्ध अहवावि (हु) होज कारणजाए। आलंबणजयणाए काले मग्गे य जइयचं ॥३३०॥ सवेऽवि ईरियविसोहिकारगा तहवि अस्थि उ विसेसो । उद्देसे उद्देसे चुच्छामि जहक्कम किंचि ॥ ३३१॥ पढमे उवागमण निग्गमो य अद्धाण नावजयणा य । विइए आरुद्धछलणं जंघासंतार पुच्छा य ॥३३२॥ तइयंमि अदायणया अप्पडिबंधो य होइ उवहिमि। बजेयत्वं च सया संसारियरायगिहगमणं ॥३३३॥(अ०३,१२)जह वकं तह भासा जाए छकंच होइ नायचं । उप्पत्तीए१ तह पज्जवर तरे३ जायगहणे४ य॥३३४॥ सोऽवि य वयणविसोहिकारगा तहवि अस्थि उविसेसो।वयणविभत्ती पढमे उप्पत्ती जणा बीए॥३३५॥ (अ०४.१३)पढमे गहणं बीए धरणं पगयं तु वश्वत्येणं। एमेव होइ पायं भावे पायं तु गुणधारी॥३३६॥ (अ०५.६,१४-१५)दो खित्ते काले भावेऽवि य उम्गहोचउदाउादेविंदरायउम्गह२ मिहव३ सागरिय साहम्मी५॥३३७॥ दाम्गहो उतिविहो सचित्ताचित्तमीसगो चेव । खित्तुग्गहोऽवि निविहो दुविहो कालुग्गहो होइ॥३३८॥ मइउग्गहोय गहणुग्गहोय भावुम्गहो दुहा होइ। इंदियनोइंदियअत्यवंजणे उम्गहो दसहा॥३३९॥ गहणुमाहम्मि अपरिगहस्स समणस्स गहणपरिणामो। कह पाडिहारियाऽपाडिहारिए हो जायचं?॥३४०॥(अ.७,१६) सत्तिकगाणि इकस्सराणि पुष भणियं तहिं ठाणं। उबवाणे पगयं निसीहियाए तहिं छकं ॥३४१॥ (अ०८-९.१७-१८) उच्चवह | सरीराओ उच्चारो पसवइत्ति पासवणं । तं कह आयरमाणस्स होइ सोहीन अइयारो॥३४२॥ मुणिणा छकायदयावरेण सुत्तभणियंमि ओगासे। उच्चारविउस्सगो कायशो अप्पमत्तेणं॥३४३॥(अ.१०, | ११ दर्ष संठाणाई भावो वनकसिणं सभावो यादवं सहपरिणयं भावो उगुणा य कित्तीय॥३४४ाद संठाणाई भावो वन कसिणं सभावोया[दवं सहपरिणयं भावो उगुणा य कित्तीय] ॥३४५॥ |१३ श्री आचारांग नियुक्ति मुनि दीपरत्नसागर १३४४

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