Book Title: Aagam Manjusha N 01 Aayaro Nijjutti Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri Publisher: Deepratnasagar View full book textPage 8
________________ सारो?। तस्स य सारो सारं जह जाणसि पुछिओ साह ॥२४३॥ लोगस्स सार धरमो धम्मंपिय नाणसारियं विति। नाणं संजमसारं संजमसारं च निव्याणं ॥२४४॥ चारो चरिया चरणं एगटुं वंजणं तहिं छकं । दशं तु दारूसंकमजलथलचाराइयं बहुद्दा ॥२४५॥ खित्तं तु जंमि खित्ते कालो काले जहिं भवे चारो। भावंमि नाणदंसण चरणं तु पसस्थमपसत्यं ॥२४६॥ लोगे चठविहंमी समणरस चउबिहो कहं चारो? होइ थिई अहिगारो बिसेसओ खित्तकालेसुं ॥२४ा पावोवरए अपरिग्गहे अ गुरुकुलनिसेवए जुत्ते। उम्मग्गवजए रागदोसविरए य से विहरे॥२४८॥ अ०५। पढमे नियगविहुणणा कम्माणं वितियए तइयगंमि । उवगरणसरीराणं चउत्थए गारवतिगस्स ॥२४९॥ उवसम्गा सम्माणय विहूअणा पत्रमंमि उद्देसे । दवधुयं वत्याई भावधयं कम्ममट्टविहं ॥२५०॥ अहियासित्तुवसग्गे दिव्ये माणुस्सए तिरिच्छे य। जो विहुणइ कम्माई भावधुयं तं वियाणाहि ॥२५॥अ०६। गाहावइसंजोगो कुसीलसेवा तहेवय सपकखे । परिणाए य विवेगो पढमुद्देसम्मि अहिगारो॥२५२॥ बीए मम्गविजद्दणा देहविभूसा य मेहुणासेवा। गम्भस्स य आदाणं परिसाडण पोसणा चेव ॥२५३॥ तइए खलुकभावो आमिसपुच्छाविजहणा वसणे। पासवणुचाराणं किरिया धुवणं च वत्थस्स ॥२५४॥ विधुवणवेहाणसहत्थकम्मा इत्थीण विप्पजणा य। देहस्स य परिकम्मं तिसमुट्ठाणंति जहियवं ॥ २५५ ॥ चउथमि य धुवणविही परिहरणविही यहोइ वत्थस्स । तस्सेव वण्णकरणमणुनवणावग्गहस्सेव ।। २५६ ॥ कडगासणपरिभोगो सिज्जायरपिंडवजणं चेव । सपरिग्गहपरिमाणं विवज्जणा सन्निहिस्सेव ॥ २५७॥ पंचमए अट्टपदे अजणधम्ममि तह समुट्टाणं । थावरकायाण दया अकोसवहाहियासणया ॥२५८ ॥ तसकायसमारंमो गिहमत्तविक्जणं नवित्थीणं। जे याविय अविदिण्णा ठाणा तेसिंच सवेसि ॥२५९ ॥ छठे परिवाओ संजमाउ धुवर्णमि जो अ अहिगारो । आसेवणया य भवे सिणाणपरिभोगवजणया ॥२६० ॥ सम्मत्ते निचलया सीयपरीसहहियासणं धुवणं । सूईमाईयाणं च सण्णिही अट्ठपडिकाते ॥२६१॥ आसंदीयअकरणं उवएसाणानिकायणा चेव । संलेहणियाणेया भत्तपरिणंतकिरिया य ॥२६२॥ पाहणे महसदो परिमाणे चेव होइ नायब्वो। पाहण्णे परिमाणे य छविहो होड निक्खेवो ॥२६३॥ दवे खित्ते काले भावमि य होति या पहाणा उ। तेसि महासहो खल पाहणेणं तु निष्फो ॥२६४॥ दवे खित्ते काले भावंमि य जे भये महंता उ। तेस महासदो खल पमाणओ होति निष्फनो ॥२६५॥ दवे खित्ते काले भावपरिण्णा य होइ बोद्धवा । जाणणओ व वक्खाणओ य दुविहा पुणेकेका ॥२६६॥ भावपरिण्णा दुबिहा मूलगुणे चेव उत्तरगुणे य। मूलगुणे पंचविहा दुविहा पुण उत्तरगुणेसु ॥२६॥ पाहणणेण उपमयं भावपरिणाए य तहय दुविहाए। परिणाणेसु पहाणे महापरिण्णा तओ होइ॥२६८॥ देवीणं मणुईणं तिरि खजोणीगणाण इत्थीणं । तिविहेण परिचाओ महापरिणाएँ निजुत्ती॥२६९॥अ०७: असमणुनस्स विमुक्खो पढमे बिइए अकप्पियविमुक्खो। पडिसेहणा य रुट्ठस्स चेव सम्भावकहणाय ॥२७०॥(२५२) तइयंमि अंगचिट्ठाभासिय आसंकिए य कहणा य।सेसेसु अहीगारो उवगरणसरीरमुक्खेसु ॥२७१॥ उद्देसंमि चउत्थे चेहाणसगिद्धपिट्ठमरणं चापंचमए गेलनं भत्तपरिना य बोदवा ॥२७२॥ छटुंमि उ एगत्तं इंगिणिमरणं च होइ बोदवं। सत्तमए पडिमाओ पायवगमणं च नायवं ॥२७३॥ अणुपुत्रिविहारीणं मत्तपरिना य इंगिणीमरणं । पायवगमणं च तहा अहिगारो होइ अट्ठमए ॥२७४॥ नामंठवणविमुक्खो दवे खित्ते य काल भावे य। एसो उ विमुक्खस्सा निक्खेवो छविहो होइ ॥२७५॥ दवविमुक्खो नियलाइएमु खित्तमि चारयाईमुं। काले चेइयमहिमाइएसु अणघायमाईओ॥२७६॥ दुविहो भावविमुक्खो देसविमुक्खो यसवमुक्खो य । देसविमुक्खा साहू सबविमुक्खा भवे सिद्धा ॥२७७॥ कम्मयदधेहि समं संजोगो होइ जोउ जीवस्स। सो बंधो नायवो तस्स वियोगो भवे मुक्खो ॥२७८॥ जीवस्स अक्तजणिएहि चेव कम्मेहिं पुच्चपदस्स। सञ्चविवेगो जो तेण तस्स अह इत्तिओ मुक्खो ॥२७९॥ भत्तपरिचा इंगिणि पायवगमणं च होड नायकं । जो मरइ चरिममरणं भावविमुक्खं वियाणाहि ॥ २८० ॥ सपरकमे य अपरकमे य वाघाय आणुपुत्रीए । सुत्तत्थजाणएणं समाहिमरणं तु काययं ॥ २८१॥ सपरक्कममाएसो जह मरणं होइ अजवइराणं। पायवगमणं च तहा एवं अपरकम मरणं ॥२८२॥ अपरकममाएसो जह मरणं होइ उदहिनामाणं । पाओवगमेऽपि यतहा एयं अपरकम मरणं ॥२८३॥ वाघाइयमाएसो अवरदो हुज अनतरएणं । तोसलि महिसीइ हओ एयं वाघाइयं मरणं ॥२८४॥ अणुपुश्विगमाएसो पञ्चजासुत्तअत्थकहणं चावीसजिओ (उ) निन्तो मुको तिवि. हस्स नीयस्स ॥२८५॥ पडिचोइओ य कुविओ रण्णो जह तिक्ख सीयला आणा। तंबोले य विवेगो घट्टणया जा पसाओ य ॥२८६॥ निष्फाइया य सीसा सउणी जह अंडगं पयत्तेणं। बारससंवच्छरियं सो सलेहं अह करेंड ॥२८॥चत्तारि विचित्ताई विगईनिजहियाई चत्तारि । संवच्छरे य दुनि उ एगंतरियं तु आयाम ॥२८८॥ नाइविगिट्ठो उ तवो छम्मासे परिमियं तु आया. मं।अनेऽविय छम्मासे होइ विगिटुंतवोकम्म॥२८॥ वासं (प्र. बारस) कोडीसहियं आयामकाउ आणुपुच्चीए। गिरिकंदरंमि गंतुं पायवगमणं अद्द करेइ ॥२९॥ कह नाम सो तबोकम्मपंडिओ जो न निचुजुत्तप्पा। लहुविशी परिक्खेवं वच्चइ जेमंतओ चेव ? ॥२९॥आहारेण विरहिओ अप्पाहारो य संवरनिमित्ताहासंतोहासंतो एवाहारं निरूमिज्जा॥२९॥ अ०८ाजो जइया तित्थयरो सो तइया अप्पणो य तित्वम्मि । वपणेह तवोकम्म ओहाणसयंमि अज्झयणे ॥२९३॥ सबेसि तवोकम्मं निरुवसम्गं तु वणिय जिणाणं । नवरं तु बदमाणस्स सोवसरगं मणेयकं ॥ २९४॥ । १२- श्री आचारांग नियुक्ति मुनि दीपरत्नसागर reap-TARA ९३४३Page Navigation
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