Book Title: Aagam Manjusha N 01 Aayaro Nijjutti Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri Publisher: Deepratnasagar View full book textPage 4
________________ पायतलाणं अहो दिसा सीसउवरिमा उडा। एया अट्ठारसवी पण्णवगदिसा मुणेयवा ॥५४॥ एवं पकप्पिआणं दसण्ह अट्ठण्ह चेव य दिसाणं । नामाई बुच्छामि जहकम आणुपुत्वीए ॥५५॥ पुवाय पुचदक्षिण दक्षिण तह दक्षिणावरा चेव । अवरा य अवरउत्तर उत्तर पुवुत्तरा चेव ॥५६॥ सामुत्थाणी कविला खेलिजा खलु तहेव अहिधम्मा। परियाधम्मा य तहा सावत्ती पण्णवित्तीय ॥५७॥ हेहा नेरइयाणं अहो दिसा उवरिमा उ देवाणं । एयाई नामाई पण्णवगस्सा दिसाणं तु ॥५८॥ सोलस तिरियदिसाओ सगडुडीसंठिया मुणेयवा। दो मल्लगमूलाओ उड़े अअहेवि य दिसाओ ॥५९॥ मणुया तिरिया काया तहऽग्गवीया चउक्कगा चउरो । देवा नेरइया वा अट्ठारस होति भावदिसा ॥६०॥ पण्णवगदिसाऽद्वारस भावदिसाओऽवि तत्तिया चेव । इक्विकं विधेजा इति अट्ठारसऽद्वारा ॥६१॥ पण्णवगदिसाए पुण अहिगारो अत्य होइ णायबो। जीवाण पुग्गलाण य एयासु गयागई अत्थि ॥ ६२॥ केसिंचि नाणसण्णा अस्थि केसिंचि नस्थि जीवाणं । कोऽई A परंम लोए आसी? कयरा दिसाओ वा ? ॥ ६३ ॥ जाणइ सयंमईए अन्नेसिं वावि अन्तिए सोचा । जाणगजणपण्णविओ जीवं तह जीवकाए वा ॥ ६४ ॥ इत्थ य सहसंमइअत्ति जं पर्य तत्थ जाणणा होई । ओहीमणपजवनाणकेवले जाइसरणे य॥६५॥ परवाइवागरणं पुण जिणवागरणं जिणा परं नस्थि । अण्णेसिं सोचत्तिय जिणेहिं सबो परो अण्णो ॥ ६६ ॥ तत्थ अकारि | करिस्संति बंधचिंता कया पुणो होइ। सहसम्मइया जाणइ कोई पुण हेतुजुत्तीए॥६७॥ अ०१ उ१॥ पुढवीए निक्खेवो परूवणा लक्षणं परीमाणं । उवभोगो सत्थं वेयणा य बहणा निवित्तीय ॥ ६८ ॥ नामंठवणापुढवी दवपुढवी य भावपुढवी य । एसो खलु पुढवीए निक्खेवो चउविहो होइ ॥ ६९ ॥ दवं सरीर भविओ भावेण य होइ पुढविजीवो उ । जो पुढविनामगोयं कम वेएइ सो जीवो ॥ ७० ॥ दुविहा य पुढविजीवा सुहुमा तह वायरा य लोगम्मि । सुहुमा य सबलोए दो चेव य चायरविहाणा ॥ ७१॥ दुविहा वायरपुढवी समासओ सोहपुढवि खरपुढवी। सण्हा य पंचवण्णा खरा य छत्तीसइविहाणा ॥ ७२ ॥ पुढवी य१ सक्करा२ वालुगा३ य उवले४ सिला५ य लोणू६ से७ । अय८ तंब९ तउअ१० सीसग११ रुप्प१२ सुवण्णे१३ य वइरे१४ य॥७३॥ हरियाले१५ हिंगुलए१६ मणोसिला१७ सासगं१८ जण१९ पवाले२० । अभपडल२१म्भवालुअ२२ बायरकाए मणिविहाणा ॥ ७४॥ गोमे२३जए य२४ रुयगे२५ अंके२६ फलिहे२७ य लोहियक्खे२८ य । मरगय२९ मसारगल्ले३० भुयमोयग३१ इंदनीले३२ य ॥७५॥ चंदप्पह ३३ वेरुलिए३४ जलकंते३५ चेव सूरकन्ते३६ य। एए खरपुढबीए नार्म छत्तीसई होई ॥७६॥ वण्णरसगंधफासे जोणिप्पमुहा भवंति संखेजा । गाई सहस्साई हुंति विहाणमि इकिके ॥७॥ वण्णमि य इकिक गंधमि रसंमि तह य फासंमि। नाणती कायचा विहाणए होइ इकिके॥७८॥ जे बायरे विहाणा पजना तत्तिआ अपजत्ता। मुहुमावि हुँति दुविहा पजत्ता चेव अपजत्ता ॥७९॥ रुक्खाणं गुच्छाणं गुम्माण लयाण वञ्जिवलयाणं । जह दीसइ नाणत्तं पुढवीकाए तहा जाण ॥८०॥ ओसहि तण सेवाले पणगविहाणे य कंद मूले य । जह दीसइ नाणत्तं पुढवीकाए वहा जाण ॥८१॥ इक्कस्स दुण्ह तिण्ह व संखिजाण वन पासिउं सका । दीसति सरीराइं पुढविजियाणं असंखाणं ॥८२॥ एएहिं सरीरेहि पञ्चक्खं ते परूविया हुंति। सेसा आणागिज्झा चक्खुप्फासंन जं(ते) इंति ॥८३॥ उवओग जोग अज्झवसाणे महसुय अचक्खुदंसे य। अट्ठविहोदयलेसा सन्नुस्सासे कसाया य ॥८४॥ अट्ठी जहा सरीरंमि अणुगयं चेयणं खरं दिटुं। एवं जीवाणुगयं पुढविसरीरं खरं होई ॥८५॥जे बायरपजत्ता पयरस्स असंखभागमित्ता ते । सेसा तिन्निवि रासी वीसुं लोया मिणिज्ज सबधनाई। एवं मविजमाणा वंति लोया असंखिज्जा ॥८७॥ लोगागासपएसे इक्किकं निक्खिवे पुढविजीवं। एवं मविज्जमाणा हवंति लोआ असंखिज्जा ॥ ८८॥ निउणो उ होइ कालो तत्तो निउणयरयं हबह खित्तं । अंगुलसेढीमित्ते ओसप्पिणिओ असंखिज्जा ॥ ८९॥ अणुसमयं च पवेसो निक्खमणं२ चेव पुढविजीवाणं। काए३ कायट्टिइया४ चउरो लोया असंखिजा ॥९०॥ बायरपुढविकाइयपज्जत्तो अन्नमन्नमोगाढो। सेसा ओगाहंते सुहुमा पुण सबलोगंमि ॥९१॥ चंकमणे यट्ठाणे निसीयण तुयट्टणे य कयकरणे। उच्चारे पासवणे उवगरणाणं च निक्खिवणे ॥५२॥ आलेवण पहरण भूसणे य कयविक्कए किसीए या भंडाणंपि य करणे उवभोगविही मणुस्साणं ॥९३॥ एएहिं कारणेहि हिंसंती पुढविकाइए जीवे। सायं गवेसमाणा परस्स दुक्खं उदीरंति ॥९४॥ हलकुलियविसकुद्दालालित्तयमिगसिंगकट्ठमम्गी य। उच्चारे पासवणे एयं तु समासओ सत्यं ॥९५॥ किंची सकायसत्थं किंची परकाय तदुभयं किंची। एयं तु दवसत्थं भावे अ असंजमो सत्थं ॥९६॥ पायच्छेयण भेयण जंघोरु तहेव अंगुवंगेसुं । जह हुंति नरा दुहिया पुढविक्काए तहा जाण ॥ ९७॥ नत्थि य सि अंगुवंगा नयाणुरूवा य वेयणा तेसिं। केसिंचि उदीरंती केसिंचऽतिवायए पाणे ॥९८॥ पवयंति य अणगारा ण य तेहिं गुणेहिं जेहिं अणगारा। पुढविं विहिंसमाणा न हु ते वायाहिं अणगारा॥९९॥ अणगारवाइणो पुढविहिंसगा निग्गुणा अगारिसमा । निदोसत्ति य मइला विरइदुगुंछाइ मइलतरा ॥१०॥ केई सयं यहंती केई अन्नेहिं उ वहार्विती । केई अणुमत्रंती पुढविकायं वहेमाणा ॥१०१॥ जो पुढवि समारंभइ अमेऽवि य सो समारभइ काए । अनियाए अनियाए दिस्से य तहा अदिस्से य ॥१०२॥ पुढविं समारभंता हणंति तनिस्सिए य बहुजीवे । सुहुमे य बायरे य पजत्ते या अपजत्ते ॥१०३॥ एवं वियाणिऊणं पुढवीए निक्खिवंति जे दंडं । तिविहेण सबकालं मणेण वायाएं काएणं ॥ १०४ ॥ गुत्ता गुत्तीहिं सबाहिं, समिया समिईहिं संजया। ३४-श्री आचारांगं नियुक्ति मुनि दीपरत्नसागर १३३९Page Navigation
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