Book Title: Aagam Manjusha 38A Chheyasuttam Mool 05 A Jiyakappo
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar

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Page 34
________________ कण्णसमजाला। सत्तमए समतीया अणंतरा होति सत्तमुवी ॥ ७ ॥ पारंपर पिडुडादिसु अगणीघट्टादि तत्थ दोसा तु । भयणा तु जंतचुलिमु इणमो तु तहिं मुणेयो ॥ ८ ॥ पासोलित कडा परिसाडी णत्थि तंपिय विसालं । सोवि य अचिरच्छूढो उच्छुरसो गाइउसिणो य ॥ ९ ॥ गहणमघट्टिय कण्णे घट्टित छारादिपडण अग्गिवहो। उसिणोदगस्स गुलरसपरिणामिय गहणऽणचुसिणा ।। १५७० ।। दुविह विराहण उसिणे उड्डण हाणी य भागभेदो य। अम्बुसिणातों ण घेप्पति जंतोलित्तेस जयणा तु ॥ १ ॥ वाउक्खित्तानंतर पप्पडगादी तु होति णाया। वत्थिदतिपूरिओवरिपतिट्टिय परंपरं होति ॥ २ ॥ हरियादि अनंतर पूरियाइ पारंपरे पिहुडमादी । गोणादिपिड पूवादणंतरे भरगकुतिगितरं ॥ ३ ॥ स ण कप्पएयं णिक्खित समासतो समक्खानं पुढवादीणं एत्तो आवत्ती दाण वोच्छामि ॥ ४ ॥ पुढवादी जाव तसे अणंतवणकाय मोत्तु णिक्खिते । संति अणंतर लहूगा परंपर होति मासलहुं ॥ ५ ॥ चतुलहुए आयामं मासलहू दाण होति पुरिमड्ढे । एवं सच्चित्तम्मी भणियं मीसे अतो वोच्छं ॥ ६ ॥ एतेसु चैव पुढवादिएस मीसे अणंतरे लहुओ। होति परंपर पणगं दाणं एतो तु वोच्छामि ॥ ७ ॥ लहुमा पुरिमड्ढे पणगे पुण दाण होति णिब्गितिं । वणकायमणंतेमु आवत्ती दाण वोच्छामि ॥ ८ ॥ वणकायअणतेसु णिक्खित्त अणंतरे तु चतुगुरुगा। होति परंपरि गुरुओ दाणं तु अतो तु वोच्छामि ॥ ९ ॥ चतुगुरुए तु चउत्थं गुरुमासे दाणमेगभत्तं तु । आवत्ती दाणंपिय पिहियम्मि अतो उ वोच्छामि ॥। १५८० ॥ पिहियाणंताणंतरपरंपरे चैव होति गुरुपणगं। लहूपणगं तु परित्ते दोसुवि दाणं तु णिश्विगती ॥ १ ॥ आवती दाणं वा पुढवादीणिक्खिवंत भणियं तु । एतो समासयो चिय पिहितद्दारं पवक्खामि ॥ २ ॥ सचित्तादिसु अथिनपिहिय चतुभंग नह य संजोगा। जह भणिया णिक्खित्ते तह चैव य होन्ति पिहितेवि ॥ ३ ॥ सश्चित्त मीस एको एक तोऽचित्त एत्य चउभंगा। आदिदुवै पडिसेहो ततिए भंगम्मि मग्गणया ॥ ४ ॥ अच्चित्त सचिनेणं अतिरं सतिरं च जं भवे पिहितं । पुढवादिएसु छस्मुवि लोट्टादी अतिर पुढबीए ॥ ५ ॥ पच्छियपिहुडादि तिरं ओगाहिमगादिऽणतरं होति । वद्धणियादि परंपर अगणिकाए इमं होति ॥ ६ ॥ अतिरं अंगाराई तहियं पुण संतरो सरावादी तत्येव अतिर वायू परंपरो वत्थिणा पिहिते ॥ ७ ॥ अइरं फलादिपिहियं वणम्मि इतरं तु पच्छिपिडादी। कच्छव (त्थइ) संचारादी अतिरतिरं पच्छियादीहिं ॥ ८ ॥ तइए भंगे मग्गण भणिएस चउत्यभंगभयणा तु । अश्चित्त अचित्तेणं पिहिए का भयण ? सुणसु इमा ॥ ९ ॥ चतुभंगो पहिएणं गुरु गुरुएण गुरुअ लहुएणं । लहुयं गुरुएण तहा लहुएण चरिम तहिं गज्झो ॥ १५९० ॥ पुढवादीणं कमसो आवत्ती दाण जइ तु णिक्खिते। आयबिराहण गुरुयतिका वरं तु चउगुरुया ॥ १ ॥ एत्य उ दाण चतुत्यं एतो वोच्छामि साहरणदारं । साहरणं उकिरणं विरेयणं चेव एगहं ॥ २ ॥ मत्तेण जेण दाहिति तत्थ अवेजं तु होज्ज जं दश । तं साहरितुं अण्णाहिं मत्तेणं देइ साहरणा ॥ ३ ॥ सा पुण उसु जातवा सचित मीसा तहेव अचित्ता । एत्यवि जह णिक्खिते भंगा संजोग नह चेव ॥ ४ ॥ सबित्तमीस आदिए सु गन्धि मग्गण विवेगो । ततियम्मि मग्गणा तू उस भोमादीस साहरणे ॥ ५ ॥ चरिमे भंगे भयणा जं दुहमश्चित्त का तहिं भयणा ? भष्णइ सुणसू तहियं चउभंगो होति इणमो तु ॥ ३ ॥ सुके सुकं पढमं सुके उतं तु बितियओ भंगो। उाडे सुकं तइओ उले उलं चउत्थो तु ॥ ७ ॥ एकेके चउभंगो सुक्कादीएस चउसु भंगेसु। थोवे थोवं थोवे बहुयं बहु थोव बहु बहुगं ॥ ८ ॥ जन्थ तुथोवे थोवं सुक्खे उचभति तं गज्नं । जति तं तु समुक्खित्तुं थोवाहारं दलइ मत्तं (अनं) ॥ ९ ॥ सेसेस तीसुंपी दाता भंगेसु होति णातशो थोव बहुं बहुग थोवो बहु बहु वेव इणमो तु । १६०० ।। उक्वेवे णिक्खेवे महाउभाणम्मि लुद वह डाहो। छक्कायवहो य तहा अचियत्तं वेव वोच्छेदो ॥ १ ॥ थोवे योवं छूढं सुक्खे उलं तु उसे सुक्खं तु । बहु तु अणाहणं कडदोसो सोति कातूणं ॥ २ ॥ साहरणेयं भणियं आवत्ती दाण जह तु णिक्खिते। दायगदारं अहुणा समासओऽहं पवक्खामि ॥ ३ ॥ बाले बुढे मत्ते उम्मते वेविए य जरिए य। अंधेाइए पगलिए आरूढे पाउयाहिं च ॥ ४ ॥ नृत्यंदुणियलबदे विवजिए चैव हत्यपाएहि तेरासि गुडिणी बालवच्छ भुजंति घुमती ॥ ५ ॥ भजेन्ती य दलेन्ती कंडेन्सी चैव तह य पीसेन्ती । पिर्जती संवंती कत्तंती पमद्दमाणी य ॥ ६ ॥ उक्कायवग्गहत्या समणट्ठा णिक्खिवित्तु ते चैव ते चेवोगान्ती सघताऽऽरभंती य ॥ ७ ॥ संसनेण तु दद्वेण लिनहत्था य लित्तमत्ता य । ओयत्तेन्नी साहारणं च देन्ती य चोरिययं ॥ ८ ॥ पाहुडियं च ठवेन्ती सपचवाया परं च उदिस्स। आभोग अणाभोगेण दलती वज्ञणिजा उ ॥ ९ ॥ एनेसि दायगाणं गहण केसिंचि होति भइयई। केसिंची अग्गहणं तप्पडिवक्खे भवे गहणं ॥ १६१० ॥ एते दायगदोसा एतेहिं दिजमाण गत्रि कप्पे जे तु अकारणे गेहे पच्छिल नेसि वोच्छामि ॥ १ ॥ बाले वुड्ढे मत्ते उम्मते वेषिए य जरिए य एतेसिं मास आवत्ती दाण पुरिमइदं ॥ २ ॥ अंधेपगलियादी जाव तु दारं तु बालवच्छन्ति। पत्तेयं चतुगुरुगा दाणं पुण होयऽभत्तट्टं ॥ ३ ॥ भुजण घुसुलेन्तीए आवत्ती चतुलहू मुणेयशा दाणं आयामंती भन्नणमादी अतो वोच्छं ॥ ४ ॥ भञ्जन्ती य दलेती जाव तु छकायत्रग्गइत्यन्ति । समणट्टा ते चैव तु णिक्खिव ओगाह घट्टन्ती ॥५॥ एत्थ तु विसरिसदाणं पच्छित्तं होति कार्याणिप्फण्णं सेसेस दारेसुं चतुदुगा दाणमायामं ॥ ६ ॥ एते दायग भणिता एनो उम्मीसयं पवकरवा१०४१ जीतकल्पभायं मुनि दीपरत्नसागर PREHRANS

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