Book Title: Aagam Manjusha 38A Chheyasuttam Mool 05 A Jiyakappo
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar

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Page 56
________________ भण रायरूवी, तमिच्छर संजतरूवि दटुं। णिक्यतिताण स पत्थिवस्स, जहिं णिवो तत्थ तयं पवेसे // 9 // तं पूयतित्ताण सुहासणत्थं, पुच्छिसुराया गतकोउहल्लो। पण्हे उराले असुए कयाई. स यावि आइक्वति पत्यिवस्स // 2670 // जारिसया सक्कादीण आयरक्खा ण तारिसो एसो। तुह राय ! दारपालो तंपिय चकीण पडिरूवी // 1 // अट्ठारससीलसहस्सधारया बाहोन्ति साहुणो अयं / तं पति पडिरूवित्तं अतियारणिसेवणा पत्तो ॥२॥णिजूढो मि णरीसर ! खेत्तेवि जतीण अच्छितु ण लभे / अतियारस्स विसोहिं पकरेमि पमायमूलस्स // 3 // घम्मकहा आतुट्टण पुच्छणं दीवणा य कजस्स। किं पुण हवेज कजं? इमेहिं होजाहि एगतरं // 4 // वायपरायणकुविओ चेतियता संजतीगहणे। णिविसयादि चतुण्हवि कजाण हवेज एगतरं // 5 // संघो ण लभति कजं लद्धं कजं महाणुभावेणं / तुम्भंति विसजेमी सेविय संघोत्ति पृएति // 6 // भणति य राया संघं तुम्भं कर्ज करेमि अहमेयं / तुम्भेऽवि कुणह मनं एयस्सेयं विसजेह // 7 // अभत्थितो सयं वा रण्णा संघो विसजए तुट्ठो। आदीमाऽवसाणे सो यावि हवेज सोहीए॥८॥ देसं व देसदेसं सई व बहेज अहव मुञ्चेजा। छभागो से देसो दसभागो देसदेसो तु॥९॥ छम्मासवारवारसमासाणं वारसण्ह य समाणं / एके दो दा मासा चउवीसा होति उम्भागो // 2680 // अट्ठारस छत्तीसा दिवसा छत्तीस. मेव वरिसं च / बावत्तरिं च दिवसा दसभागेणं हवेजा वा // 1 // आसायणपारंची जहण्ण छम्मास मासों छम्भागो। छम्भागेण वरिसे दो मासा हुंति णातबा // 2 // पडिसेवणपारंची वरिसे दो मास होन्ति छब्भागे। वरिसाण वारसण्हं मासा चतुवीस छम्भागे // 3 // दसभागेणऽट्ठारस दिवसा छष्हं हवंति मासाणं / बरिसस्स तु वसभागे दिवसा छत्तीसई हाँति // 4 // वरिसाण बारसहं वरिसं बावत्तरि चव्होरत्ता / दसभागेण हवंति हु एसो खलु देसदेसो तु॥५॥ एवं तस्स तु संघो तुट्ठो देसं व देसदेसं वा। मुंचेज वहेज्जा वा अहवा सचं व प्रोसेजा // 6 // अहव अगीयणिमित्तं अप्परिणामे य तस्स ववहारं। णवविह पत्थारेत्ता गेष्हसु एवं लहुसभत्तं // 7 // हत्यं तु भमाडेतुं दरिसेतुं णवविहंपि ववहारं। ताहे भण्णति एवं सो गेण्हसु लहुसयं एयं // 8 // अणवट्ठप्पो तवसा तवपारंची य दोऽवि वोच्छिण्णा। चोहसपुषधरम्मी धरेंति सेसा तु जा तित्थं // मू०१०२॥९॥ पारंचिय अणवट्ठा तवसा आरेण भहबाहुओ। वोच्छिण्णा दो तेसि सेसा तु धरति जा तित्यं // 2690 // लिंगेण खेत्त काले घरेन्ति पारंचियाऽणवट्ठा जे। लिंगेणं अणुसजति दवे भावे य जा तित्यं // 1 // इति एस जीतकप्पो समासतो सुविहिताणुकंपाए। कहितो देयोऽयं पुण पत्तेसु परिच्छियगुणेसु // म०१०३॥२॥ इति एस अणंतरतो उहिट्ठो होति जीतकप्पो तु। जीतं आयरणिज कप्पो पुण छविहो इणमो॥३॥ आजीवियधरणाओ व अहब जीतं इमं मुणेया / जीतस्स तस्स कप्पो एत्यं जो जीतकप्पो सो॥४॥ सामत्ये वण्णणाए य, छेदणे करणे तहा। ओवम्मे आहिवासे य, कप्पसहो तु वण्णितो // 5 // छेदणे वनणे चेव, कप्पसहो इहं कतो। जीयस्स वण्णणा जीतकप्पो तह छेदणं चेव // 6 // एयस्स जीयकप्पस्स समासो इति इहं मुणेतहो। संखेवो य समासो ओहोत्ति व होन्ति एगट्ठा // 7 // सोभणविही तु जेसिं सोभणविहिता व सुविहिता ते तु / तेसिं अणुकंपाए कहितो देयो य पत्तेसु // 8 // सुत्तेणवि अत्येणवि जो पत्तो स खल जीयकप्पस्स। जोग्गो भणितो इयरो होति अजोगोत्ति णातबो॥९॥ पुणसहो तु विसेसणे किन्नु विसेसेति? तिन्तिणादीयं। एते तु बिसेसेती विवरीया होन्ति पत्ता तु॥२७००। संविग्गऽवजभीरू परिणामो जो य होति गीयत्यो। आयरियवष्णवादी संगहसीलो अपरितन्तो॥१॥ मेहावी य बहुसुतो गुरुअमुयी णिचमप्पमत्तो य। एमादिगुणसमग्गो जीतस्स स होति पत्तोत्ति ॥२॥जह तावछेजणिहसे अविकोवि सुवण्णयं मुणेतवं। तह अविकारी जो खलु आदी मज्झे य अवसाणे // 3 // एवं देजा सुपरिक्खियस्स णऽअस्स जीतववहार। अणरिह देन्ताऽऽरोवण आणादी जंच पाविहिती॥४॥ पंचमहायभेदो छक्कायवहो य तेणऽणुण्णाओ। सुहसीलणीयगाणं कहयति जो। ईतरहस्सं अप्पाहारं विणासेति // 6 // मरेज सह विजाए, काले णं आगए विदु। अपत्तं तु ण वाएजा, पत्तं च ण विमाणए // 7 // वितियपए वाएजा अदाणादीहि कारणजाए। बहुसो तप्पिस्सति वा वेयावच्चादिणा अम्हें // 8 // अप्पग्गंय महत्यो इति एसो वण्णिओ समासेणं / पंचमतो ववहारो नामेण जीयकप्पोति // 9 // कप्पववहाराणं उदहिसरिच्छाण तह णिसीहस्स ।सुतरतणविन्दुणवणीतभूतसारेस णातयो॥२७१०॥ कप्पादीए तिष्णिवि जो सुत्तत्येहिंणाहिती णितुणं / णिगदिस्सति सो एयं सीसपसीसाण ण हुअण्णो॥२७११॥ जीतकल्पच्छेदसूत्रसभाष्यं५,बीरविभोः२४६८ उपसिद्धादि शिलोत्कीर्णसकलागमोपेतश्रीवर्धमानजैनागममन्दिरे शिलायामुत्कीर्ण शोधितं चाचार्यानन्दसागरेण मुनि दीपरनसागर 1063 जीतकल्पभाष्यं -

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