Book Title: Aagam Manjusha 38A Chheyasuttam Mool 05 A Jiyakappo
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar
View full book text ________________
करणा उ जे तू अणभिगया चेव णायवा ॥ १ ॥ चस्सद्देण थिराधिर गहिया तू एत्य तू समासेणं जंतयविहीकमेणं जीयाभिमएण देजाहि ॥ २ ॥ कतकरण अकयकरणा कयकरणा गच्छवासि इयरे य। अकयकरणा तु णियमा णायवा गच्छवासी तु ॥ ३ ॥ ते अभिगत अणभिगता अणभिगता थिरथिरा व होजाहि कतअभिगत जं सेवे अणभिगते अस्थिरे इच्छा ॥ ४ ॥ अहवा णिरवेक्खियरा दुबिहा पुरिसा समासतो होंति । णिरवेक्खो जिणमादी ते णियमा होंति कतकरणा ॥ ५ ॥ सावेक्खा होंति तिहा आयरिय उवज्झ भिक्खुणो चेव । कतकरणमकतकरणा आयरिया चेवुज्झाया ॥ ६ ॥ भिक्खु गीयाऽगीया गीयत्थ थिराऽथिरा य बोदशा कतकरण अकतकरणा एकेका होन्ति ते दुविहा ॥ ७ ॥ अग्गीयावि थिराऽथिर कयाsकया चेव हाँति एकेका कतकरण अकतकरणा केरिसया होंति ? सुणसु इमे ॥ ८॥ छट्टमाइएहिं कतकरणा ते तु उभयपरियाए। अभिगत कतकरणत्तं जं जोगतवारिहा केवी ॥ ९ ॥ णिरवेक्खा एगविहा सावेक्खाणं तु किं णिमित्तेनं तित्रिहो भेदो तु कतो आयरियादी ? इमं सुणसु ॥ २२८० ॥ भण्णइ जुवरायादी वत्युविसेसेण दंडो जह लोए। तह वत्युविसेसेणं आयरियादीण आरुवणा ॥ १ ॥ आयरियउवज्झाया दोण्णिवि नियमेण होंति गीयत्था। गीयत्थमगीयत्था भिक्खू पुण होंति णातथा ॥ २ ॥ कारणमकारणं वा जयणाऽजयणा व णत्थऽगीयत्थे । एतेण कारणेणं आयरियादी निविह भेदो ॥ ३ ॥ कजाकज्ज जयाजय अविजाणतोऽगीयो य जं सेवे। सो होति तस्स दप्पो गीते दप्पाजते दोसा ॥ ४ ॥ अ - बिसिट्टा आवती चरिमं सव्वेसि तेण सावेक्वे चरिमं चिय कयकरणे आयरिए अकऍ अणवट्टो ॥ ५ ॥ कतकरणउवज्झाए अणवडो होति मूलमकयम्मि भिक्खु गीयथिरम्मी कतकरणे मूलमेव भवे ॥ ६ ॥ अकयथिरम्मी छेदो अस्थिरकयकरणे होति सो चेव । अस्थिरकते उ छम्गुरु अगीतथिरकरणे ते चेव ||७|| अम्गीतअथिरे अकते छड़हुगा होति तू मुणेतव्वा । अग्गीय अथिरकयकरण च्छल चउगुरू अकते ॥ ८ ॥ एसादेसो एको अयमण्णो वितियओ तु आदेसो चरिमं चिय आवण्णे कतकरणगुरुम्मि अणवट्टो ॥ ९ ॥ अकतकरणम्मि मूलं मूलमुवज्झाएँ होति कतकरणे अकतकरणम्मि छेदो इय णेयं अइदुकंतीए ॥ २२९० ॥ एमेव य अणवद्धं आवण्णे होति दोण्णि आदेसा। णिरवेक्खो ण भणिएत्थ जं दोण्णि ण होंति तस्सेते ॥ १ ॥ अहुणा मूलावण्णो सब्बे मूलं तु होति णिरवेक्खे। मूलं चेव गुरुस्सवि कतकरणे अकते छेदो तु ॥ २ ॥ कतकरणउवज्झाए छेदे अकतम्मि होन्ति छग्गुरुगा। इय अड्ढो कंती यं अयमण्णा आएसो ॥ ३ ॥ सावे+खोत्ति व काउं गुरुस्स कडजोगिणो भये छेदो। अकतकरणम्मि छग्गुरु कतकरण उवज्झे उग्गुरुगा ॥ ४ ॥ अकते छउडुगा तू इय अड्ढो कंतीए तु णातच्छं । अहुणा छग्गुरुगे तू आढत्तं ठाइ गुरुभिण्णे ॥ ५ ॥ छलहुयाढत्तम्मी ठायति लहुए तु भिण्णमासम्मि। चतुगुरुआढत्तम्मी अन्नम्मी ठाइ गुरुवीसे ॥ ६ ॥ चतुलहुए बीसाए गुरुमासे ठाति पण्णरसहिं तू । लहुए लहुपण्णरसे गुरुभिण्णे ठाति गुरुदसहिं ॥ ७॥ लहुभिण्णे दसलहुए गुरुबीसा अंते ठाति गुरुपणए। लहुवीसा आढत्तं अंतम्मी ठाति लहुपणए ॥ ८ ॥ पण्णरसहिं गुरुएहिं अंतम्मी अट्टमम्मि ठायति तु पण्णरसहिं लहुएहिं अंतम्मी ठाति छुट्टम्मि ॥ ९ ॥ दसगुरुए आढत्तं अंतम्मी ठायती चतुत्थम्मि दसलहुए आदत्तं ठायति तू अंते आयामे ॥ २३०० ॥ गुरुपणए आढत्तं एकासणयम्मि अंते ठायइ तू लहूपणए आढत्तं अंतम्मी ठाति पुरिमड्ढे ॥ १ ॥ अट्टमभत्ताऽऽदत्तं अंतम्मी ठायई अ णिव्विगती । जतविहीपत्थारो समासतो एसमक्खातो ॥ २ ॥ एवं तु अजयणाए साविक्खाणं तु होति पच्छित्तं । अह गीयत्यो सेवे कारण जतणाएँ तो सुद्धो ॥ ३ ॥ एयं तु कारणम्मी जनणासेविस्स वणिय दाणं । अहह्वावि इमं अण्णं आयरियादी जहाकमसो ॥ ४ ॥ आयरियउवज्झाए कतकरणे अकतकरण दुविहा तु । भिक्खुम्मि अभिगते या अणभिगते चैव दुविहो तु ॥५॥ अभिगत अकते या अणभिगते थिर तहेब अथिरे य। थिरे कतकरणे अकते अथिरे कतकरणमकए य ॥ ६ ॥ एते सव्वेऽवेगं आवत्ती पंचराइगाऽऽवण्णा । तं पणगं अविसिद्धं चउत्थमादीहिं विष्णेयं ॥ ७॥ आतरिए कतकरणे तं चिय पणगं तु होति दातां। अकतकरणे चउत्थं कयकरणे उवज्झे तं चैव ॥ ८ ॥ अकयम्मी आयामं भिक्खुम्मी अभिगतम्मि कतकरणे आयामं दायां अकयकरणे उ भत्ते ॥ ९ ॥ भिक्खुम्मी अणभिगते थिरकयकरणे य एगभत्तं तु । अकयम्मी पुरिम अणभिगए अस्थिरे कतम्मि ॥ २३१० ॥ पुरिमढो चिय णियमा अत्थिरजकयम्मि होति णिविगति अहवाऽणभिगय अथिरे इच्छाए तं च अण्णं वा ॥ १ ॥ एमेव य दसरायं सवे आवण्णमेगमावत्ति । कतकरणे आयरिए दसरायं चैव दायकं ॥२॥ अकयकरणम्मि पणगं कतकरणे पणगमेवुवज्झाए। अकतकरणे चउत्थं एवं तू अङ्गदुकंतीए ॥ ३ ॥ ता णेयष्ठ कमेणं जाव उ अंतम्मि होति पुरिमइदं । इय पण्णरसारदं ठायइ एकासणगमंते ॥ ४ ॥ वीसारखं ठायति आयामे भिण्णमासभत्तट्टे मासारदं पणगे दुमास दसराएं ठाय तु ॥ ५ ॥ नेमासे पण्णरसे चतुमासे ठाति बीसरातम्मि पणमासे पणी से छम्मा मासिए ठाति ॥ ६ ॥ छेदो दोमासीए मूले तेमासियम्मि ठायति तु । अणवद्वे चतुमासे पारंचिइए तु पणमासे ॥ ७ ॥ एए भणिता लहुगा सबैऽवि तवारिहा समासेणं । एमेव य गुरुगावी यवा अदुकंतीए ॥ ८ ॥ एमेव य मीसा वा अइदुकंतीऍ होन्ति तथा एमेव पंचपंचहिं मासादी सातिरेगादी ॥ ९ ॥ जा उम्मासा णेया तत्थवि उग्धाय तह १०५५ जीतकल्पभाष्यं मुनि दीपरत्नसागर
1
Loading... Page Navigation 1 ... 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56