Book Title: Aagam Manjusha 38A Chheyasuttam Mool 05 A Jiyakappo
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar
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6 घातो व भं(सं)गो वा ॥५॥ संबंधे संथवेसो एत्तो वोच्छामि संथवं वयणे। पुचिं पच्छा व तहा संथुणणं कुणति दाताए ॥६॥ गुणसंथवेण पुत्र संतासंतेण जो थुणेजाहि। दातारमदिSण्णम्मि सो वयणे संथवो पुत्रिं ॥ ७॥ सो एसो जस्स गुणा पयरंति अवारिया दसदिसासु । इहरा कहासु सुश्चति पञ्चक्खं अज दिहोत्ति ॥८॥ गुणसंथवेस पच्छा संतासंतेण जो थुणे
जाहि । दातारं दिण्णम्मी सो पच्छासंथवो वयणे ॥९॥ विमलीकय णे चक्टुं जहत्थतो वियरिया गुणा तुझं । आसि पुराणे संका इदाणि णीसंकियं जायं ॥१४७० ॥ तत्ववि M भद्दगपंता दोसा तह चेव होति णायवा । भणिएस संथवो तू विजामते अतो वोच्छं॥१॥ विजामंते चतुलहु आवत्ती दाण होति आयाम। विजामंतविसेसं उलिंगेऽहं समासेणं ॥२॥
विजामंतविसेसो विजित्थी पुरिसों होति मंतो तु। अहव ससाहण विजा मंतो पुण पढियसिद्धो तु ॥३॥ विजाए उणिदरिसणं जह कोई भिच्छुवासयो पन्तो। साहूण पिंडियाणं अह उडावो इमो तत्थ ॥४॥ इय पंतभिच्छवासो साहूण ण देति तत्थ भणएको । जइ इच्छह विजाए घयगुलवत्थाणि दावेमि ॥५॥ पेच्छामोत्तिय भणिए गंतुं विज्ञाभिमंतिओ वेति । किमरता पतगुलपत्याणादण्ण साहरण ॥ ६॥ अण्णाहय सा भाणओ किहत दिषणात भत्तपाणादा?ाता बात तगा रुट्ठा कण हित कण महा मि? ॥७॥ पडिविज थंभ. णादी सो वा अण्णो व से करेजाहि । पावाजीवी मायी कम्मणकारी य गहणादी ॥८॥ मंतम्मि उदाहरणं पाडलिपुत्ते मुरुंडराइस्स। उप्पण्ण सीसवेदण पालित्तयकहण ओमजे ॥९॥ जह जह पदेसिणिं जाणुयम्मि पालित्तयो भमाडेत्ति। तह तह सीसे वियणा पणस्सति मुरुंडरायस्स ॥१४८०॥ मंतेणं अभिमंतिय तह चेव दवाव दिज कोई तु । तत्थवि तेच्चिय दोसा पडिमंतादी इमे होन्ति ॥१॥ पडिमंतथंभणादी सो वा अण्णो व से करेजाहि। पाबाजीवी मायी कम्मणकारी य गहणादी ॥२॥ विजामंताभिहिया अहुणा वोच्छामि चुण्णजोगादी। वसिकरणादी चुण्णा अन्तद्धार्णजणादीया ॥३॥ चुण्णे जोगे चउलहु आवत्ती दाणमेस्थ आयाम। णिदरिसणं दुण्डंपी उल्लिङ्गेऽहं समासेणं ॥४॥ दिटुंतो चुण्णजोगे जह कुसुमपुरम्मि केति आयरिया। जंघाचलपरिहीणा ओमे सीसस्स तु रहम्मि ॥५॥ कहयंति चुण्णजोगा अंतद्धाणादि तत्थ दो सुड्डा। पच्छण्णठिय णिसामे अवधारे अंजणं एकं ॥६॥ वीसजियावि साहू गुरुहिं देसंत खुड्डग णियत्ता। आयरिएहि य भणिता दुठ्ठ कयं जं णियत्ता भे॥७॥ भिक्खे परिहायंते थेराणं ओमें वेसि ताणं। किं ओम गुरूणं तू कुवामो? खुड्ड सामत्थे ॥८॥ कुणिमो अंतदाणं दवे मेलेतु अञ्जियंजणया । सह भोज चंदगुत्ते ओमोदरियाएं दोब्चलु ॥९॥ चाणकपुच्छ इट्टालचुण्ण दारपिहणं तु धूमो य । दट्टुं कुच्छ पसंसा थेरसमीवे उवालंभो ॥१४९० ॥ एवं वसिकरणादिसु चुण्णेसु वसीकरेनु जो तु परं । उप्पाएती पिंडं सो होती चुण्णपिण्डो तु॥१॥ जे विजमन्तदोसा ते चियवसिकरणमादिचुण्णेहिं । एगमणे - गपयोसं कुजा पत्थारयो वापि ॥२॥ मणिएस चुण्णपिण्डो अहुणा वुच्छामि जोगपिंडं तु। तहियं जोग अणेगा इणमो तु संपवक्खामि ॥३॥ सूभगदोभग्गकरा जोगा आहारिमा यस इयरे या आघसधूववासो पायपलेवायिणो इतरे ॥४॥ तत्थाहरणं इणमो अणहारिमपादलेवजोगम्मि। आभीरगविसयम्मी जह कत सुण ताबसेहिं तु ॥५॥णदिकण्हवेण्णदीवे पंप सया तावसाण णिवसंति । पञ्चदिवसेसे कुलबइ पालेवे लिंप पाए तु॥६॥ पाउगदुरुढ सलिलुप्परेण उत्तरिउ एति णगरंति। आउट्ट लोग पूया पञ्चक्खा तेते देवत्ति ॥ ७॥ जण सावगाण खिसण तहियं तू वइरसामिमाउलया। आयरियअजसमिता तेसिं च णिवेदियं तेहिं ॥८॥ तेहि भणिया य वच्चह ते मातिहाणि पायलेवेणं । णतिमुत्तरंति सगिहे णेउसिणोएण धोबह णं ॥९॥ तेहि य सगिह णेउं पाय बला धोयऽणिच्छमाणाणं । किं जाणति लोगोती दिण्णं विणएण बहुफलयं? ॥१५००॥ पडिलाभिय वचंता णिबुड्ड णदिकूल मिलिय समिया य। विम्हिय पंच सता ताबसाण पत्रज साहा य ॥१॥ एमादीजोगेहि आउद्दावेत्तु एसती पिंडं। सो णवि कप्पे एत्तो वोच्छामी मूलकम्मं तु ॥२॥ दुविहं तु मूलकम्मं गम्भादाणे तहेव परिसाडे। दुविहेवि मूलकम्मे पच्छित्तं होति मूलं तु ॥ ३॥ आदाणं अहिगरणं पडिबंधो छोभगादिदोसा य। पाणवह साडणम्मि छोभग पडिणीय उड्डाहो ॥ ४॥ इय मूलकम्मेणं पिंडो उप्पादिओ ण कप्पनि तु। उप्पातणेस भणिया गवसणा चेव य समना ॥५॥ एवं तु गविट्ठस्सा उग्गमउप्पायणाविसुदस्स। गहणविसोहिबिसुद्धस्स होलि गहणं तु पिंडस्स ॥६॥ उग्गमदोस गिहीतो उप्पायण होइ समणउत्थाणा । गहणेसणाए दोसे आयपरसमुट्टिए बोच्छ ॥ ७॥ दोण्णिवि समणसमुत्था संकित तह भावतोऽपरिणयं च । सेसा अट्टवि णियमा गिहिणो तु समुहिए जाण ॥ ८॥ सा गहणेसण चतुहा णामं ठवणा य दृष्वि भावे या दवे वाणरजुहं सर्व वत्तव वित्थरया ॥९॥ दवम्मि एस भणिता भावे गहणेसणं तु बोच्छामि। दसहि पदेहिं सुदं संकितमादी इमेहि ॥१५१०॥ संकिन मक्खिन णिक्खित्त पिहित साहरण दायगुम्मीसे। अपरिणय लित्त छड्डिय एसणादोसा दस हवंति ॥१॥ संकाए चउभंगा पढमो गणे य भोयणे चेव। बितिओ गहण ण भोयण तनिओ पुण संकितो भोगे॥२॥णीसंकिओ तु चरिमे किह पुण संका हवेज ? जह कोई। भिक्ख पविट्ठो लडम्मि हिरिमं भिक्खं विगिंचेति ॥३॥ किण्णु हु? खद्दा भिक्खा लदा ण य तरनि पुच्छिउं तहिय। हिरिमं इति संकाए भुजति इह संकितो चेव ॥४॥ बीएण गहिय संकिय विगडन्तऽने य णवरि संघाडे। १०३९ जीतकल्पभाष्य -
मुनि दीपरत्नसागर
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