Book Title: Aagam Manjusha 02 Angsuttam Mool 02 Suyagado
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar

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Page 5
________________ 524098848P8AASPICIASPRS/BRARBHEMISPIRM8P8ARSHANCHIRANSFORM8P8AASPICART849PEARBPGARBP2848 गुंडिया, बिहुणिय धंसयई सियं रयं । एवं दविओबहाण, कम्मं खबइ तवस्सिमाहणे ॥३॥ उट्ठियमणगारमेसणं, समणं ठाणठिअं तवस्सिणं। डहरा गड्ढा य पत्थए, अपि सुस्से ण यतं लभे जणा ॥४॥ जइ कालुणियाणि कासिया, जइ रोयंति य पुत्तकारणा। दवियं भिक्खं समुट्टियं, णो लम्भंति ण संठवित्तए ॥५॥ जइविय कामेहिं लाविया, जइ जाहि णु बंधिउं घरं । जइ जीविय नावकखए, णो लम्भंति ण संठ(प० सण्ण०)वित्तए ॥६॥ सेहंति य णं ममाइणो, मायपिया य सुया य भारिया। पोसाहि ण पोसओ तुमं, लोग परंपि जहासि (प्र० चयाहि) पोसणो (प० पोसणे) ॥ ७॥ अन्ने अन्नेहिं मुच्छिया, मोहं जति णरा असंवुडा। विसमं विसमेहि गाहिया, ते पायेहिं पुणो पगम्भिया ॥८॥ तम्हा दवि इक्ख पंडिए, पावाओ विरतेऽभिणिबुडे । पणए वीरं महाबिहि, सिद्धिपहं आउयं धुवं ॥९॥ वेयालियमग्गमागओ, मणवयसाकायेण संवुडो। चिचा वित्तं च णायओ, आरंभं च सुसंवडे चरे ॥११०॥ त्तिमि ॥अ०२ उ०१॥तयसं व जहाइ (प्र० चयाइ) से रयं, इति संखाय मुणी ण मज्जई । गोयन्नतरेण माहणे (जे विऊ म०), अहसेयकरी अनेसी इंखिणी ॥१॥ जो परिभवइ परं जणं, संसारे परिवत्तई महं (चिरं पा०)। अदु इंखिणिया उ पाविया, इति संखाय मुणी ण मज्जई ॥२॥ जे यावि अणायगे सिया, जेविय पेसगपेसए सिया।जे मोणपयं उवट्टिए, णो लज्जे समयं सयाऽऽयरे ॥३॥ सम अन्नयरम्मि संजमे, संसुद्धे समणे परिवए। जे आवकहा समाहिए, दविए कालमकासि पंडिए ॥ ४॥ दूरं अणुपस्सिया मुणी, तीतं धम्ममणागयं तहा। पुढे परसेहि माहणे, अविहण्णू समयंमि रीयइ (समयाहियासए पा०)॥५॥ पण्णसमत्ते (पण्हसमस्ये पा०) सया जए, समताधम्ममुदाहरे मुणी। सुहमे उ मया अलसए, णो कुज्झे(प्र० कुप्पे)णो माणि माहणे ॥६॥ बहुजणणमणमि संवुडो, सबढेहिं णरे अणिस्सिए । हरए व सया अणाविले, धम्म पादुरकासि कासवं ॥ ७॥ सेया, पत्तेयं समय समीहिया। जो मोणपदं उपट्टिते, विरति तत्य अकासि पंडिए॥८॥ धम्मस्स य (सोऊण तयं पा०)पारए मुणी, आरंभस्स य अंतए ठिए। सोयंति यणं ममाइणो, णो लम्भंति णियं परिग्गरं ॥९॥ इहलोगदुहावहं विऊ, परलोगे य दुहं दुहावह । विदसणधम्ममेव तं, इति विजं कोऽगारमावसे ? ॥१२०॥ महयं पलिगोव (पलिमंथमह पा०) जाणिया, जाबि य वंदणपूयणा इहं । सुहुमे सल्ले दुरदरे, विउमंता पयहिज संथवं ॥१॥ एगे चरे ठाणमासणे, सयणे एगे समाहिए सिया। भिक्खू उवहाणवीरिए, वयगुत्ते अज्झत्तसंवुडो ॥२॥ णो पीहे ण याव(प्र० णार)पंगुणे, दारं सुन्नघरस्स संजए। पुढे ण उदाहरे वयं, ण समुच्छे णो संथरे तणं ॥३॥ जत्थऽथमिए अणाउले, समविसमाई मुणीsहियासए। चरगा अदुवावि भेरखा, अदुवा तत्व सरीसिवा सिया ॥४॥ तिरिया मणुया य दिवगा, उवसम्गा तिविहाऽहियासिया। लोमादीयं ण हारिसे, सुजागारगओ महामुणी ॥५॥ णो अभिकखेज जीवियं, नोऽविय पूयणपत्थए सिया। अभत्थमुरिति मेरखा, सुन्नागारगयस्स भिक्खुणो॥६॥ उवणीयतरस्स ताइणो, भयमाणस्स विविक्कमासणं । सामाइयमाहु तस्स जं. जो अप्पाण भए ण दसए ॥७॥ उसिणोदगतत्तभोइणो, धम्मट्टियस्स मुणिस्स हीमतो। संसम्गि असाहु राइडिं, असमाही उ तहागयस्सवि ॥८॥ अहिगरणकडस्स भिक्खुणो, वयमाणस्स पसज्झ दारुणं। अढे परिहायती बहुं, अहिगरणं न करेज पंडिए॥९॥सीओदगपडिदुगुंछिणो, अपडिण्णस्सलवाचसप्पिणो (म० सक्किणो)। सामाइयमाहु तस्स जं, जो गिहिमत्तेऽसणं न भुंजती ॥१३०॥णय संखयमाहु जीवियं, तहविय बालजणो पगभइ।बाले पापेहि मिजती, इति संखार मुणी ण मजती॥१॥ छंदेण पले इमा पया, पहुमाया मोहेण पाउडा।वियडण पलातमाहण, साउण्ह वयसाऽहियासए॥२॥ कुजए अपराजिए जहा, अक्खाह कुसलाह दापयाकडमद गहाय णा काल, नाताय नाचवदावर ॥३॥ एवं योगमि ताइणा, चुइए जे धम्मे अणुत्तरे। तं गिव्ह हियति उत्तम, कडमिव सेसऽवहाय पंडिए॥४॥ उत्तर मणुयाण आहिया, गामधम्मा(म्म)इइ मे अणुस्सुयं। जंसी विरता समुट्टिया, कासवस्स अणुधम्मचारिणो ॥५॥ जे एय चरंति आहियं, नाएक महया महेसिणााते उट्ठिय ते समुट्ठिया, अनोऽनं सारंति धम्मओ॥६॥ मा पेह पुरा पणामए, अभिकंखे उबहिं धुणिनए। जे दूमण तेहि णो णया, ते जाणंति समाहिमाहियं ॥७॥णो काहिए होज संजए, पासणिए ण य संपसारए। नच्चा धम्मं अणुत्तरं, कयकिरिए ण यावि(प्रणयणावि)मामए॥८॥ छन च पसंस णो करे, न य उकोस पगास माहणे। तेसिं सुविवेगमाहिए, पणया जेहिं सुजोसि धूयं ॥९॥ अणिहे (अणहे पा०) सहिए सुसंवडे, धम्मट्टी उवहाणवीरिए । विहरेज समाहिइंदिए, अत्तहिअंसु दुहेण लम्भइ ॥१४०॥ण हि गुण पुरा अणुस्सुतं, (अवितहं पा०) अदुवा तै तह णो समुट्टियं । मुणिणा सामाइआहितं, नाएणं जगसञ्चदंसिणा ॥१॥ एवं मना महंतरं, धम्ममिणं सहिया बहू जणा। गुरुणो छंदाणुवत्तगा, विरया तिना महोघमाहितं ॥२॥ तिमि ॥ अ०२ उ०२। संचुडकम्मस्स भिक्खुणो, जं दुक्खं पुढे अचोहिए। तं संजमओऽवचिजई. मरणं हेच वयंति पंडिया ॥३॥ जे विनवणाहिऽजोसिया, संतिन्नेहिं समं वियाहिया। तम्हा उइंति पासहा (उई तिरिय अहे तहा पा०), अदक्खु कामाइ रोगवं ॥४॥ अग्गं वणिएहिं आहियं, धारती राइणिया इहं । एवं परमा महत्वया, अक्खाया उ सराइभोयणा ॥५॥ जे इह सायाणुगा नरा, अज्झोववना कामेहिं मुच्छिया। किवणेण समं ३९ सूत्रकृतांग-अन्नधा -२ मुनि दीपरत्नसागर 10-SPIRANSPIRHASPICHASHEMISPEEMBIPICHAEPSMISHRARNINGPASSPOMISPOSINGHBHISHEPEMBICHISAPAR

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