Book Title: Aagam 43 Uttaradhyanani Choorni
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 18
________________ आगम (४३) "उत्तराध्ययन"- मूलसूत्र-४ (नियुक्ति: + चूर्णि:) अध्ययनं [१], मूलं / गाथा ||-11 नियुक्ति: [२९/२९] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र - [४३], मूलसूत्र - [०३] उत्तराध्ययन नियुक्ति: एवं जिनदासगणि-रचिता चूर्णि: S C - श्रीउत्तरा | अर्थतोऽनन्तपर्यायत्वादनन्तपरिमाणं, तेण अनंता पज्जवा संखेज्जा अक्खरा संखज्जा संपाता संखेज्जा पदा संखेज्जा पादा। वक्तव्याचूर्णी | धिकारा | संखेज्जा सिलोगा एगा णिज्जुत्ती संखेज्जा अणुयोगदारा एगे अज्झयणे, वत्तव्बया तिषिधा-ससमयवत्तव्वया परसमयवत्त१ विनया-15 निक्षेपा: ध्ययने ब्बया ससमयपरसमयवत्तव्वया, तत्र समयः सिद्धान्तः वक्तव्यता-पदार्थविचारस, तत्र स्वसिद्धान्तवक्तव्यतानियमितामद मध्ययनं, यापिहि कचिदध्ययने परसिद्धान्तोभयवक्तव्यता वाऽनुश्रयते सापि हि यता सम्यग्दृष्टस्तत्वदशेनपरिग्रहात् । स्वसमयवक्तव्यतैवेत्यतः सर्वाध्ययनानि स्वसमयवक्तव्यतानियतानि- मिच्छत्तममहमय सम्म जं च तदुवगारमि । बट्टति परसिद्धान्तो तो तस्स ततो ससिद्धान्तो ॥१॥ अथ अर्थाधिकारो, सो विणएणं,-अधुणा समोचतारो जेण समो-| तारियं पइद्दारं । विणयसुर्य सोऽणुगतो लाधवओ ण उ पुणो वच्चो ॥१॥ उवकमो गतो, 'भण्णति घेप्पति य सुई णिस्खेव- | | पदाणुसारतो सत्थं । ओहो णाम सुत्तं णिक्खेत्तव्वं ततो तस्स ॥१॥ ओहो ज सामण्णं सुत्तभिहाणं चउच्विहं तं च । अजायण अझीणं आयो झवणा य पत्तेयं ॥ १॥णामादि चउम्मयं वपणेऊणं सुयाणुसारेणं । विणयसुअं आयोज्जा चउसुपि कमेण भावेसु । ॥३॥ ओहणिप्फण्णो गतो। णामणिप्फण्णे णिक्खेवे विणयमयंति विणओ सुत्रं च दुपयं णाम, एत्थ णिज्जुत्तिगाहा 'विणयो | पुब्बुदिट्टो'गाक्षा(२९-१५) विणओ चउग्विहो नामाइ जहा विणयसमाहीए तहेव भाणियन्चो, सुत्तपि पूर्ववत् ,गतो णामादिHiणिप्फण्णो, इदाणि सुचालावगनिष्फण्णो 'जो सुचपदण्णासो सो सुत्तालावगाण निक्खेवो । इह पत्तलक्खणो सो णिक्खिप्पति ण पुण किं कज्जी|१||सुत्तं चेवन पावह इह सुत्तालापयाण कोऽवसरो। सुचाणुगमे काहिति तमास लाघवनिमित्त ।।२।।अह यति पाचोड़लावि ततो ण णस्सए कीस भन्नए इहई। दाइलाइ सो निक्खेवमेत्तसाममओ नवरंशा संपदिमोहाईणं सणिक्खिचाणमणुगमो कओ।ला दीप अनुक्रम % % - १२॥ * %- RE [17]

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