Book Title: Aagam 43 Uttaradhyanani Choorni Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: DeepratnasagarPage 16
________________ आगम (४३) "उत्तराध्ययन”- मूलसूत्र-४ (नियुक्ति: + चूर्णि:) अध्ययनं [१] मूलं ] / गाथा ||-|| नियुक्ति: [१३,१८,२७/१२-२८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र - [४३], मूलसूत्र - [३] उत्तराध्ययन नियुक्ति: एवं जिनदासगणि-रचिता चूर्णि: चूर्णी । ध्ययने दीप श्रीउत्तराय दोवि फेडियाओ सेसाओ अणाणुपुष्वीओ भण्णंति, इमाउ पत्थारगाहाओ-एगादी उत्तरिवड्डिताण ठाणाण इच्छियाणं तु । जो जो आदी य भवे सो सो तु अणंतरो ओ॥१॥ जहियं त णिक्लेवो(जहियमि उ णिक्खित्ते) पुणरवि सो चेव होइ निक्लेवो । १ विनया सो होइ समयमेदो बज्जेयध्वो ततो नियमा ॥ २॥ पुष्वाणुपुब्बि हेट्ठा समयाभेदेणणंतरो देयो । उवरिमतुलं पुरतो हस्सो हस्सादि तो सेसो ॥३॥ असती अणंतरस्स उ देयोऽणंतर अणंतरो तत्तो। तचोऽवि परतरो पुण ता जाव अणंतरो णत्थि ॥४॥ एवं ॥१०॥ तिसु द्वाणेसु पत्यारं दंसेइ १२३ , एस पुच्वाणुपुच्ची, तत्थेगस्स अणंतरो णस्थि, दुण्हणंतरो एको ततो दुहं हेट्ठा एक ठावेऊण VI उवरिमतुल्लं ठवेति तिण्डं हेडा तिनि निकख आदीय बेणि से, जाता २१३, ततियपरिवाडीए (दोहमणतरो एको, तं 14 जति ठवेति समयभेदो भवति, एकस्साणतरो णत्यित्ति तिण्हमणतरो दुगो दिज्जइ, एगं तिगं च आईए, जातं १३२, चउत्थपरि वाडीए) एकस्सऽणतरो दुगो तं जति ठवेति समयभेदो भवति, तो अणंतराणंतरं ठवेति एक, उपरिमतुल्लं दो दोहं हेडा Aठवेज्जाऽऽईए तिमि ठवेति, जातं ३१२, पंचमपरिवाडिए तिण्हाणतरे दो त जति ठवेति तो समयभेदो भवति, अर्णवरासातरो एको तेणवि समयभेदो भवति, तओ तिहं हेडा ण ठवेति, एगस्साणतरो णस्थि तत्थवि ण ठवेति, दोण्हाणतरो एको | ततो दोण्हं हिट्ठा एक ठवेति, आदीए हस्सचि चे तिष्णि य, जातं२३१, छट्ठपरिवाडीए दोण्हाणंतरो एको, तेण समयभेदो भवति, तो तीण्णाणतरो दो तं वेति, उपरिमं तुलं नसे इक, आदीए ठवे तिनि, जाता पच्छाणुपुथ्वी ३२१, एवं तिसु चचारि अणाणुपुब्बीओ, एवं सेसावि पविस्थारा नेया । इह यद्वत्थुनो अभिधानं जातिरूपादिपर्यायप्रभेदानुसरणस्वभावं तमाम नमनं प्रहित्वमिति, वस्तु नमनात-प्रतिवस्तु नमनात् भवनादित्यर्थः, तच्च दशप्रभेदमेकनामादि बहुभेदं बाऽमिलाप्यविषयत्वात् । अनुक्रम [15]Page Navigation
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