Book Title: Aagam 38 B PANCHKALP Bhashya ev Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: Deepratnasagar View full book textPage 6
________________ आगम (३८/२) “पंचकल्प” - छेदसूत्र-१/२ (भाष्य) ---------- भाष्यं [००५१] ------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्यं E जानन मयनसरीरं भविओ पुण रहेब सेहा या एवं त कपाशा आगमे चेव ॥ २॥ आगमत्रो उप प्रत सूत्रांक [००५१] REV4 दीप अनुक्रम [००५१] इदाणि। किं पुग उकमकरगं बहुचत्तति पाऊणं ॥१॥ कि पुण कपावणे पनिजाति भण्णती मुणसु तावा जे अभिहिता उ अत्था ताहियं ते ऊ समासेणं ॥२॥ कप्पे पकप्पिए च, कप्पणिजेनिआपरे। कासुए एसणिजे य, संजमे इत्तियावरे ॥..७.३॥ बालए चागए चेक, चम्मए पट्टए तहा। पम्हए किमिए चेव, धानुए मीसतेतिय ॥..८॥४॥ उपसंपया वाचरित्तस्स, परिने काविह इय?। णियंठा कति पणना, कहं समोतारणातिय ॥..९॥५॥ यवहारे कस्स पणते?. कह पडिसेवणानिय है। देखभंग कर उसे 2.साभगलियारे 11 ...१०॥६॥ पच्चिने काविहे नुत्ते, उहाणिनियावरे। पंचट्ठाणे चतुहाणे, तिद्वाणे इलियारे॥.:.११॥७॥छहाणे दसणे वुत्ते, संजमे इत्तियावरे । गाहणा य चरितस्स, एमेता पडिबत्तिओ..:.१२॥८॥कप्पो उहोति इविहो जिणकप्पो चेव थेरकप्पो या दुविहो उ कपिओ खल दधे भाचे य गायत्रो॥९॥ आगमणोआगमओ दाम्मी कपिओ भवे दुविहो। आगमतोऽणुषउतो णोआगमतो इमो होति ॥६०॥ जाणमसरीर मलिए तयतिरिने य होति गायत्रो। जाणग मयगसरीरं भविजो पुण सिक्तिही जो तु॥१॥ बतिरित्तो एगभवो पदाऊ अभिमुही व पोदयो । भावेवि होनि दुविहो आगमणोभागमे चेव ॥२॥आगमत्रो उपउत्तो णोआगमओय पिंडमाईणं । गहणमि कपिओ स्खल पावेतं च सेवाणं ॥३॥ जं जं जोग्य जतीणं आहारादी नहेब सेहा या एवं तु कप्पणिज अपरिगहणा अप्पम्मि ॥.:.१३॥४॥ आहारि पलंबादी सलोममजिणादि होति उवहीए। सेजाए दगसाला अकप: सेहा व जे अन्ने ॥५॥ केरिसय कप्पणिजं फायगं, कामुयं तु केरिसगं ?। जीवजई जं दर्ष तपि य ज एसणिज तु ॥६॥ बसदोसविपर्क गहिय पसरेल उमामादीवि। एवंत साहुजोगं गिन्हंतो संजतो होति ॥ ७॥ अहया सत्तरसविहो संजम जं वापि मुत्तदेणं । भुजति आहाराती विपरीयमसंजमो होई॥८॥आहाररस उ भेदा असणादी उबहिणो 30 पालादी। एतेसि तु परूपण यालयमादीणिमा होति।...१४॥९॥ बालेहि णिकपणं वालपमोष्णोहियादिगं होनि। केहि तु णिकवर्ण वागज सणकमादीग ।। ७०॥ चम्म चम्मपडीए पट्टो उण होतिमो मुणेयो। पारयोग्गाहपट्टा तिरीउपट्टो य एमादी॥१० पम्हज हंसगम्भादि अहवा कप्पासियं मुणेया। कोसेजपहमादी जं किमियं तु पचति ॥२॥ उन्मति वंसकरिडा कमिवि देसमि तरुणते घडए। वई नो पूरबतीत घडयं चिप्पिए मि ॥३॥ संकोहेऊण कणर्य तेहिं तम्हा उ विजए मुन। तेण पुर्य संवत्वं भणति तं धातुतं णाम ॥४॥ दुगसंजोगादीहि एएसि व वाळयादीणं । तं मीसयंति भणति जह ऊमाखो(दुहं खो०)म्हियादीयं ॥५॥ वत्तव पसदेणं भेयपभेडा उजेनिया तेसि । मुढेहेतेहिं न उनसंपप्णो हुसचरिती ॥६॥ अहवा पंचविहातो उपसंपय होतिमा समासेणं । सुब मुहदुक्से खेने मग्गे विणए य चोदना ॥ ७॥ अहवा तिविहुक्संपय णाणे तहसणे चरिते या परिपत्र कतिविहं तु पंचपिहले इमं होति ॥८॥ सामइयं छेदुवडापणं च परिहारसुद्धिय येव । ततो य मुहमरागं अहसायं चेष पोडा।॥ जहवा वयसमितादी सराग तह वीतरागमहवाचि। र खाहग खओवसमितं उपसमियं वा भवे तिविहं ॥८॥ भेदा उ चसहेणं होति इमे गाणसणाणं तु. साइब सोनसमियं दुविहं गाणं मुया ॥१॥ सइयं केवलनाणं खओपस-31 मियाई सेसणाणाई । सदयं खजोवत्समियं उपसमियं सगं निविहं ॥२॥ कम्सेतं चारितं? णियंठ तह संजयाण, ते कनिहा? पंच णियंठा पंचेच संजया हाँतिमे कमसो ॥३॥ पूलए बउस कुसीले होति नियंठे नहा सिणाए या एएसि एकेको पंचविहो होति बोचत्रो॥४॥ गाणपुलाए तह बसणे व चारित लिंग अहसुहमे । एसो पंचविहो खल पुलपणियंटो मुणे-- यत्रो ॥१॥आभोगमणाभागे नह संखुडा संपुढे जहामुहमे। एसो पंचविहो नबउसणियंतो मुगेयत्रो ॥२॥ दुपिहो होति कुसीलो पहिसवणया नहा कसाए या एकको पंचविहीं पर वणा तेतिमा होनि ॥७॥ गाणपटिसेवणाए दसण चरणे य लिंग अहसहमे। पडिसेपणाकुसीलो पंचविही एस गायत्रो दाणाग कसावकुसीले देसण चरणे य लिंग अहमुहुमो। एस कसायकुसीलो पंचविहान मुणेयको ॥९॥ परमगसमयनियंठ अपदम चरिमे वह अचरिम या लत्तो य अहासुहुने पंचमए होनि गायो॥ ९०॥ पंचविह सिणाए नृ अभावी तह असवले अफम्मसे । समुदणाणदसणधरे य होती चउत्थेत ॥१॥ अरहा जिणे य केयलि अपरिम्सावी य होति पंचमए। एते पंच किया सिणायस तु होनि गावया ॥२॥ पंचविद संजतापी सामाइय छेउबट्ट परिहारे। सुहमे य अहसाए एकेके ते पुगो दुबिहा ॥ ०१७॥३॥ इत्तरिए आवकही सामाइवसंजए भने दृषिहो । दुविहे य छेउबट्टोर सऽतिबारे भिरतियारे य ॥ल.१७॥४॥ परिहारविमुदीए णिविसमाणे नहेब निविड़े। दृषिह य मुहमरागे संकिरसते विसुज्यते ॥ल०१७२॥५॥ अहवाओविय दुविहो छउमत्यो पेव केवाली चेष। एसो तु संजतो खलु पचविहो होनि गायत्रो ॥ल. १७३ ॥ ६॥ सामाइयम्मि उकए चाउजाम अणुतरं धर्म। निविण फासयतो सामाइवसंजती स साल ॥ ल०१७४॥ ७॥ छेत्तृण तु परियागं पोराणं तो ठपेति अप्पाणं । धम्मम्मि पंचजाम छेओवडावणो स खलु ॥१७॥८॥ परिहरनि जो विसुद्ध पंचनामं अणुनरं धम्म । तिपिहेण पासर्वतो परिहास्थिसंजतो स खलु गल०१७६॥९॥ लोभम बेदिलो जो खलु उपसामओ व खपओ बा। सो मुहुमसंपराओ अहखाया ऊपओ किंचि ॥ १७७॥१०॥ १०६५ पत्रकापमाप्यं - मुनि दीपरनसामा - ~5~Page Navigation
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