Book Title: Aagam 38 B PANCHKALP Bhashya ev
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 45
________________ आगम (३८/२) प्रत सूत्रांक [२०८६ ] दीप अनुक्रम [२०८६] “पंचकल्प” छेदसूत्र -५ / २ ( भाष्य ) यं [२०८६] [३८/२ ], छेदसूत्र [५/२] “पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्यं मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ...... - • ..... ...आगमसूत्र होइ एगई। समया समणीओ वा दुविहं परियहिप तु ॥ ६ ॥ समणपरियह दुविहो आयरिओ बीओ उझाओ संजय पुण निहि तु पत्रनणी तया ॥ ७॥ समणिपरिपट्टि दुषा विहिपरियही य अविहिए चैव । जनिणिय परिपट्टिया नियमेण कारणमिणा ॥ ८॥ ताओ हागादिदुचराणि तानि संपति जयति ॥९॥ तम्हा पयते रक्खपडा उताओ नियमेण गरि सतरा मोल मा होला तासि वास ॥ नाति परिपओ गुणाओं होइ पुण अणरिहो खन्तु परिपड़ी ऊ इमो तासि ॥ १॥ अपए गीयत्वे व मंदम्मिए। कंदी सीलपाए जहि दागे गणे ॥१३९॥२॥ मीय जहन्नो आवागमादिजाय आया तिन्ह समाणारी तरुणो ॥ ३॥ जो उनोगं प कुपति चरणे सो होइ धम्मो अणावादी सरीरकृषि(ओ य कंदापी ॥४॥ निकारण संजनिपसी बचाए जो निकारणमचिए जो देती ही ॥ ५॥ एवारिसी जागं परियही या कप्पति कारणेहिं इमेहिं तु गम्म अणुवस्य ॥ ६॥ उपस्त गेलणे उच्ही संघ पाहुणे संदूषण उसे. अण्णा मंडणे गणे ॥ ७॥ अपज्झ अगणी आऊ. बी (ती) बारे पुनसंग संवोसिर दोसा दिने नहिं ॥ ८॥ अरिहो अमरिो पावि परिपट्टी एवमाहिजो अणा पवित्तिणी तासि, अजोगाउ इमा ॥ पीयादेक दीडिया अजुनहि गाउादाय काहिता ॥ १४०॥२१००॥ पटणीमुलीला गिहिरेयावकारिता संतवियत्ताय बाउसी अप्पमट्टिता ॥१॥ अणायणग देसाव गाणं पलोइया जाण एवमादीप जाता ॥ १४९ ॥ २॥ आहारे उपमिती सणास सरीरे प भासाएं बाउसाणं जा जहि आरोवणा भणिया ॥३॥ वासावासं वसति तु एडिया तह यः सामगाम दुइजनी पिया बिहार भिदिएका ४ दीहं करे गोयर दोचाणि मती चित्तलयादिनियंत्रण अजुनही भवति एसा ॥ ५ ॥ इरियमासेनादाणनिक्लेवे निसिरणे अणाउता अणपृच्छाए गच्छद्र जन्थिच्छाए व सदा॥६॥ कहाकहेति काहीया तरुणादी अहिवहन अणु जागति जा उसा पटिनी ॥ ७॥ थदा जब इमयाइएहि सुहसील सीलति सिधणमादिसु वेयायचं गिहण करें ॥ ८ ॥ उक्करसवस्थपनादिएहि समासना। अहयादि मित्सु पाउरणादीति ॥ ९॥ [भ] [वा पाणं वा निक्पती वाउला उजा धुवति अभिक्वं तु हत्यपादे कारगुज्झमादीनि ॥ २११० ॥ संण्विाहिसंनियए चव कृष्इ जा पाए। दिजाय करणं तु ॥ १ ॥ नादिसाल तह को एमेव सोलठाणाणिजाए अगायतणसिता सा ॥ २ ॥ गुण पए अप अवाचि जाउ पुरिसागं उकासमाहारं एस उहि उनीससिलियं समन्योर्य उपदेह सरीरं सिगाणमादी व जा कुणति ॥ ४॥ समुहक्वादीह सविकार भारती य सकिदास एमादिपरिहारासह ५॥ पुलाव इसम पछि माई समासेण गाणं अगीतमादीण दोपि ॥ ६॥ अगि अव पारेणा तवसितं तस्म उ मासा बारिभारियया ॥ ७ ॥ सतरनं नमो हाइ नी छेदा पंचायती उदे पराए ततो मूलं नो दुर्गा ॥ ८॥ एकेक सन्त दिने दाउ पेनिच्छित दोनो आरोपणादिकडो व जि ठाणा यच्छेदाणं यह (हवं)ति दोष्णादिदोष जम्मास निरणा ॥ २१२० किं कारणं पति महतो गयो। सो पछि जयनं च जागए कार्ड ॥ १ ॥ दितो अजामा जागच काय सिमा होइ २॥ य हिणवम्मिय सरसंचाराण कुहरणायुं च कुद विवास खतु जपट्टी ३ ॥ तह कुणतिलक रणजोगेस् । सुनत्यमजाणतो नागे न देण परिने ॥ ४॥ जह गया जिओ जुए समं नातं तु विजाणतो नह कुणती सम्म करणं तु ॥ ५ ॥ किं पुण सोनचि जाणा जं कुणती सहि विद्या भण इणमा जं कृष्णती सो विवश्वास ॥ ६ ॥ समासादमाह जे अपने पविया ठाणा ॥ ७॥ उपदिसि पनि जान सामाचारं तु ठाणमादी अज्ञापि जा अगीता ण जाणए साथि तह चय ॥ ८ ॥ अपच्छेदिओ लुप ॥ १४२ ॥ ९॥ पाएमा महामित कियं कुति गलियाविव परिभूताजी [य] [सस्स ॥ २१३ ॥ मंसादिषेसियाविय संजविषग्यों पोलिओ १० जाए य संपउनम्मि पहिरोमा परी ॥ २ ॥ जम्हा दुपारिपटो अ परिवए अजोगे उब िगुरु सोही ॥४॥ माध आप सो पुर्ण सिटिटेड जो उमजाय स्वदेसी विए६॥ विइमेसि पदमा मदिरा उ तेण पटिसेहो । परिया मायाविप ॥३॥ णा की माया दढ़ा होइ ॥ ५॥ उपदेससार परिवारमा य तेग पर नि मास कह दे मे आवरण उपदेसो अकष्यप डि य उपदेसो चिकादिपमा य मा वह एस उपदेसो ॥ ८॥ गिरापमादाइ स तु खलियरस सारणा होइ कहिय ने पमाया मासीद ते जाणती । विसीए या सीईनो बुझाए पुणी इयं अष्ण के पास भी संस|| २१४०॥ कुडरले अधियत गोषी उदितो व मा हुज्झि अओ भन्न पसन्ननिनो सारे ॥ १ ॥ भणाति दिवस तुभं वितियं च सारितम्हसे सात पूण ते चि सहामो ॥ २ ॥ नाहे पुरातन हे दिगो एवं तु ॥ ३ ॥ गोणादिहरणमहिओ मुझे व पुणो सो संगहि उमणहारी न मुचती जायमानोऽपि ॥ ४ ॥ पुरविताच मास देत से सोही भन्न पनि त तुमपि ॥ ५ ॥ पुनरवि अपरम्म मासो थिय तेस दिने दहा पाणी संपत्ती अि ॥ ६ ॥ ते पर कुलचेरादि तस्स कृति जयमणोऽवी शियमो भग] नृ जस्सिमे दोसा ॥ | अप्पण्डदिव मिलादुपजग्गामा वासोऽणि कानि ॥ १४३४८॥ उमगणार संतस्स व छायणाएं मग्गस्स मग्गरवालने मासा बत्तारि मारियया ॥ ९॥ आपरिचाण उंदे टूटती अप्पनंदिनी सी आहाराको जन्तट्टि दो ॥ २१५० ॥ जीउमा अपत्यं मग सो होड (२७६) ११०४ मुति दीपरसागर ~ 44 ~ -

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