Book Title: Aagam 38 B PANCHKALP Bhashya ev
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 41
________________ आगम (३८/२) “पंचकल्प” - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य) ------------ भाष्यं [१८३४] ----------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य प्रत सूत्रांक सिविमा [१८३४] दीप अनुक्रम [१८३४] भिहिता पत्तम्मि कारणम्मि उ लावतरं पुर सेविजा॥ ल०१३३ ॥४॥ काणि पुण कारणाणि जेसु उ पत्तेमु जयणपडिसेवा । भनाइ वाणि इमाई कित्तेऽहं मे समासेणं ॥५॥ गच्छाणकंपयाए आयरिय गिलाण भारतीए । पहिसेना खाल भणिया एते खल कारणा ते उ६॥ चोहियतेणादी गच्छसाडा गि(बाग)सेवणा होइ। आपरियाण व अड्डा विभास विस्थारओ एवं ॥७॥ गाउं तुंबविणार्स अरगा साहारमा ण एवं ला आपरियस विणासे दी गच्छविणासो धुर्व एवं ॥८. आगादे गेहणे कंदाति विभास आवती पाहा। दवावति खित्तापह काले तह भाषजो चेप ॥९॥ एएहिं कारणेहि अप्पत्तेहिं तु जो उ सेविना। सुहसीलयाए जो (सो) आवजनिणविय मुन्झतिहार १८५०॥ जो पुण पते कारण जयगा आसेपर्ण करेजाहि । तस्स चरितविसुदीजह भणति जिणो हितं इणमो॥१॥ गण्डाणुकंपयाए आयरियगिलाणापदि चिदिपणे । जत्थेष य पहिसेहो सचरित्तासेवणा तथा ॥२॥ पुरिनमस्स पनिछमस्स यमज्झिमगाणं तु जिणवरिदाण। आसपणा यसचरित्नया य अत्येण अणुगम्मे ॥३॥ वयभंगपि करेंतो जह सचरिती कहं तु अत्येणं । अणुगंवा एवं' भन्ना आगादकारणो॥४॥जे केअवराहपदा किम्हा सुका भये पपयणस्मि । गिपरिसपरिणाए एगठाणे मुगेमा पहिसेहोऽणुण्या पा पायच्चिने यजोह निच्छदए। ओहेण उ सहाणं अत्यविरेगेण योगदिय।।..१२२॥६॥ हिंसादवराहपदा किण्हे अणुघाति सुकिला लगा। मणिपरिसपरिच्छणा खलु जह कण तापनिहसेसु ॥७॥ एवं परिच्छिऊन आवश्यं गच्छमावती जंतु निस्यास्यम्मि पते जयणाएं निसेव सपरिती ॥८॥हाणा मूलनर रणे अजए यहोइ पहिलेहो। कप्पेजयणा (पुत्ला जो पुण निकारणासवे ॥९॥ पायच्छितं पाचति तं चुचिई ओहियं चणेच्छाय। ओहं तु जमायणं नं दिनति नम्मि सहामं ॥१८५७॥ गिच्छदयं अत्येणं बीमंसित्ता उ विजनी जंतु। एवं अत्यविरेग चोकडिय उनिह इणमा ॥१॥ कस्स कहं कहिं न वा कदिया चुकम्मि केचिरं होइ? । छहाणपदविभतं अत्यपद होवोगडियं ।।...१२३॥२॥ कस्सति गीतागीतस्स पाविकह जयण अजयणाएगा। कहि जवाण वसते कतिया गुसुभिक्सभिक्से॥३॥ अहवा दिन Hओमा कम्हिन्ती कारणे पडतरे पा। कम्हि पुरिसजाते आवरियादीण अण्णतरे ॥४॥केचिर कतिबारे खल केवाका य सेवियं होजा । एवं छहाग एवं सुद्धासुदे अमुद्रियरे ॥५॥ संपवणधितियाणं सहण अरहं तु दिजए नन्य। असहूअधिरादीणं दिजाति थाएति जं वोढुं ॥ ६॥ सोऊण कप्पियपदं फरेवि आलंपणं महविहूगा। रहसं च अणरहस्सं करेइ माइयो पुरिसो ॥ ७॥ माइहाणविमुको अकप्पियं जो उसेयते मिक्स्स्। तं तस्स कम्पियपद मायासहिते चरणभेदो ॥८॥ एसो परित्तकप्पो एनो पोण्डाभि उवहिकार्य तु । सो पुण पुधानिहितो ओहुम्मह(जू)नो पेच ॥९॥ जो उ विसेसो एवं ने नवरं यह अहं तु पसामि । सुडग्गमादिएहि पारेयको जहाफमसो ॥१८६०॥ फासुयमामुए यावि, जाणए या अजाणए । ओहोपहुबग्गहिने, धारणा करमा केचिरं? ॥१॥ जड़ कामुकही कारणे गहिओ तू जागएन तो धारे । जो जुणोऽजुपोषि हु आपको तु गुम्मति २॥ कासुगे अजानगएण कारणमहिनो घरेजते ताच । जापण्णो उप्पग्णो ताहे उ विनिचए न तु ॥३॥जह पुण अामुमो ऊजाणगगहिजो उ कारणे होजा। जागीयस्था सो तो धारेंनी उ जा जिष्णो ॥ ४॥ अम्गीतविमिसोहि अापमम्मि । नं विगिनि । अह पुण असुओ ऊ कारणे गहिओ जगीतेणं ॥५॥ उप्पण्णे उप्पण्णे अन्मम्मि विगिंचती ऊ सो ताहे । एवं चउभंगेण धारणता चा परिहवणा ॥ ६॥ सो पुण दुपिहो उपही पत्य पातं च होत चोदई । वयं तु बहपिहाणं पाता पुण दो अणुण्णाता ॥७॥ चोदेती चहं किग्णवि एगो पहिगाहो होइ। ता दो एकेकस्स ऊ? भण्णइण पहुचए एवं cा तो चउ तिण्ड दुपहं अहया एककतस्स एकेक । भष्णा पाहुणगादिसु वाहे किं काहि लेकेणं? ॥९॥ अप्पा परो पपयर्ण जीवनिकाया य पर हतियं । पारत्नमवितो तम्हा दो दो उपेत्तव्या ॥१८७०॥ भणति जदेवं तेण जिणकप्पी एमपातो कहा। भणा कारणमिणमो सुगम् जेजेगपादो उ॥१॥ संगहियकुछि जसपाहिय अप्पाहारे चियत्तदेहे या णासम्णेऽणावाते णानिगिने उपिय माण ॥१.१२४॥२॥ तिचाली अभिनयमो कंकरगहणी व संगहियकुण्ठी। जोषणमपि गछिजा सचाडो पंडिलस्सऽसती ॥३॥ जसकारि पत्यणस्सा | जेणाजसो होइन तण करेनि। पहियएसणाहि यग यापि सुलभो ते आहारो ॥४॥जविवियह कुरिछपूरं लमति कदाती बहस कालस्सा तंपिय से विबंसह तत्तकडित रजह विद ॥५॥ तेणाप प से तो गपठति जाना सारिवनस्थिान याहा उपजति चत्तं च सरीरगं तेणे ॥६॥णास जाइ बहिल, णाचात नियमेण उ।विच्छि दूरमोगाट, समोसावितलियं ॥ ७॥ मिक्सिपि पडियाहर्ग पोसिरि यसो उ जिये। एएण कारणेण शिणक- 12 पिर एगपातो 3 10 पातदुगस्स उ गहणे कारणमेस समासोऽभिहिये। जहणा तु चोदयंती कि पेप्पद वस्थमतिरंग? ॥॥कि विहिग पहुपेजा एकेणाबहादणा पकप्पम्मि? गच्छे सकारनिय चोच्छेदकरो पसगरस.१२५ ॥१८८० ॥ चोदेती कि निण्हं गहण ? उणेहिं जंप संघरति । भषणति एकनानि हु संघरति ? पुणाह तो सूरी ॥१॥ छादयतो णासणजो उगेण कता भने पकापस्स। मार् पसंगविवढी ऊगऽहित नेण धारेति ॥२॥ गच्छो सकारणोनी गिलाणबुदे य बालमसहादी। तेसऽहा अतिरेग पेप्पद मा होज दुलमति ॥३॥ सीतादिभाचियाणं मा हुणाणादिवाण परिहाणी। होजाहि तेण गेहति संवरती जापतीएणं ॥४॥जदिएपविषहणा नवनियमगुणा भवे निरपसेसा। आहारमादियाण को णाम परिम्गाई जा ॥५॥ पंचमपोचपातो चोदेती बत्वमादिगहमम्मि। एगोषपाए पातो पंचाहपि बयाणं ॥ल. १३४॥६॥ एवं तु चोदितम्मी ति मुरूम यु परिगहो सो 31 संजमगुपोचकारा उपचाति परिगहो होइ॥ ७॥ जम्मि परिमाहियम्मी तसथाचरघातणा परतति। गहणे गहिए धरणे सो नाम परिगहो होइ ॥ २०१३५ ॥ ८॥ गहणे पुरकम्मादी गहिए पुण होति पच्छकम्मादी। घरणे अप्पहिलेहा कीरति मुच्छातजानाय॥९॥जम्मि परिमाहियम्मी तसयावरसंजमा पवत्तति । गहणे गहिते धरणे सो सू(गुणकारओ)ण परिगहो होइ॥१८९०ारागादिविरहिओ ऊसाहारावीण जंकुणा मोगा गहु सो परिम्गहो ऊनो कि मुरुमादिणं पृया । ल०१३६॥ १ ॥ कीरति आहारानिहिं ? भन्नति भगिता उ नियमसो साउ। तित्त्वकरहिं चेक उ नेण उ सा कीरए तेसि ॥ २॥ नो कि पृषाहेडं पवनयंतीह नित्यगर नि ? अह कम्मस्खयह ? पट्टो एवं इम आह ॥३॥ आहारस्वहिपूजादिकारणा ण उपरु वितं नित्यं । णाणचरणाण जहा नित्यं देसिवि विस्थकरा ॥४॥ नित्यं चहा संघो तस्स य देसंति नाणमादीगि । नित्थगरगामगोत्तस्स खवट्ठा अपिय सामवास५. नाणे भरणे गुणकारगाणि आहारउवाहिमादीणि। एतेण अणुष्णाला तहिं ठिताणं तु तो पूजा ॥ ल०१३७॥६॥ एसो उपहीकम्पो बचियओ बित्थरं पमोनृणं । संभोगकप्पमेनो बाच्छामि अहं समासेणं ॥ ॥ पुत्रमणिओ विभागो (२७५) ११. पजकत्यमाय - मुनि दीपरतसागर ~ 40~

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