Book Title: Aagam 18 JAMBUDWIP PRAGYPTI Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 1046
________________ आगम (१८) “जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति" - उपांगसूत्र-७ (मूलं+वृत्तिः) वक्षस्कार [७], .....--. -------- मूलं [१६२R-१६४] + गाथा: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [१८], उपांग सूत्र - [७] "जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति' मूलं एवं शान्तिचन्द्र विहित वृत्ति: दीपशा अंतेसि देवाणं एवं (णो) पण्णायए, तं० अणुत्ते वा तुल्लत्ते वा (सूत्र १६२) एगमेगस्स भन्ते ! चन्दस्स केवइआ महम्गहा परिवारो 18 वक्षस्कारे केवइआ णक्खत्ता परिवारो केवइया तारागणकोडाकोडीओ पण्णताओ?, गो० अट्ठासीइ महग्गहा परिवारो अठ्ठावीस णक्खत्ता अणुत्वादिन्तिचन्द्री परिवार परिवारो छावहिसहस्साई णव सया पण्णत्तरा तारागणकोडाकोडीजो पण्णता (सूत्र १६३) मन्दरस्स णं भन्ते! पवयस्स केवइआए या वृतिः अबाहाए जोइसं चार चरइ ?, गो० इकारसहिं इकवीसेहिं जोअणसएहिं अबाहाए जोइसं चार चरइ, लोगताओणं भन्ते ! केवइ अबाधाम्. १६२-१६४ ॥५२१॥ आए अबाहाए जोइसे पण्णत्ते?, गो. एकारस एकारसेहिं जोअणसएहि अवाहाए जोइसे पण्णत्ते। धरणितलाओ णं भन्ते !, सत्तहिं उएहिं जोमणसएहिं जोइसे चार चरइत्ति, एवं सूरविमाणे अट्ठहिं सपहि, चंदविमाणे अहिं असीएहिं, उवरिले तारारूवे नवहिं जोअणसएहिं चार चरइ । जोइसस्स णं भन्ते! हेडिल्लाओ तलाओ केवइआए अबाहाए सूरविमाणे चार चरइ ?, गो. वसहि जोअणेहिं अबाहाए चारं चरइ, एवं चन्दविमाणे गउईए जोअणेहिं चार चरइ, उवरिल्ले तारारूवे वसुत्तरे जोभणसए चार चरइ, सूरविमाणाओ चन्दविमाणे असीईए जोमणेहिं चार चरह, सूरविमाणाओ जोअणसए उबरिले तारारुवे चार चरइ, चन्दविमाणाओ वीसाए जोअणेहिं उवरिले णं तारारूवे चारं चरइ (सूत्र १६४) अधः चन्द्रसूर्ययोस्तारामण्डलं उपलक्षणात् समपंको उपरि च अणुं समं वेत्यादि वक्तव्यं १, शशिपरिवारो वक्तव्यः | ॥५२॥ 8२ ज्योतिश्चक्रस्य मन्दरतोऽबाधा वक्तव्या ३ तथैव लोकान्तज्योतिश्चक्रयोरबाधा ४ धरणितलात् ज्योतिश्चक्रस्याबाधा ५ किश्च-नक्षत्रमन्तः-चारक्षेत्रस्याभ्यन्तरे किं बहिः किं चोर्ध्व किश्चाधश्चरतीति वक्तव्यं ६ ज्योतिष्कविमानानां संस्थान । .अत्र मूल-संपादकस्य मुद्रण-शुद्धेः स्खलनत्वात् 'सू० १६२' इति द्विवारान् मुद्रितं, तत् कारणात् मया १६२R' इति सूत्रक्रम निर्दिष्टं ~1045~

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