Book Title: Aagam 18 JAMBUDWIP PRAGYPTI Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 1068
________________ आगम (१८) “जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति” - उपांगसूत्र-७ (मूलं+वृत्ति:) वक्षस्कार [७], -------- - मूलं [१६७-१६९] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [१८], उपांग सूत्र - [७] "जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति' मूलं एवं शान्तिचन्द्र विहित वृत्ति: श्रीजम्ब- द्वीपशा- न्तिचन्द्रीया वृतिः वक्षस्कारे अग्रमहिप्यो गुहाच स्थितिःसू. I १६७-१७० ॥५३२॥ एकादशयोजनशतान्येकविंशत्यधिकानि, ततः सर्वसङ्ख्यामीलने भवन्ति द्वादशयोजनसहस्राणि द्वे च योजनशते द्विचत्वारिंशदधिके, एवं तारारूपस्य तारारूपस्य अन्तरं प्रज्ञप्तमिति । अथ त्रयोदशं द्वारं प्रश्नयनाह-. चन्दस्स णं भंते ! जोइसिदस्स जोइसरण्णो कइ अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ?, गोत्रमा ! चत्तारि अग्गमहिसीभो पण्णताओ, तं.चन्दपमा दोसिणामा अधिमाली पर्भकरा, तओणं एगमेगा देवी चत्तारि २ देवीसहस्साई परिवारो पण्णत्तो, पभू णं ताओ एग- भेगा देवी अ देवीसहस्स बिउधित्तए, एवामेव सपुछावरेणं सोलस देवीसहस्सा, सेत्तं तुडिए । पहू ण भंते ! चंदे जोइसिंदे जोइसराया चंदवडेंसए विमाणे चन्दाए रायहाणीए सभाए सुहम्माए तुहिएणं सद्धिं महयाहयणगीभवाइअ जाव दिवाई भोगभोगाई भुजमाणे विहरित्तए?, गोअमा! णो इणले समढे, से केणद्वेणं जाव विहरित्तए ?, गो.! चंदस्स णं जोइसिंदस्स. चंदवडेंसए विमाणे चंदाए रायहाणीए सभाए सुहम्माए माणवए चेइअखंभे वइरामएमु गोलबट्टसमुग्गएम थहूईओ जिणसकहाओ सन्निखिताओ चिट्ठति ताओ ण चंदस्स अण्णेसि च यहूर्ण देवाण य देवीण य अपणिजाओ जाव पजुबासणिजाओ, से तेणवेणं गोयमा । णो पभूत्ति, पभू ण चंदे सभाए सुहम्माए चउहिं सामाणिअसाहस्सीहिं एवं जाव दिव्वाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरित्तए केवलं परिभारिद्धीए, णो चेव णं मेहुणवत्ति, विजया १ वैजयंती २ जयंती ३ अपराजिआ ४ सव्वेसिं गहाईणं एआओ भग्गमहिसीओ, छावत्तरस्तवी गहसयरस एआओ अग्गम हिसीओ वत्तव्याओ, इमाहि गाहाहिंति-इंगाला १ विआलए २ खोहिके ३ सणिच्छरे चेव । आहुणिए ५ पाहुणिए ६ कगगसणामा य पंचेव ११ ॥१॥ सोमे १२ सहिए १३ आसणेय १४ कजोवए १५ अ ॥५३॥ | चन्द्रादि ज्योतिष्काणाम् अग्रमहिष्याया: वर्णनं क्रियते ~1067~

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