Book Title: Aagam 13 RAJPRASHNIYA Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 2
________________ आगम (१३) “राजप्रश्निय”- उपांगसूत्र-१ (मूलं+वृत्तिः ) ----------- मूलं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१३], उपांग सूत्र - [२] "राजप्रश्नीय" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति: 000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 KREEMAHASARAMMARKoinsmissBEHREADRATERESTIVATWAREEMAHETAN आचार्यवर्यश्रीमन्मलयगिरिप्रणीतवृत्तियुक्तम् प्रत सूत्राक श्रीमत् राजप्रश्नीयसूत्रम् । दीप अनुक्रम प्रकाशकः-श्रीमत्या आगमोदयसमित्याख्यसंस्थाया एकः कार्यवाहका म्हेशाणावास्तव्यः श्रेष्ठी सूरचन्द्रात्मज वेणोचन्द्रः पत्तनवास्तस्पः श्री क्षेमचन्दात्मजोत्तमचन्दयुक्सुरतवास्तव्य श्रेष्ठिप्रतापचन्द्रात्मज मगनलालाभिषकृतद्रव्यसाहाय्येन. अस्य पुनर्मुद्रणाणाः सर्वेऽधिकारा पतसंस्थाकार्यवाहकाणायमाता: स्थापिताः । प्रतयः ७५.०. बीर संवत् २४५१. पण्यम 8-10 विक्रम संवत् १९८१. कास्ट १९२५. T M andanna -000000000000000000000000000000000000000 0 000000ananda LER Jantaratminematiind राजप्रश्नीय (उपांग)सूत्रस्य मूल “टाइटल पेज" ~1~

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