Book Title: Aagam 05 Bhagavati Daanshekhariyaa Vrutti Ang Sutra 5 Part 02
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 11
________________ आगम (०५) "भगवती- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) भाग-२ शतक [९], वर्ग H. अंतर्-शतक H, उद्देशक [१-३४], मूलं [३६०-३९२] + गाथा मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[०५], अंगसूत्र-[०५] "भगवती मूलं एवं दानशेखरसूरि-रचिता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [३६०३९२] RR शतके गाथा Hध्यवर्तिन इत्येवं १६, 'सलिल'ति नद्यः, तत्प्रमाणं च दर्शितमेव, 'पिंडए होइ संगहणि ति उद्देशकार्थानां पिण्डके-मीलके विषयभूते इयं सङ्ग्रहणी गाथा सात् ।। नवमशते प्रथमः॥ पर उद्देशः प्रथमे जम्बूद्वीपवक्तव्यतोक्ता, द्वितीयेऽपि जम्बूद्वीपादिषु ज्योतिष्फवक्तव्यतामाह, तस्वेदमादिसूत्रम्-'रायगिहे'त्यादि (सू ३६१) 'जहा जीवाभिगमे ति तदेतत्सूत्रम्-केवइया चंदा पभासिंसु वा पभासंति वा पभासिस्संति वा ? केवइया सूरिया तर्विसु ३१॥ केवइया नक्खत्ता जोयं जोईसु ३१ केवइया महागहा चारं चरिंसु ३१, केवइया तारागणकोडाको डीओ सोभं सोभिंसु ३१, शोभां कृतवत्य इत्यर्थः, 'गोयमा! जंबूदीवे दो चंदा पभासिंसु वा ३, दो मरिया तविंसु ३, छप्पणं नक्खता जोगं जोईसु वा | ३, छावत्तरं गहसयं चारं चरिंसु ३, बहुवचनं छान्दसत्वादिति, एगं च सयसहस्सं तेत्तीसं खलु भवे सहस्साई' (*६१) शेष सूत्रमध्ये लिखितमेवास्ते ॥ लवणे णं भंते'इत्यादौ (म. २६२) एवं जहा जीवाभिगमे'त्ति, तत्रेदमादिसूत्रम्-'केवइया चंदा, |पभासिंसु ३ केवइया सूरिया तर्विसु ३' इत्यादि प्रश्नमत्रं प्राग्वन , उत्तरं तु-गोयमा! लवणे णं समुद्दे चत्तारि चंदापभासिसु ३ | चत्तारि मरिया तर्विसु बारसोत्तर नक्खत्तसयं जोगं जोइंसु ३, तिण्णि बावण्णा महग्गहमया चार चरिंसु, दोणि सयसहस्ता |सत्तद्धिं च सहस्सा नव य सया तारागणकोडिकोडीणं सोभं सोभिंसु ३, सूत्रपर्यन्तमाह-जाव ताराउ'ति तारकासूत्र यावत् ,तच्च |दर्शितमेव, 'धायइसंडे' इत्यादौ यदुक्तं 'जहा जीवाभिगमे तच्चेदं सूत्रम्-'धायइसंडे णं भंते ! केवइया चंदा पभासिंसु ३१ केवइया |सरिया तर्विसु ३१ इति प्राग्वत्, उत्तरं तु-गोयमा! चारस चंदा पभासिसु ३, बारस मूरिया तर्विसु ३, एवं 'चउवीसं ससिर-1 |विणो नक्खत्तसया य तिण्णि बत्तीसा। एगं च गहसहस्सं छप्पणं धायईसंडे ॥१।। अद्वेष सयसहस्सा तिण्णि सहस्साई सत्त य दीप अनुक्रम [३६२ ४७३] ~11~

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