Book Title: Aagam 03 STHAN Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
________________
आगम
“स्थान" - अंगसूत्र-३ (मूलं+वृत्ति:) स्थान [१०], उद्देशक [-], मूलं [७६३]
(०३)
प्रत सूत्रांक
[७६३]
केवलिस्स णं दस अणुत्तरा पं० त०-अणुत्तरे जाणे अणुत्तरे दसणे अणुत्तरे चरिते अणुत्तरे तवे अत्तरे वीरिते अणुतरा खंती अणुत्तरा मुत्ती अणुत्तरे अजवे अणुत्तरे महवे अणुत्तरे लायवे १० (सू० ७६३) समतखेत्ते णं दस कुरातो पं०२०-पंच देवकुरातो पंच उत्तरकुरातो, तत्थ णं दस महतिमहालया महादुमा पं० सं०-जंबू सुर्वसणा १ धायतिरक्खे २ महाधावतिरुक्से ३ पउमरुक्खे ४ महापउमरुक्खे ५ पंच कूडसामलीओ १०, तत्व णं दस देवा महिडिया जाव परिवसति, सं0-अणाढिते जंबुद्दीवाधिपती सुदंसणे पियदसणे पोंडरीते महापोंगरीते पंच गरुला येणुदेवा १० (सू०५६४) दसहि ठाणेहिं ओगाढं दुस्सम जाणेज्जा, तं०-अकाले बरिसइ काले ण परिसइ असाहू पूइज्जति साहू ण पूइजंति गुरुसु जणो मिच्छं पतिवन्नो अमणुण्णा सदा जाव फासा १० । दसहि ठाणेदि ओगाई सुसमं जाणेजा तं.-अकाले न परिसति तं व विपरीतं जाव मणुण्णा फासा (सू० ७६५) सुसमसुसमाए णं समाए दसविहा रुक्खा उवभोगत्ताए हवमागच्छंति, सं०-मत्तंगता १ व भिंगा २ तुडितंगा ३ दीव ४ जोति ५ चित्तंगा ६ । चि
तरसा ७ मणियंगा ८ गेहागारा ९ अणितणा १० त ॥१॥ (सू० ७६६) 'दसे'त्यादि, नास्त्युत्तर-प्रधानतरं येभ्यस्तान्यनुत्तराणि, तत्र ज्ञानावरणक्षयात् ज्ञानमनुत्तरं एवं दर्शनावरणक्षया-1 दर्शनमोहनीयक्षयादा दर्शनं, चारित्रमोहनीयक्षयाच्चारित्रं, चारित्रमोहक्षयादनम्तवीर्यत्वाञ्च तपः-शुक्लध्यानादिरूपं वी-12 यन्तिरायक्षयाद् वीर्य, इह च तपःक्षांतिमुक्त्यार्जवमाईवलाघवानि चारित्रभेदा एवेति चारित्रमोहनीयक्षयादेव भव-13
*RECOctor
दीप
55623
अनुक्रम [९८३]
ainatorary.om
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [03], अंग सूत्र - [३] "स्थान" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
~ 1036~
Page Navigation
1 ... 1035 1036 1037 1038 1039 1040 1041 1042 1043 1044 1045 1046 1047 1048 1049 1050 1051 1052 1053 1054 1055 1056 1057 1058 1059