Book Title: Aadinath Charitra Author(s): Pratapmuni Publisher: Kashinath Jain Calcutta View full book textPage 9
________________ जन्मसे लेकर दीक्षा लेनेकी इच्छा उत्पन्न होनेतक को कथा लिखी है । प्रारम्भमें कुलकर विमलवाहनके पूर्वभवकी-सागरचन्द्रकी-कथा पढ़ने योग्य है। इसमें दुष्टोंको दुष्टता और सतीके सतीत्व और दृढ़ताका अच्छा चित्र अङ्कित किया गया है। देवदेवियोंके द्वारा किये हुए प्रभु के जन्मोत्सव और प्रभु तथा सुनन्दाके रूपका वर्णन बड़े विस्तारके साथ किया गया है। देवताओंने भगवान्के विवाहका जो महोत्सव किया था, उसका और वसन्त ऋतुका जो ख़ासा वर्णन इसमें किया गया है, वह कविके गौरवका सचा चित्र है। तीसरे सर्गमें प्रभुके दीक्षा-महोत्सव, केवल-ज्ञान और देशनाका समावेश किया गया है। चौथेमें भरतचक्रीके दिग्वजयका वर्णन है। यह कथा बड़ी ही मनोरञ्जक है। पांचवें सर्गमें बाहु बलिके साथ विग्रहकी कथा है। इसी प्रसङ्गमें सुवेगका दौत्य भी दर्शनीय हैं। उस जमानेके युद्धोंका इसमें खासा चित्र अडित किया गया है। छठे सर्ग में भगवान्के केवली हो जाने पर विहार करनेका वर्णन है । भगवान् तथा भरतचक्रीके निर्वाण तककी कथा इसमें लिखी गयी है । इसमें अष्टापद और शत्रुञ्जय तथा अष्टापदके ऊपर भरतचक्रोके बनाये हुए सिंह-निषद्या-प्रसादका वर्णन ख़ास कर पढ़ने योग्य है। प्रत्येक सर्गमें जहाँ जहाँ इन्द्र तथा भरतचक्री आदिने प्रभुकी स्तुति की है, वह ध्यान देकर पढ़ने योग्य है; क्योंकि उसमें बहुत सी बातें बतलायी गयी है।Page Navigation
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