Book Title: 24 Tirthankar Darshan Chaityavandan Stuti aur Thoy Author(s): Ajaysagar Publisher: Z_Aradhana_Ganga_009725.pdf View full book textPage 3
________________ श्री ऋषभदेव भगवान चैत्यवंदन आदिदेव अलवेसरु, विनीतानो राय; नाभिराया कुल मंडणो, मरुदेवा माय. पांचसें धनुषनी देहडी, प्रभुजी परम दयाल; चोरासी लख पूर्व-, जस आयु विशाल. वृषभ लंछन जिन वृषभ-धरुए, उत्तम गुणमणी खाण; तस पद पद्म सेवन थकी, लहीए अविचल ठाण. माता.१ माता.२ स्तवन माता मरुदेवीना नन्द, देखी ताहरी मूरति; मारुं मन लोभापुंजी, के मारुं चित्त-चोराणुं जी. करुणा-नागर करुणा-सागर, काया-कंचन-वान; धोरी-लंछन पाउले कांई,धनुष पांचसें मान. त्रिगडे बेसी धर्म कहंता, सुणे पर्षदा बार; । योजन गामिनी वाणी मीठी, वरसन्ती जलधार. ऊर्वशी रूडी अपसराने, रामा छे मनरंग; पाये नेपूर रणझणे कांई, करती नाटारम्भ. तुंही ब्रह्मा, तुंही विधाता, तुं जग-तारणहार; तुज सरीखो नहि देव जगतमां, अडवडिया आधार. तुंही भ्राता, तुंही त्राता, तुंही जगतनो देव; सुर-नर-किन्नर-वासुदेवा, करता तुज पद सेव. 'श्री सिद्धाचल तीरथ केरो, राजा ऋषभ जिणंद; कीर्ति करे माणेक मुनि ताहरी, टालो भव-भय फंद माता.३ माता.४ माता.५ माता.६ स्तुति आदि जिनवर राया, जास सोवन्न काया; मरुदेवी माया, धोरी लंछन पाया. जगत स्थिति निपाया, शुद्ध चारित्र पाया; केवल सिरी राया, मोक्ष नगरे सिधाया.१। ON HTTEN UERSAAR ASIAPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 ... 50