Book Title: Surchandra Charitram
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SKHER TO hto 55于听听听听 FARRIAN ॥ थीजिनाय नमः ॥ ॥ सूरचंद्रचरित्रम् ॥ (कर्ता-श्रीवर्धमानमूरि) -छपावी प्रसिद्ध करनार:पण्डित हीरालाल हंसराज-जामनगर. (मूल अने भाषांतर सहित) (वीरसंवत् २४६१) (सने १९३५) मुद्रकः-श्रीजैनभास्करोदय प्रिन्टिंग प्रेस. किंमत ०-१२-० AMALAM ILWALIZILI RESS HEREHERE THILA Page #2 --------------------------------------------------------------------------  Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरचंद्र ॥ १ ॥ -छ ॥ श्रीजिनाय नमः || ॥ श्रीसूरचंद्रचरित्रम् ॥ छपात्री प्रसिद्ध करनार - पण्डित श्रावक हीरालाल हंसराज (जामनगरवाळा) 6 पापध्वान्तभिदस्तस्य सम्यक्त्वस्य वेरिव । राशिव द्वादशश्राद्रवतान्या भोगवृत्तये ॥१॥ अर्थः- पापोरूपी अंधकारनो नाश करनारा सूर्यसरखा ते समकीतनी राशिओोसरखा भोगवा माटेनां श्रावकना वार व्रती छे. १ निरागस्त्रसहिंसाङ्गपीडारक्षणलक्षणम् । प्रथमं तेष्वहिंसाख्यं श्रादानां स्यादणुव्रतम् ॥२॥ अर्थः- तेओमां पहेलुं निरपराधी त्रस जीवोनी हिंसा न करवारूप, तथा तेनां शरीरने पीडा न उपजाववारूपा नामनुं श्रावकोनुं पहेलं व्रत होय छे. ॥२॥ 4X-R चरित्रं ॥ १ ॥ Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरचंद्र ॥ २ ॥ %% सुकृताम्भोजहंसी यहि सैवातिनिर्मला । भवमोक्षजलक्षीर विवेकाय निषेव्यते ॥ ३ ॥ अर्थ :- पुण्यरूपी कमलने ( शोभावनारी ) हंसीसरखी, अनें अतिनिर्मल एवी आ अहिंसा एटले दयाज संसार अने मोक्षरूपी जल तथा दूधने जूदा करवा माटे सेवाय छे. ॥३॥ भूस्वर्ग भोग सौख्यश्री सोपानश्रेणिशालिनी । अर्हिमा नाम निःश्रेणिनिःश्रेयसगमावधिः ||४|| अर्थ:- पृथ्वी अने स्वर्गना भोगोनी सुखलक्ष्मीरूपी पगथीयांओनी श्रेणिथी शोभती, अने छेक मोक्षसुधी उपर चडावनारी दयानामनी निःश्रेणी छे. ॥४॥ हिंसा निरन्तरं दुःखमहिंसा तु परं सुखम् । जन्तोदात्यहो सूरचन्द्रयोरिव तद्यथा ॥ ५॥ अर्थ:- अहो! हिंसा हमेशां दुःखने, तथा अहिंसा परम सुखने सूर अने चन्द्रनी पेठे प्राणीने आपेछे, ते भोनुं उदाहरण नीचे मुजवछे. ५ अस्ति रूपेण संपत्त्या सुकृतोपचयेन च । पुरन्दरपुराल्लब्धजयं जयपुरं पुरम् ॥ ६ ॥ अर्थः— (लोकोनां) रूप, समृद्धि तथा पुण्यना समूहवडे करीने, इंद्रना नगरपासेथी पण जेणे जय मेळवेलो छे, एवं जयपुरनामनुं नगर छे. ॥६॥ अभूद् भूपः श्रियां पात्रं तत्र शत्रुञ्जयाहयः । यद्यशःक्षीरधिर्वैरिदुर्यशः शैवलाद्बभौ ||७|| अर्थः- ते नगरमां लक्ष्मीना भाजनरूप शत्रुंजयनामनो राजा इतो, के जेनो यशरूपी महासागर वैरिओना अपयशरूपी शेवालथी शोभतो हतो. ॥७॥ चरित्रं ॥ २ ॥ Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ বন্তি मरचंद्र ॥३॥ Pawar तन्दनौ सूरचन्द्राख्यौ तस्याभूतां मतौ सताम् । सूरचन्द्राविवोन्निद्रानन्दं कर्तुमिदं जगत् ।।८।। अर्थः-आ जगतने प्रगटरीते आनंद करवाने सूर्य अने चंद्रसरखा, अने सज्जनोने माननीक एना, ते राजाने मूर अने चंद्र नामना बे पुत्रो हता. ॥८॥ ज्येष्ठे श्रेष्ठगुणभ्रान्त्या विभ्राणः स्नेहविभ्रमम् । स तम्मै मनवे राजा युवराजपदं ददौ ॥९॥ ___ अर्थः-म्होटामा उत्तम गुणो होय, एवी भ्रमणाथी तेपर स्नेह विलासने धारण करनारा ते शत्रुनयराजाए ते मूरनामना पुत्रने युवराजनी पदवी आपी. ॥९॥ चन्द्रस्य तु महीन्द्रेण न वृत्तिरपि निर्ममे । ततः स चिन्तयामास स्वावासशयनो निशि ॥१०॥ ____ अर्थः-चंद्रनामाना ते न्हाना पुत्रनी तो राजाए कई आजीविका पण करी आपी नही, तेथी पोताना आवासमां मूतो मूतो ते रात्रिए विचारवा लाग्यो के, ॥१०॥ सूरोऽद्य विदधे राज्ञा युवराजः स्वयं मुदा । न पत्तिरप्यहं वृच्या पितुर्मोहः कियानहो ॥११॥ ___अर्थ:-राजाए पोते आजे हर्षथी मरने तो युवराज बनाव्यो, अने मने आजीविका जेटलं पण न आप्यु. अहो ! पिताजीनी केटली गेरसमज छे? ॥११॥ पराभूतस्य तद्राज्ञा स्थातुं मेऽत्र न युज्यते । कलभः किं वसेयूथे यूथेशेनापमानितः ॥१२॥ अर्थः-माटे राजाए तिरस्कारेला एवा मारे अहीं रहे, लायक नथी, केमके यूथनायकथी अपमान पामेलो युवान हाथी रों SKRIRANA i l-CARRIA Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरचंद्र 118 11 6 पछी ते यूथमां रहे छे? ॥१२॥ एवं विचिन्त्य निस्तन्द्रञ्चन्द्रः सान्द्रपराभवः । अचलद्गलितस्नेहः स्वगेहान्निय्यलक्षितः ||१३|| अर्थ:- एम विचारीने अत्यंत दुभायेलो ते चंद्रकुमार (कुटुंबपते) स्नेहरहित थइने गत्रिए कोइने जणाच्याविना छुपीरीते पोताने रथी सावधान योथको चाली निकळयो. ॥१३॥ चित्तावेशतक्लेशः स्वदेशत्यागरागभृत् । कुमारः सुकुमारोऽपि दुरे देशान्तरेऽविशत् ॥१४॥ अर्थ:-- हृदयना उत्साहथी दूर थयेल के क्लेश जेनो, अने पोताना देशनो त्याग करवामां आनंद मानतो. एवो ते चंद्रकुमार सुकुमाल छतां पण दूर देशांतरमां दाखल थयो. ॥१४॥ रत्नपत्तनमित्यत्र पतनं विद्यतेऽद्भुतम् । तदुद्यानसमीपेऽस्थाच्चन्द्रः श्रान्तस्तरांस्तले ॥१५॥ अर्थ:- हवे अ रत्नपत्तन नामनुं अद्भुत नगर है, तेना उद्यानपासे आवेला एक वजनी नीचे था की गयेलो ते चंद्रकुमार बैठो. श्रुतिपेयं स्वरं श्रुत्वा ततस्तदनुसारतः । विशन्नाराममद्राक्षीचन्द्रः माधुं सुदर्शनम् ॥ १६ ॥ अर्थः- पछी कर्णमां सांभळवा लायक ध्वनि सांभळीने, तेने अनुसारे ते उद्यानमां दाखल थतां ते चंद्रे सुदर्शननामना मुनिने जोया. सभागर्भावनौ नत्वा तत्त्वार्थादेशकं मुनिम् । तन्मुखादिति शुश्राव स धर्म भावपावनः ||१७|| अर्थः- समानी वचली भूमिमां [बेसीने] तत्वार्थनो उपदेश देता ते मुनिराजने नमीने, तेमना मुखथी पवित्र भाववाळीते चंद्रकुमार नीचेमुजब धर्मदेशना सांभळवा लाग्यो. ॥१७॥ चरित्रं ॥ ४ ॥ Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4 सूरचंद्र ॥५॥ R-7- सापराधा अपि प्रायो गेहिभिः पुण्यदेहिभिः । न हन्तव्यास्त्रसास्तावकि पुनस्ते निरागसः ॥१८॥ अर्थ:-पवित्र शीरवाळा गृहस्थोए तो अपराधी त्रस जीवोने पण हणवा जोइये नही, त्यारे तेवा निरपराधी जीवो माटे तो कहेज ? ॥१८॥ इत्यादिदेशनां कर्णदेशनान्दी निशम्य सः । प्रपद्य करूणामेवं स्वगिरा प्रत्यपद्यत ॥१९॥ अर्थः-[पोताना] कर्णभागने आनंद आपनारी इत्यादि देशना सांभळीने ते चंद्रे जीवदयाने स्वीकारीने पोताना वचनथी नीचे मुजब अंगीकार कर्यु.॥ १९॥ मयापराधिनोऽप्युच्चैपरोधेऽपि च प्रभोः । जन्तवो हन्त हन्तव्या नान्यतः शौर्यवृत्तितः ॥२०॥ अर्थ:-मारे म्होटा अपराधी जीवोने पण, स्वामिनो आग्रह छतां पण, तेम बीजी कोइ सुभत्तिथी पण, अरेरे! जीवोने मारवा नही. ॥ २०॥ इत्यात्तनिश्चयश्चन्द्रो नत्वा सत्त्वगुर्गुरून् । पुरे तत्रैव धात्रीशं जयसेनमसेवत ॥२१॥ अर्थः-एरीते निश्चय करीने महापराक्रमी ते चंद्रकुमार ते गुरुमहाराजने वांदीने तेज नगरमा (त्यांना) जयसेन नामना राजानी सेवा करवा लाग्यो. ॥२१॥ शौचसत्यौचितीदाक्ष्यदाक्षिण्यादिभिरद्भुतैः । निजैः सेवागुणैरेवाभवद्भर्तुरयं प्रियः ॥२२॥ अर्थः-पवित्रता, सत्य, उचितता, चतुराइ तथा दाक्षिणता आदिक पोताना अद्भुत सेवागुणोथी ते राजाने प्रिय थइ पडयो ॥२२॥ SEARRESOM २-%AA-%ARAM Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरचंद्र ॥ ६ ॥ % निवेश्य रहसि प्रेतहसितस्नपिताधरः । लपति स्म पतिः शुद्धविवेकममुमेकदा ॥ २३ ॥ अर्थः- एक दिवसे प्रेमवाळां डास्यथी स्नान करावेल छे होठोने जेणे एवा ते राजाए निर्मल विवेकवाळा ते चंद्रकुमारने एकांते बेसाडी कहां के, ॥ २३ ॥ अपीन्द्रसमरे धीरा वीराः क्षीराभकोर्तयः । ये सन्ति मे तृणानीव त्वद्दष्टिस्नान पीक्षते ॥ २४ ॥ अर्थः- इंद्रसाथेना युद्धमां पण जे मारा दुधसरखी उज्जवल कोर्तिवाळा धैर्यवंत सुभटो छे, ते भोने पण तारी दृष्टि तणखलांना पेठे जोड़ रही है. ॥ २४ ॥ क्रियाकथित निःशेषगुणस्य तव पौरुषम् । दृष्टिर्दिशत्वसौ धैर्यरसार्णवनवाजिनी ॥ २५ ॥ अर्थः – कार्यथी कही आपेल छे सर्व गुणो जेणे एवो जे तुं, तेनी धेर्यरूपी रसना महासागरमां नवी कमलिनी सरखी आ दृष्टि पराक्रमने सूचवी रही छे. ॥ २५ ॥ तद्वीरवारकोटीर वैरिशल्यं मम स्खलत् । तृर्णमाकर्ष हृदयादुदयादपि रोपितम् ॥ २६ ॥ अर्थ :- माटे हे शूरवीर शिरोमणि ! दाखल थवाथी खूंचता एवा शत्रुरूपी शल्यने ( मारा ) हृदयमांथी उगतुंज तुं तरत (जडमूळथी) खेची कहाड? ।। २६ ॥ अन्यायमादिराकुम्भः कुम्भ इत्युग्रशुम्भनः । मन्न्यायवृक्षकरटी चरटीभूय वल्गति ॥ २७ ॥ अर्थ :- अन्यायरूपी मयना घढासरखो, भयंकर विनाशवाळो तथा मारा न्यायरूपी वृक्षने उखेडी नाखवाने हाथीसरखा 66% % %% -16 चरित्रं ॥ ६ ॥ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरचंद्र CERIE Ani.x-- || कुंभनामनो मनुष्य धाडपाडु थइने उन्मत्तपणे कुद्या करे छे. ॥ २७ ॥ स्त्रीश्च गाश्च हरत्येष करो हन्ति यतीनपि । चमूमदो यमस्यापि दुर्गम दुर्गनश्चति ॥ २८ ॥ ___ अर्थ:-ते दुष्ट कुंभो स्त्री तथा गायोने हरी जाय छे, मुनिश्रोने पण मारी नाखे में, अने ज्यारे नेने सैन्यथी रोकवामां आवे | छे. त्यारे ते यमराजाने पण दुर्गम एवा किल्लामा भराइ बेसे छे. ।। २८ ।। तत्तदुर्ग महादुर्गवलगनो वल्गुविक्रमः । गुप्तं प्रविश्य तं सुप्त मत्यमोदाय दारय ।। २९ ।। अर्थः-माटे मने खुशी करवा माटे अति विकट स्फुर्तिवाळो, तथा मनोहर पराक्रमवाळो एपो तुं ते किल्लामां गुप्त रीते प्रवेश करीने तेने मृतो चीरी नाख ? ॥ २९ ॥ इत्यात्तवाचि भूपे गां चन्द्रोऽमुश्चत्सुधामयीम् । प्रारब्धतीर्थधर्ममहासागरजागराम् ॥ ३० ॥ अर्थः-राजाए एम कहेवाथी ते चंद्रकुमार तीर्थकर प्रभुना धर्मरूपी महासागरमांथी उछठेली अमृतमय वाणी बोलवा लाग्यो के __ हन्तुं जन्तुनयुद्धेषु प्रत्याख्यानं प्रभो मम । युद्धेश्वपि परित्रस्तानस्तानन्दानिरायुधान् ।। ३१ ।। अर्थ:-हे स्वामी ! युद्ध नही करनारा प्राणी भोने हणवानां मारे पच्चख्खाण छे, तेम युद्धमा पण भयभीत थइ नाशता, उत्साह| रहित थयेला अने शस्त्रविनाना जीवोने पण (हणवानां मारे पच्चख्खाण छे.) ॥ ३१ ॥ इत्यस्य निश्चयं शौर्यमयं धर्ममयं च सः । नृपो मत्वा मनश्चक्रे पदसंमदयोः पदम् ॥ ३२ ।। अर्थ:-एवीरीतनो तेनो शौर्यपणानो तथा धर्मनो निश्चय जाणीने ते रानाए पोतानां हृदयने अभिमान तथा हर्पना स्थानरूप कयु. - .. . . SHe%AE-%E x-road Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ S चरित्रं ॥८॥ A सूरचंद्र अध्यक्षमगरक्षाणामग्रण्यं मन्त्रिणामपि । सर्वेश्वरं च तं चक्रे क्रमात्प्रीतः क्षमापतिः ॥ ३३ ॥ . अर्थः-अनुक्रमे खुशी थयेला राजाए तेने अंगरक्षकोनो स्वामी, मंत्रीओनो पण अग्रेसर अने सर्वनो स्वामी बनान्यो. ॥३३॥ ॥८॥ पापव्यापारपारीणो रीणातुलचमूकुलः । विवेश देश संरम्भी स कुम्भचरटोऽन्यदा ॥ ३४ ॥ अर्थः-(एवामां) एक दिवसे पाप कार्योनो पारंगामी, तथा अतुल्य सैन्यना समूहने हरावनारो ते उद्धत कुंभानामनो धाडपाडू (ते राजाना) देशमा दाखल थयो. ॥ ३४ ॥ सारवीरचयश्चन्द्रस्तबधाय दधाव च । अम.र्गत्वरितः सैन्यैर्दुर्गमार्गान् मरोध च ॥ ३५ ॥ अर्थः-शूरवीर सुभटोना समूहने ( साथे लेइने ) ते कुंभाने मारचा माटे चंद्रकुमार दोडयो, तथा मुख्य मार्गने तजीने अबळे | मार्गे वेगथी दोडता सैन्योथी तेणे [तेना] किल्लाना मार्गने रोकी दीधो. ॥ ३५॥ पलायमानमुन्निद्ररौद्रचन्द्रचमूभयाम् । तं रुरोध पुरोदर्षसहर्षसुभटोत्करः॥ ३६॥ अर्थ:-ते चंद्रकुमारनां सावधान तथा भयंकर लश्करना भयथी नाशता एवा ते कुंभाधाडपाडुने अगाडीना भागमां तैयार उभेला आनंदित सुभटोना ममूहे घेरी लीधो. ॥ ३६॥ पुरतः पार्श्वतः पक्रान्मिलद्भिः स बलैरभूत् । वनेभः सर्वदिग्धावद्दवानल इवाकुलः ॥ ३७॥ ___ अर्थ:-तेथी आगळ, पडखेथी अने पाछडथी एकठां थयेलां लश्करवडे ते सर्व दिशाएथी दोडी आवता दावानलमा घेराइ ६ गयेला हाथीनी पेठे व्याकुल थयो. ॥ १३ ॥ SAGAR-SMC-sare) -KARM- RICA Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरचंद्रा सेनासु तासु चरटो झन्झासु करटो यथा । कथंचिज्जीवनोपायकणिकामप्यनाप्नुवन् ॥ ३८॥ न शौर्य वहिलेशोऽपि मय्यस्तीति दिशन्निव । सनिःश्वासमुखन्यस्ततृणश्चन्द्राग्रतोऽलुठत् ॥ ३९ ॥ ॥९॥ अर्थः-शंझावायुथी घेरायेला कागडानिपेठे, ते सैन्योथी घेरायेलो ते कुंभोचोर, कोइ पण रीते जीववाना उपायनो लेश पण नही मळवाथी, ॥ ३८ ॥ हवे मारामां शूरवीरता रूपी अग्निनो लेश पण नथी, एम जाणे जणावतो होय नही! तेम निःश्वाससहित | मुखमां घास राखीने ते चंद्रकुमारपासे लोटवा लाग्यो. ॥३९॥ - प्रसन्नहृदयः स्फीतदयस्तदयमुद्यशाः। हृष्यद्रोमालिमालिंगत्कुंभमुत्थाप्य भूपभूः ॥ ४० ॥ ____अर्थः-तेथी आनंदित हृदयवाळो, विस्तीर्ण दयावाळो, तथा फेलाको पामता यशवाळो ते चंद्रराजकुमार, हर्षित रोमश्रेणिवाळा ते कुंभाने उठाडीने आलिंगन देवा लाग्यो. ॥४०॥ तदादि स्फुरदादिलमहसं बहुसंमदः। चन्द्रं नृपोऽधिकं मेने पुत्रतोऽपि खतोऽपि च ॥ ४१ ॥ अर्थः-त्यारथी मांडीने अत्यंतमुखी थयेलो ते राजा जाज्वल्यमान मूर्ख सरखा तेजवाळा ते चंद्रकुमारने पुत्रथी तथा पोताथी पण अधिक मानवा लाग्यो. ॥ ४०॥ चन्द्राग्रभूरतृप्तस्तु योवराज्यश्रियापि सः । राज्याय सूरः क्रुरात्मा दधो पितृवधे धियम् ॥४१॥ ____ अर्थ:-हवे क्रुर हृदयवाळो चंद्रनो म्होटो भाइ ते सूरकुमार, युवराजनी पदवीथी पण असंतुष्ट थइने राज्य मेळववा माटे (पोताना) पिताने मारी नाखवानी बुद्धि धस्वा लोग्यो. ॥४१॥ HARSHISHEKHAR Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरचंद्र चरित्रं ॥१०॥ CHALGAE%ESMQ निशीथे निशितास्त्रोघो दूरं वचितयामिकः । उन्मार्गेः सौघमाविष्टः कालादिष्टः फणीव सः ॥ ४२ ॥ अर्थ:-सजेला शखांना समूहवाळो ते मुरकुमार पहेरेगीरोने अत्यंत ठगीने, यमराजाए हुकम करेला सर्पनीपेठे मध्यरात्रीए | छींडीने मार्गे राजमहेलपा दाखल थयो. ॥ ४२ ॥ . ततः पराङ्मुखं सुप्तं तीव्रणास्त्रेण भूपतिम् । स जघान घनं लोभः शोभते मूलमंहसाम् ।। ४३ ॥ अर्थ:-पछी उलटे मुखे सुतेला राजाने तेणे तीक्षणशस्त्रथी घायल कर्यो, अति लोभ ए पापोर्नु मूळ छे. ॥ ४३ ॥ ततस्त्रसन्मो देव्या दृष्टः संमुखसुप्तया । घात्येष याति घात्येष यातीति पूरकृतो रवः ॥ ४४ ॥ अर्थः-पछी (त्यांची) नाशता एवा ते सूरकुमारने साये मूतेली राणीए जोयो, ( अने तेथी) आ खूनी नाशी जाय छे, आ | खूनी नाशी जाय छे, एम तेणीए पोकार को. ॥ ४४ ॥ धावत्सु द्वारपालेषु भूपालेनेत्यभाषि च । कश्चायं घातक इति ज्ञातव्यो मैष हन्यताम् ।। ४५ ॥ अर्थ:-पछी पहेरेगीरी ज्यारे तेने पकडवाने दोडवा लाग्या, त्यारे राजाए का के आ खूनी कोण छे ? तेने ओळखयो छे, माटे हाल तेने मारशो नही. ॥ ४६॥ तनुजं मनुजस्वामी तं विज्ञाय विकारिणं । यूथादिनष्टं दासेरमिव देशान्निरामयत् ।। ४७ ।। अर्थः-पछी ते पुत्रने सुनी जाणीने राजाए उद्धत थयेला उंटने जेम टोळांमांथी कहाडी मेले, तेम तेने देशमांधी कहाडी मेल्यो. त्वरचतुरगामः स क्रमेलकमेलकैः । प्रधानपुंभिर्भूचंद्रः सुतं चन्द्रमथाहयत् ॥ ४८ ।। Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - सूरचंद्रा चरित्रं ॥११॥ ॥११॥ GHASHES अर्थ:-पछी ते राजाग उंटने पण पकडी पाडे एका वेगवंत घोडाघोपर स्वार थयेला मंत्रीभो मारफत (पोताना) ते चंद्रनामना पुत्रने बोलाव्यो. ॥४८॥ जयसेनमयपृछध समायातस्तथास्थितम् । पितरं प्रेक्ष्य चन्द्रोऽभूदास्पदं हर्षदुःखयोः ॥ ४९ ॥ __ अर्थः-पछी ते जयसेन राजानी रजा लइने आवेलो ते चन्द्रकुमार तेवी हालतवाळा पिताने जोइने हर्ष तथा दुःखना स्थानरूप थयो. . निवेश्य तं मुतं राज्ये राजा तद्धातपीडया । सरे समत्सरो मृत्वा द्वीपी कापि नगेऽभवत् ॥ ५० ॥ ___ अर्थः-पछी ते चन्द्रकुमारने राज्यपर बेसाडीने, ते सूरकुमारपर वैर राखतोथको ते राजा ते धानी वेदनाथी मृत्यु पामीने पर्वतपर दीपडो थयो. ॥ १० ॥ ___ कलंकपंचियः सोऽपि सूरो जीवन्कुकर्मभिः । चरन्देशान्तराण्याप वनं तदीपिदीपितम् ।। ५१ ॥ __ अर्थ:-कलं कथी क्लीन थयेलो ते सूरकुमार पण कुकर्मोवडे जीवतो थको देशांतरमां भटकतो ते दीपडाथी भयंकर धयेला | 2 वनमां आनी चडयो. ॥ २१॥ । पलायमानस्तत्रायमहःसंहतपौरुषः । जघ्ने प्राग्वैरवैरस्थात्कोपिना द्वीपिनामुना ॥ ५२ ॥ ____ अर्थः-पापथी न् वयेला बलवाळो ते जेदामा (त्यांथी) नाशत्रा लाग्यो, तेवामां पूर्वना वैरना द्वेषयी ते क्रोधातुर थयेला दीपडाए त्यांज तेने मार्ग नास्यो. ॥ ५२ ।। स सूरजीबस्तत्रैव वने यातः किरातताम् । पापविधितारम्भस्तेनैव द्वीपिना हतः ॥ ५३॥ RAGHARASHTRA Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्रं Recra RASECRER ॥१२॥ सूरचंद्रा R अर्थ:-(पछी) ते मूरकुमारनो जीव तेज वनमा भिल्लपणु पाम्यो, त्यां शिकारथी वृदि पामेला पापवाळा एवा तेने तेज दीपडाए मारी नाख्यो. ॥५३॥ ॥१२॥ सोऽपि द्वीपी हतः कोपाटोपान्धेस्तस्य बन्धुभिः । तावभूतामुभौ शैलवने तत्रैव पोत्रिणी ॥ ५४॥ | अर्थ:-क्रोधना आवेशथी अंध थयेला तेना भाइओए ते दीपडाने पण मारी नाख्यो, पछी तेओ बन्ने तेज पर्वतना वनमा | वराहो थया. ॥ ५४॥ तत्र त्रिवत्सरो व्यक्तमत्सरौ तौ परस्मरम् । संग्रामव्यसनव्यग्राववधील्लुब्धकवजः ॥ ५५ ।। __ अर्थः-त्यां त्रण वर्षोनी उमरवाळा, प्रगटपणे द्वेष राखनारा, अने परस्पर लडवाना व्यसनमां आसक्त थयेला, एवा तेओ || बन्नेने शिकारीभीनी टोळीए मारी नाख्या. ॥ ५५ ॥ ततोऽन्यतो बने क्वापि मृगावभवतामुमौ । तथैव प्रथितद्वेषसमरौ शबरोऽवधीत् ॥५६॥ अर्थ:-पछी कोइक वीजा वनमां तेओ बन्ने हरिणो थया, तथा तेवीन रीते द्वेषथी लड़ी मरता एवा तेओ बनेने (कोइएक) भिल्ले मारी नाख्या. ॥ ५६॥ गजपोतावथैकस्मिन्गजयूथे बभुवतुः। युध्यमानौ च तौ यूथभ्रष्टौ भिल्लगणोऽग्रहीत् ॥ ५७॥ । अर्थः-पछी कोइ एक हाथीना टोळांमां तेओ वन्ने हाथीना बच्चा थया, अने त्यां (परस्पर) लडता थका टोळाथी विखूटा |पडी जवाथी तेओ बन्नेने भिल्लोनी टोळीए पकडी लीघा. ॥५॥ ile-CASHECK Re-imCREX- Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्रं मरचंद्र तो परम्परया चन्द्रनरेन्द्रालयमायतुः । न्यषिध्येतां मुहर्यद्वयुद्धावाधोरगैबलात् ॥ ५८ ॥ अर्थः-अनुक्रमे तेओ बन्ने चंद्रराजाने घेर आव्या, त्यां वारंवार लडीमरता एवा तेश्रो बन्नेने महावतो बहु मुश्केलीथी ॥१३॥ मूकावता हता. ।। ५८॥ कदाचिदाययौ तत्र केवलालोकभासुरः । मुनिः सुदर्शनो नाम जिनदर्शनभास्करः ॥ ५९॥ अर्थः-(एवामां) एक दिवसे त्यां केवलज्ञानरूपी प्रकाशथी तेजस्वी थयेला, जैनशासनमां सूर्यसरखा सुदर्शननामना मुनिराज पधार्या. मनोवृत्तीर्वहन्भक्तिगहनाः सह नागरैः । वनं ययौ मुनि नन्तुकामः कामयिता भुवः॥ ६॥ अर्थः-( ते वखते ) ते राजा भक्तिथी गंभीर मनोवृत्तिने धारण करतोथको नागरिकोनी साथे ते मुनिराजने वांदवानी ५ इच्छाथी ते वनमा गयो. ॥ ६॥ मुनि नत्वाथ तत्त्वार्थवेदिन मेदिनीपतिः। धर्मोपदेशपीयुषपूरं पातुमुपाविशत् ॥ ६१ ॥ अर्थः-पछी तात्विक अर्थाने जाणनारा एवा ते मुनिने नमीने ते चंद्रराजा (तेमनी) धर्गदेशनारूपी अभृतनो समूह पीवाने वेठा. व्याख्यान्तेऽथ नृपोऽपृच्छत्केवली च न्यवेदयत् । तयोरिणयोर्वेरकारणं दरदारुणम् ॥ ६२॥ अर्थः-पछी धर्मदेशनाने अंते राजाए पूछनाथी केवली भगवाने ते बन्ने हाथीभो वच्चेनुं अति भयंकर वैरनुं कारण जणाची दी. तचरित्रासंवेगो भवोद्वेगेन वेगतः । प्रवव्राज स राजन्यः कृत्वा राजानमात्मजम् ॥ ६३ ॥ है अर्थः-तेओना वृत्तांतथी थयेलो छे वैराग्य जेने, एवा ते चंदराजाए एकदम संसारथी कंटाळीने, पोताना पुत्रने राजा *SARAFSASARA-KA - CA Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरचंद्र ॥ १४ ॥ करीने दीक्षा लीधी. ॥ ६३ ॥ विरराज स राजर्षिस्तपस्तपनतेजसा । ततोऽगादिवमुद्दामसंमदामृतदीर्घिकाम् ॥ ६४ ॥ पछी ते चंद्रराजर्षि तपरूपी सूर्यना तेजथी दीपत्रा लाग्या, अने त्यारपछी अति उपरूपी अमृतनी वात्र सरखा देवलोकमां ते गया. विवर्धिष्णुविरोधदुर्धरौ तौ तु सिन्धुरौ । आद्यं दुःखसरसास्वादकरकं नरकं गतौ ।। ६५ ।। अर्थ :- विशेष प्रकारे वृद्धि पाममा वैरना मोजांओथी उद्धत थयेला ते बन्ने हाथी ओ तो, दुःखरसना स्वादना भाजन (कर्मइल) सरखी पेहेली नरकमां गया. । ६५ । तद्वद्वृत्तौ च तौ लब्धजन्मानौ पापयोनिषु । अनन्तभवसंतमात्मानौ संचरतोऽभितः ।। ६३ ।। अर्थः-पछी त्यांथी निकळीने तेओ बन्ने दुष्ट योनिओमां जन्म लेइने, अनंता भवोमां दुःखो सहन करताथका चौतरफ भ्रमण करवा लाग्या ।। ६६ ॥ चन्द्रजीवस्तु स स्तुत्यं भुक्त्वा स्वर्गसुखं चिरम् । लब्ध्वा शुद्धमनुष्यत्वं खामी सिद्धिश्रियोऽभवत् ६७ अर्थ:--ते चंद्रराजर्षिनो जीव तो प्रशंसनीय स्वर्गसुखने घणा काळसुधी भोगवीने, निर्मल मनुष्यभत्र पामी मोक्षलक्ष्मीनो मालीक भयो अमुं दृष्टान्तमाकर्ण्य मुक्तिसंप्राप्तिकारणम् । अहिंसासेवकैर्भाव्यमिच्छद्भिः शिवमात्मनः ॥ ६८ ॥ अर्थः- मोक्षनी प्राप्तिना कारणरूप, एवं आ दृष्टांत सांभळीने पोतानुं हित इच्छनारा माणीओए अहिंसाव्रतने सेवनारा थवु. ६८ || अहिंसावतउपर मूरचंद्रचरित्र संपूर्ण ॥ 6-%% %৮ র नरित्रं ।। १४ ।। Page #17 --------------------------------------------------------------------------  Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PUOIOICCONCICICONONOISICIOUSIC POISIDIISI care gespeegeeresgegevegtegetesteteeeeeeeeeeggetretegreppet DIISINDICISI e getegresestesgespetete getegetiere इति श्रीसूरचंद्रचरित्रं समाप्तम् PIISSIIS ANONSICKSIDACICNSSICUM