Page #1
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
For Private and Personal Use Only
Page #2
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ANA
अथ शीतलासप्तमी-नागपंचमी व्रतकथा
॥ अथ गुजरातीटीकासहित ॥
त 1. ५.००
BAR
HAR
ECERH
OILMS
SOR
For Private and Personal Use Only
Page #3
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
प्रत २००० ]
www.kobatirth.org
छपावी प्रसिद्ध करनार
महादेव रामचंद्र जागुष्टे, बुकसेलर
त्रण दरवाजा - अमदावाद
अनुवादक
कृष्णप्रसाद भट्ट, बी. ए.
आवृत्ति पहेली
वसंत प्रिन्टिंग प्रेसमां जयंति घेलाभाई दलाले छाप्यं. ठे,. घीकांटा रोड, घेलाभाईनी वाडी, अमदावाद.
किंमत १
For Private and Personal Use Only
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
[ सने १९५३
Page #4
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
C
.
॥ श्री गणेशाय नमः॥ ॥ अथ शुक्लादि श्रावण कृष्ण सप्तम्यां शीतलाव्रतकथा॥
॥ अथ व्रत विधि ॥ वंदेऽहं शीतला देवीं रासभस्थां दिगंबराम् । मार्जनीकलशोपेतां शूर्पालंकृतमस्तकाम् ॥१॥
गधेडा उपर जे नग्नावस्थामां बेठेलां छे, सावरणी अने कळश सहित छे, तेमज जेमनुं मस्तक सूपडांओथी शोभे छे, एवा शीतला देवीने । हुं नमस्कार करुं छं ॥१॥
प्रसिद्धं श्रूयतां रम्यं नगरं हस्तिनापुरम् । इंद्रद्युम्नश्च राजाभृन्नृपतिर्लोकपालकः ॥२॥
॥ श्रीकृष्ण उवाच ॥
vidoa
For Private and Personal Use Only
Page #5
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥ श्रीकृष्ण बोल्या ॥ हस्तिनापुर नामर्नु एक प्रख्यात सुंदर नगर हतुं, त्यां प्रजापाळक इंद्रद्युम्न नामनो राजा थइ गयो ॥२॥
धर्मशीलाभिधा चासीत्तस्य भार्या यशस्विनी। क्रियाकांडे रता साध्वी दानशीला प्रियंवदा ॥३॥
तेने यशवाळी, कर्मकांडमां प्रीतिवाळी, पतिवृता, दानेश्वरी अने। प्रिय बोलनारी धर्मशीला नामनी स्त्री हती ॥३॥
बभूव प्रथमः पुत्रो महाधर्मेति नामतः। नंदते पितृवात्सल्याकालेऽन्यस्ततोऽभवत्॥४॥
॥२॥
For Private and Personal Use Only
Page #6
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
, तेने पहेलो महाधर्म नामनो पुत्र थयो. ते पिताना लाडथी , आनंदमा रहेतो ॥४॥
द्वितीया च तथा पुत्री तस्य जाता गुणोत्तमा। पुत्री लक्षणसंपन्ना शुभकारीति नामतः ॥५॥ महाधर्म नामना पुत्र पछी शुभकारी नामनी पुत्री अवतरी ते । उत्तम गुणवाळी, शुभ लक्षणवाळी हती ॥५॥
ववृधे सा पितुर्गेहे सर्वांगगुणसुंदरी। नाम्ना रूपेण सा बाला सर्वासां च गुणधिका॥६॥ ते सर्व गुणसंपन्न सुंदरी पिताने घेर मोटी थवा लागी, ते नामथी
For Private and Personal Use Only
Page #7
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सी०, अने गुणथी बधांने प्रिय हती ॥६॥
सामुद्रिकगुणोपेता पद्महस्ता प्रियंवदा। कौंडिन्यनगरे राजा सुमित्रो नाम नामतः ॥७॥ तत्पुनो गुणवान्नाम शुभकार्याः पतिर्बभौ। वरोहि देहमानेन लक्ष्मीवान् रूपवान् गुणैः ॥८॥ गुणवान् शुभकारिण्याः पाणिजग्राह धर्मवित्।। गृहीत्वा पारिबर्हाणि गतोऽसौ नगरं प्रति ॥९॥
ते सामुद्रिकमां कहेलां शुभ लक्षणवाळी हती, तेना हाथमां पद्म हतुं. ते प्रिय बोलनारी हती ए शुभकारीनो विवाह कौडिन्य नगरना ॥३॥
For Private and Personal Use Only
Page #8
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
राजा सुमित्रना पुत्र गुणवान साथे करवामां आव्यो हतो. ते धनवान.? रुपवान, गुणवान अने गुण तेमज वयथी शुभकारीने लायक हतो. तेणे शुभकारी साथे पाणिग्रहण कर्या पछी पहेरामणी लइ ते पोताना नगर । प्रत्ये गयो ॥७-८-९॥
पुनः समाययौ राजा गुणवान् हस्तिनापुरम् वृतः परिजनैः सर्वैस्तत्पुत्र्या नयनोत्सुकः ॥१०॥ तं दृष्ट्वा शुभकारी सा सहर्षी जातसंभ्रमा। प्रणम्य च पितुः पादौ तमूचे चारुहासिनी ॥११॥ मया तात पविज्ञातं यदुक्तं पद्मयोनिना। पातिव्रत्यसमो धर्मो नास्तीह भुवनत्रये ॥१२॥
For Private and Personal Use Only
Page #9
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
सी
॥४॥
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
तस्मादाज्ञां देहि राजन् प्रहृष्टेनांतरात्मना ।
रथमारुह्य यास्मामि स्वामिना स्वपुरं प्रति ॥१३॥
पाछो समय थयो त्यारे पोतानी स्त्री शुभकारीने तेडवा घणा माणसो साथे ते हस्तिनापुर गयो तेने जोतां शुभकारी आनंदमां आवी जइ मधुर हास्यवाळी उतावळी पिता पासे गइ अने प्रणाम करीने कहेबा लागी " त्रिलोकमां परिवृत जेवो बीजो कोइ धर्म नथी." एवं ब्रह्माजीए कयुं छे ते हुं जाएं छं. तेथी आप प्रसन्नचित्ते मने रजा आपो तो हुं मारा पति साथे रथमां बेसी मारे सासरे जाउं ॥ १०-११-१२-१३॥
For Private and Personal Use Only
ᄋ
॥४॥
Page #10
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
तस्यास्तद्वचनं श्रुत्वा पितोवाच सुतां प्रति। स्थित्वैकं वासरं पुत्रि शीतलाव्रतमुत्तमम् ॥१४॥ सौभाग्यारोग्यजनकमवैधव्यकरं परम् । कृत्वा याहि मतं ह्येतत्त्वन्मातुर्मम चैव हि ॥१५॥ पुत्री- वचन सांभळी पिता कहेवा लाग्या, मारी तेमज तारी! मातानी ईच्छा छे के एक दिवस रोकाइ सौभाग्य अने आरोग्य देनारं तेमज वैधव्य टाळनारं उत्तम शीतला देवीनुं बत करोने जा ॥१४.१५॥
इत्युक्त्वा व्रतसामग्री पूजोपकरणं तथा। संपाद्य राजा तां सद्यः शीतलामर्चितुं नृपः॥१६॥
For Private and Personal Use Only
Page #11
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सी०
प्रेषयामास सरसि ब्राह्मणं वेदपारगम्। सपत्नीक तया सार्धं गता सा तहनांतरे ॥१७॥
आम कही व्रतनी सामग्री तैयार करावी राजाए तरत ज शीतलाना पूजन माटे पोतानी पुत्रीने, वेदना सारी रीते जाणकार ब्राह्मण अने तेनी पत्नी साथे तळावे मोकली ॥१६-१७॥
भ्रमंती तत्सरस्तत्र नापश्यहिघिसाधनम्। श्रांता भ्रमंती विजने स्मरती शीतलां मुहुः ॥१८॥
आ बधां वनमां गयां अने तळावने शोषवा फांफां मारवा लाग्यां पण तळाव मळ्युं नहि शुभकारी रखडतां थाकी गइ हती छतां ते ॥५॥
For Private and Personal Use Only
Page #12
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मा शीतलानो जाप जपती हती ॥१८॥
ददर्श सा ततो नारी वृद्धा रूपगुणान्विताम् । विप्रस्तु स भ्रमन् श्रांतः सुप्तो निद्रावशंगतः ॥१९॥ दृष्टोऽहिना मृतस्तस्य भार्या तनिकटे स्थिता। शुभकारी ततो वृद्धा सोवाच करुणाधीः ॥२०॥
शुभकारी शीतलाना जाप जपतो वनमां भमती हती त्यां उत्तम रुप तेमज गुणवाळी एक घरडी स्त्री तेणे जोइ अने वनमा फरतां पेलो ब्राह्मण थाकी गयो हतो ते सूतो ने तेने सर्प करडयो स्यारे तेनी स्त्री तेनी पासे बेठी हतो ते वखते पेली घरडी स्त्रीए दयाथी
For Private and Personal Use Only
Page #13
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
सी०
॥६॥
शुभकारीने युं ॥ १९-२०॥
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
भविष्यति चिरंजीवी भर्ता ते राजकन्यके । आगच्छ पूजनार्थाय दर्शयामि सरोवरम् ॥ २१ ॥
राजकन्या तुं पूजन माटे मारी साथे चाल हुं तने तळाव बता त्यां मा शीतलानी पूजा करवाथी तारो पति चिरंजीव थशे ॥ २१ ॥ तया सह गता साध्वी तडागं विधिपूर्वकम् । पूजयामास हर्षेण तोपयामास शीतलाम् ॥ २२॥
आ सांभळी शुभकारी ए वृद्धा साथे तळाव पर गइ अने विधिपूर्वक आनंद साथै पूजा करी मा शीतलाने संतोष्या ॥२२॥
For Private and Personal Use Only
DADAR
घ०
॥६॥
Page #14
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
तस्या वरं प्राप्य मुदा स्वमार्ग गंतुमुद्यता। ततः सा ददृशेऽरण्ये ब्राह्मणं दृष्टेसर्पकम् ॥२३॥ भार्यां तु तस्य निकटे रुदती ब्राह्मणी मुहुः । राजपुत्री लब्धवरा शीतलायाः पतिव्रता ॥२४॥ तयोस्तरुणदंपत्योर्योग्यसौभाग्यदर्शनात् । रुदती करुणं सापि शुशोच च मुंहमुहुः ॥२५॥
संतोष पामेलां शीतलाए शुभकारीने वरदान आप्यु. वरदान मेळवी ते आनंदथी घर प्रति जवा लागी रस्तामा सर्प दंशथी मरण पामेलो ब्राह्मण अने तेनी पासे बेसी रडती तेनी स्त्रीने तेने जोयां तेमना !
For Private and Personal Use Only
Page #15
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
सी०
॥७॥
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
भाग्यने जोइ शुभकारी रडवा लागो अने वारंवार शोक करवा
लागी ॥२३-२४-२५॥
आश्वास्य ब्राह्मणी सा तु राजपुत्रीमुवाच ह । तिष्टतिष्ट क्षणं सुभ्रु प्रविशामि हुताशनम् ||२६|| अनेन सह गच्छामि स्वर्गलोकं सुखावहम् । तस्यास्तद्वच आकर्ण्य राजपुत्री दयान्विता ॥२७॥ सस्मार शीतलां देवीं महावैध्यव्यभंजनीम् । आगच्छच्छीतला तत्र वरं दातुं शुचिस्मिता ॥२८॥ ब्राह्मणीए शोक करती राजकन्याने आश्वासन आपी कयुं हे
For Private and Personal Use Only
ᄋ
॥७॥
Page #16
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सुभगे ! तुं थोभ हुँ अग्निमां प्रवेश करी सुखदायी स्वर्गलोकमां मारा पति साथे जाउं छं. ब्राह्मणीना आ शब्दो सांभळी तेने दया आवी । अने तेणे वैधव्यने नाश करनार शीतला देवी, स्मरण करवा मांडयु
के तरत ज मंद हास्य करतां वरदान आपवा मा शीतला त्यां प्रगट थया ॥२६-२७-२८॥
॥ शीतलोवाच ॥ वरं वरय वत्से त्वं किं दुःखं चारुहासिनि । शीतलाबतजं पुण्यं देहित्वं ब्राह्मणी शुभाम् ॥२९॥ तेन पुण्यप्रभावेण भर्ताऽस्या निर्विषो भवेत् ।
For Private and Personal Use Only
Page #17
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
सी०
በረ
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
इति देव्या वचः श्रुत्वा अवदद्ब्राह्मणीं ततः ॥ ३०॥
॥ शीतलादेवी कहेवा लाग्यां ॥
हे सुंदर हास्यवाळी, तने शुं दुःख पडयुं छे. तुं मारी पासे वरदान माग अने शीतला देवीना व्रतनुं पुण्य आ ब्राह्मणीने आप एटले ते पूण्यना प्रभावथी तेना पतिने चढेलुं झेर उतरी जशे मातानां आवां वचन सांभळी राजकन्याए ब्राह्मणीने ते पूण्य आप्णुं ॥२९-३०॥
बुबोधाशु ततो विप्रश्चिरं सुप्तो यथा पुनः । शीतलाया व्रते बुद्धिर्ब्राह्मण्याचाभवत्तदा ॥ ३१॥
व्रतनुं पुण्य मळतां घणा वखतथी सूतेलानी जेम ब्राह्मण उठघो
For Private and Personal Use Only
ᄋ
ዘረ
Page #18
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
, ते जोइ ब्राह्मणीने पण व्रत करवानी इच्छा थइ ॥३१॥
अकरोत्सापि तत्पूजां भक्तिभावपुरःसरा। तत्रांतरे राजपुत्र्याः प्रतिरागाहनांतिकम् ॥३२॥ सोऽपि दृष्टोऽथ सर्पण गच्छंत्यग्रे ददर्श तम् । विल्लाप ततः साध्वी सख्या सह वनांतरे ॥३३॥
ब्राह्मणीए पण भक्तिभावपूर्वक शीतला मानी पूजा करी. ते वखते १ शुभकारीनो पति वनमा आवतो हतो. तेने सर्प करडवाथी ते मरण
पाम्यो. तेने राजपुत्रीए रस्ते जतां जोयो एटले ते तेनी सखी ब्राह्मणी ६ साथे वनमा रडवा लागी ॥३२-३३॥
For Private and Personal Use Only
Page #19
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सी०
व.
॥९॥
॥ शीतलोवाच ॥ वत्से मया पूर्वमुक्तं स्मर तबरवणिनि । शीतलावतचारिण्या वैधव्यं नैव जायते ॥३४॥ स्वयमुत्थाय कल्याणि पति सुप्तं गृहे यथा। बोधयाशु तथा भीरूव्रतं वैधव्यनाशनम् ॥३५॥
॥ त्यारे प्रगट थइ शीतला बोल्यां ॥ हे पुत्री, में पहेला का हतुं तेम शीतलानुं व्रत करवाथी रंडापो । आवतो नथी. माटे हे कल्याणि! हे भिरू! तुं पोते घरमां सूतेला
पतिने जगाडे तेम जगाड. केमके शीतलानुं ब्रत रंडापाने दूर * करनार छे ॥३४-३५॥
॥९॥
For Private and Personal Use Only
Page #20
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
इत्युक्ता बोधयामास भर्तारं सा पतिता। भापि मुदितो दृष्ट्वा स्वां प्रियां प्रीतिमानभूत्॥३६॥
आवां मा शीतलानां वचन सांभळी पतिवृता राजपुत्रीर पोताना पतिने उठाड्यो तेथी तेनो पति पोतानी पत्नी पर घणोज प्रसन्न थयो ॥३६॥
दृष्ट्वा तु महदाश्चर्यं तद्ग्रामस्थायिनो जनाः । सर्वे ते विस्मयं जग्मुर्ब्राह्मणीपतिरक्षणात् ॥३७॥
अने गाम लोको ब्राह्मणीना पतिनुं रक्षण थवाथी विस्मय पाम्या तेमज आ बधुं जोइ महान आश्चर्यमां डूबी गया ॥३७॥
ब्राह्मणी हर्षिता वृहां प्रणिपत्य पतिव्रता।
For Private and Personal Use Only
Page #21
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
भ
सी०
॥१०॥
देहि मातर्नमस्तेऽस्तु अवैधव्यावियोगते ॥३८॥ अन्यापि शीतलायास्तु व्रतं नारी करिष्यति । अवैधव्यमदारिद्यमवियोगं स्वभर्तुतः ॥३९॥ पतिवृता ब्राह्मणी आनंद पामो वृद्धाने पगे लागी कहेवा लागी हे माता! हुं आपने नमस्कार करु छ अने मारं सौभाग्य अखंड रहे * अने पतिनो वियोग न थाय अने जे कोइ स्त्री आ व्रत करे तेने वैधव्य न आवे, दरिद्र न थाय तेम ज पोताना पतिनो वियोग न थाय ॥३८-३९॥
तथेत्यंतर्दधे देवी शीतला कामरूपिणी। शीतलाया वरं लब्ध्वा जगामात्मीयवेश्मनि ॥४०॥
॥२३॥
For Private and Personal Use Only
Page #22
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पद्माकरावासिमविश्ववंद्या समर्हणासादितविश्वमंगला। प्रसादमासाद्य चशीतलायाराज्ञः सुता पार्वतिवद्बभूव ॥४१॥
॥ इतिश्री भविष्य पुराणे शीतलाव्रतं संपूर्णम् ॥
ब्राह्मणीने माग्या प्रमाणे वरदान आपी अनेक रूपोने धरनारा मा । । शीतला अद्रश्य थइ गयां. मा शीतला पासेथी वरदान मेळवी सहु पोत पोताने स्थाने गयां अने शुभकारी मा शीतलाना प्रसादे करी। लक्ष्मीनी पेठे विश्ववंद्य अने पार्वतीनी जेम पूज्य थइ ॥४०-४१॥
॥ इतिश्री भविष्य पुराणे शीतला व्रत कथा संपूर्ण ॥
For Private and Personal Use Only
Page #23
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ अथ श्रावणशुक्ल पंचमी नागपंचमी व्रत ॥
॥ इश्वर उवाच ॥ श्रावणे मासि पंचम्यां शुक्लपक्षे वरानने। द्वारस्योभयतो लेख्या गोमयेन विषोल्बणाः॥॥
॥ इश्वर बोल्या ॥ हे पार्वति, बारणांनी बने बाजुए श्रावण सुद पांचमने दिवसे । छाणना झेरी साप करवा ॥१॥
घृतोदकाभ्यां पयसा स्नापयित्वा वरानने। गोधूमः पयसा चैव लाजैश्च विविधैस्तथा ॥२॥
For Private and Personal Use Only
Page #24
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
तेमने दूध, घी अने चोक्खा पाणीथी नवडाववा घउं, दुध, धाणी ₹ वगेरेनुं नैवेद्य धरवू ॥२॥
पूज्यविधिद्वेवि दधिदुवांकुरैः क्रमात् । गंधपुष्पोपहारैश्च ब्राह्मणानां च तर्पणम् ॥३॥
पछी विधि प्रमाणे गंध, पुष्प, दहीं अने दुर्वा वगेरेथी तेओनी पूजा । करवी अने ब्राह्मणोने संतोषवा ॥३॥
अथवा श्रावणेमासि पंचम्यां श्रद्धायान्वितः। यश्चालेख्य नरो नागान् कृष्णवर्णादिवर्णकैः॥४॥ अथवा श्रावण मासनी पांचमना दिवसे श्रद्धापूर्वक माणसे काळा
For Private and Personal Use Only
Page #25
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ना०
॥१२॥
रंगना नागो काढवा ॥४॥
गुरुकल्पांस्तथा वीथ्यां स्वगृहे वा पटे बुधः। पूजयेद्धधूपैश्च पयसा पायसेन च ॥५॥ तस्य तुष्टिं समायांति पद्मकास्तक्षकादयः। आसप्तमात्कुले तस्य न भयं नागतो भवेत् ॥६॥
शेरीमां, घरमां अथवा कपडा उपर मोटा मोटा नागो काढी दूधथी पूजा करी दूध अने दूधपाक वगेरेथी तेमने जे कोइ संतोष पमाडे छे ते माणस पर पद्मक, तक्षक तेमज मोटा मोटा नागो प्रसन्न थाय छे अने ते माणसनी सात पेढी सुधी नागनो भय ॥१२॥
For Private and Personal Use Only
Page #26
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
रहेतो नथी ॥५-६॥
दिवारात्रौ नरैः कार्य मेदिनीजननं नहि । मन्त्रोयमुच्यते सर्पविषस्य प्रतिषेधकः ॥७॥ तस्य प्रजपमात्रेण न विषं क्रमते सदा।
ॐ कुकुलं फट्स्वाहा ॥८॥ ते दिवसे, दिवसे अथवा राने जमीनने खोदवी नहि तेमज नागना झेरने बंध करनार 'ॐ कुकुलं हुंफटस्वाहा' आ मंत्रनो जप जपनो ॥७-८॥
इत्येवं कथितं देवि नागनतमनुत्तमम् ।
For Private and Personal Use Only
Page #27
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
यच्छ्रत्वा च पठित्वा च मुच्यते सर्वपातकैः ॥९॥ ___ इति प्रभासखंडे नागपंचमी व्रतम् ॥
हे देवि, आ प्रमाणे नागवत कहेवामां आव्यु छे जे सांभळवाथी १ अथवा पाठ करवाथी बधां पापोमांथी मुक्त थवाय छे ॥९॥
॥ इति प्रभासखंडे नागपंचमी व्रत संपूर्णम् ॥
॥१३॥
For Private and Personal Use Only
Page #28
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
કથા કરવા લાયક ગુજરાતી ટીકાના પુસ્તકો
9 વ્રત અને કથાઓ પુરાણમાંથી સાદી અને સરળ ભાષામાં બારે માસનાં બધા જ વ્રતો આપેલાં છે.
કીંમત માત્ર રૂ. ૨-૦-૦ અનંત ચતુર્દશી વ્રતકથા-મુળ સહિત ગુજરાતી ટીકા બાળબોધ અક્ષરમાં
છુટા પાનાં કથા કરવા ગ્ય ૧-૦ ૦-૩ રૂષિપંચમી વ્રતકથા-મુળ સહિત ગુજરાતી ટીકા બાળબોધ અક્ષરમાં છુટા પાના કથા કરવા યોગ્ય
૧–૦ ૦-૩ ગંગાદશહરા વૃતકથા-મુળ સહિત ગુજરાતી ટીકા બાળબોધ અક્ષરમાં છુટા પાના કથા કરવા યોગ્ય
૦-૧૨ ૦-૩ વેદ, ધર્મશાસ્ત્ર તથા કથાનાં પુસ્તકો મળવાનું મોટું મથક – મહાદેવ રામચંદ્ર જાગુષ્ટ, બુકસેલર
ત્રણ દરવાજા–અમદાવાદ
For Private and Personal Use Only
Page #29
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
इति शीतलासप्तमी - नागपंचमी व्रतकथा
समाप्त ॥ इति गुजरातीटीकासहित ॥
For Private and Personal Use Only
Page #30
--------------------------------------------------------------------------
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir IBIZED For Private and Personal Use Only