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तस्मादाज्ञां देहि राजन् प्रहृष्टेनांतरात्मना ।
रथमारुह्य यास्मामि स्वामिना स्वपुरं प्रति ॥१३॥
पाछो समय थयो त्यारे पोतानी स्त्री शुभकारीने तेडवा घणा माणसो साथे ते हस्तिनापुर गयो तेने जोतां शुभकारी आनंदमां आवी जइ मधुर हास्यवाळी उतावळी पिता पासे गइ अने प्रणाम करीने कहेबा लागी " त्रिलोकमां परिवृत जेवो बीजो कोइ धर्म नथी." एवं ब्रह्माजीए कयुं छे ते हुं जाएं छं. तेथी आप प्रसन्नचित्ते मने रजा आपो तो हुं मारा पति साथे रथमां बेसी मारे सासरे जाउं ॥ १०-११-१२-१३॥
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