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॥ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ अथ श्रावणशुक्ल पंचमी नागपंचमी व्रत ॥
॥ इश्वर उवाच ॥ श्रावणे मासि पंचम्यां शुक्लपक्षे वरानने। द्वारस्योभयतो लेख्या गोमयेन विषोल्बणाः॥॥
॥ इश्वर बोल्या ॥ हे पार्वति, बारणांनी बने बाजुए श्रावण सुद पांचमने दिवसे । छाणना झेरी साप करवा ॥१॥
घृतोदकाभ्यां पयसा स्नापयित्वा वरानने। गोधूमः पयसा चैव लाजैश्च विविधैस्तथा ॥२॥
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