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भ
सी०
॥१०॥
देहि मातर्नमस्तेऽस्तु अवैधव्यावियोगते ॥३८॥ अन्यापि शीतलायास्तु व्रतं नारी करिष्यति । अवैधव्यमदारिद्यमवियोगं स्वभर्तुतः ॥३९॥ पतिवृता ब्राह्मणी आनंद पामो वृद्धाने पगे लागी कहेवा लागी हे माता! हुं आपने नमस्कार करु छ अने मारं सौभाग्य अखंड रहे * अने पतिनो वियोग न थाय अने जे कोइ स्त्री आ व्रत करे तेने वैधव्य न आवे, दरिद्र न थाय तेम ज पोताना पतिनो वियोग न थाय ॥३८-३९॥
तथेत्यंतर्दधे देवी शीतला कामरूपिणी। शीतलाया वरं लब्ध्वा जगामात्मीयवेश्मनि ॥४०॥
॥२३॥
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