Book Title: Punyaharsh Rachit Lekh Shrungar
Author(s): Mahabodhivijay
Publisher: ZZ_Anusandhan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीपुण्यहर्षरचित लेखशृंगार - सं.मुनि महाबोधिविजय भूमिका : विक्रमना सोळमा सैकाथी अढारमा सैकामां लखायेला ढगलाबंध विज्ञपित्रो आजे प्राप्त थाय छे. परंतु आ क्षेत्रमा हजी जोईए तेवू खेडाण थयुं नथी. बहु जूज विज्ञप्तिपत्रो प्रगट थया छे. आ क्षेत्रमा जो वध खेडाण थाय तो घणी मैतिहासिक विगतो बहार आवे. प्रस्तुत छे लेखशृंगार. विज्ञप्तिपत्रनी कोटिमां मूकी शकाय एवी आ अद्भुत कृति छे. मोटाभागना विज्ञप्तिपत्रो गद्यमां प्राप्त थाय छे. प्रस्तुत कृति पद्यमां छे. कुल एकसो चोसठ कडी छे. कृतिना कर्ता छे श्रीपुण्यहर्ष मुनि. वि. सं. १६४२ना चैत्र सुद पूनमना स्थंभनतीर्थमां आ कृतिनी रचना थइ छे. आ कृतिनी एक प्रतिकृति अमदावादना संवेगी उपाश्रय, हाजापटेलनी पोळना हस्तप्रतभंडारमाथी प्राप्त थइ छे. प्रतिलेखक नुं शुभनाम छे .... श्रीगजेन्द्रगणिना शिष्य श्रीरौंडागणिना शिष्य श्रीरत्नहर्षगणि. प्रतिलेखन स्थळ पण स्थंभनपुर - खंभात छे. हवे आ कृतिना विषय अंगे पण थोडं जाणी लईए. जगद्गुरुश्रीहीरविजयसूरिमहाराज अकबरनुं आमंत्रण स्वीकारी वि.सं. १६३९ना गुजरातथी विहार करी दिल्ली पधार्या. चार चातुर्मास ए बाजु थया. चार-चार वर्षनो विरह मुनिश्रीथी सहन थतो नथी एटले सूरिजीने पत्र लखवा तैयार थया. खंभातथी आ पत्र लख्यो छे फत्तेपुरसीक्रीना सरनामे. सहु प्रथम पांच तीर्थंकरोने नमस्कार करीने भारतना मुख्य देशोना नाम आप्या छे, त्यारबाद मैवाड देशनुं अने फत्तेपुर सीक्रीनुं सुंदर वर्णन छे. पछी कवि श्रीविजयसेनहरि महाराज ना आदेशथी आ पत्र लख्यो छे तेनो उल्लेख करे छे. तथा सूरिजीने पोतानी भावभरी वंदना पाठवे छे. कडी ५३थी सूरिजीना गुणोनुं वर्णन चालु थाय छे. सूरिजीना गुण गावा केटला कठिन छे ते अलग अलग द्रष्टांतोथी समजाव्युं छे. अंते 'अइ गुरु गुण तुम तणा लिखता नावई पार' कहीने आ विषय पूर्ण कर्यो छे. कडी ८८/८९मां आ पत्र मळे एटले आपना स्वास्थ्यनी जाणकारी वळता पत्रमा मोकलशो तेवी विनंति करी छे. साथ आपना हस्ताक्षर प्राम थता अमने आनंद थशे तेम जणात्यु छ Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 51 त्यारबाद गुजरातमा रहेला प्रमुख साधुओना नाम आपी तेओनी वंदना जणावी छे, साधे सूरिजी जोडे रहेला केटलाक साधुओना नाम लईने वंदना पाठवी छे. कडी १०४थी सूरिजीने गुजरात पधारवा माटे कवि करारी रह्यो छे. गुरुजीनो विरह सहन थतो नथी ते वात तेमणे भिन्नभिन्न द्रष्टांतो वडे जणावी छे, बच्चे बच्चे मीठा ओलंभाओ पण आप्या छे. 'त्यांना देशमां तमे केम आटला बधा मोहाइ गया छो ? अमे तो तमने सुकुमाळ स्वभावना जाणता हता, तमे तो त्यां जईने बहु कठण मनना थइ गया छो... वगेरे. ' १२२मी कडीमां आ पत्रनी पूर्णाहुति करीने पत्र दूतने फत्तेपुर पहोंचाडवा आपे छे. जता दूतने उभो राखीने कवि कहे छे आ पत्र जलदीथी सूरिजीने पहोंचाड साथे जणावजे के आपना दर्शन न थाय त्यां सुधी गुजरातमा केटलाय लोकोए अभिग्रहो लीधा छे. आप पधारो एटले घणा लोको घणी जातना सुकृतो करवाना मनोरथो सेवी रह्या छे. साथे ए कहेवानुं न भूलतो के अमे गुजरातना लोको भलाभोळा छीए. अमने कूड-कपट नथी आवडता. गुरुजी ! ए देशना धूतारा लोकोए आपने मोटा मोटा लाभो बतावीने भोळवी दीधा छे. छेले दूतने कहे छे तुं गुरुजीने जलदी थी गुजरात लइ आव. तो अहींना संघो तने सोनानी जीभ, रत्नना मुगट, अगणित धन वगेरे आपीने कायम माटे तारुं दूतपणं टाळी देशे. दूतने रवाना कर्या पछी गुरुजीनी स्मृति वधु ने वधु घेरी थता मनोमन जाणे सूरिजी साथे वातो करता होय तेवी कडीओ आवे छे. पत्र रवानो थइ गयो छे. थोडा दिवसमा गुरुजीने मळी जशे ए कल्पनाथी आनंदमां आवीने जाणे मोटेथी न बोलता होय तेवी हर्षभरी त्रण कडीओ छे. अंते पत्र जगद्गुरुने प्राप्त थइ गयो छे, तेओ श्रीमदेवांच्यो छे, अने हवे आववानुं मन करी रह्या छे तेवी वात छे. छेल्ले कळश आपीने आ कृतिनी समाप्ति करो छे. आखी कृति आह्लादक छे. गुरुना विरहमां शिष्यना हृदयमां थतो वलोपात छतो थाय छे. पुनः पुनः आस्वाद माणवा जेवी आ कृतिना कर्ताना चरणोमां भावभरी वंदना. Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऐं नमः ।। आसाउरी ॥ दूहा . स्वस्ति श्रीऋषभंजिनं , श्री नाभिनरेन्द्रमल्हार । कनकवर्ण काय जेहनी, पंचशतधनुष उदार' ।। १॥ संतिकरण संतीश्वरू सोलसमु जिनचंद । अचिरा माता उअरई धर्यो, विश्वरेन नृपचंद ॥ २॥ निज भुजबल हरि तोलियो, तजी जेणई राजकुमार । गिरिवर रजइ संयम लीयो, जय जय नेमकुमार ॥ ३॥ महिमा जेहनु जागतु, पूरई वंछित आस । त्रेवीसमु तीर्थंकरु, संकट भंजन पास बालपणइं जेणइं चालियो, हेला मेरुगिरिंद । वासवचित्त चमक्कियो, अंतिम वीरजिणिदं इति पंचतीर्थी प्रति, प्रणमी लिखइ वर लेख । पुन्यहरष गुरु हीरनइ, फतेपुर नयर विशेष ॥ ६॥ हंसतणी परि उज्जलो, वर्णन अधिक विचित्र । पंडित इव ते साक्षसो, वर्ण सुवर्ण सचित्र ढाल आरब-हबस-रोम-खुरासान काबिलनइ कंकाल । सब्बर-बब्बर-भिभर-मुहर फरंगनइ प्रतिकाल जंगल-बंगल-गख्खर-भख्खर ठठानई बंगाल । हल्लार-लाहोर-उंच-महाउंच चीन-महाचीन-पंचाल ॥ ९|| भोट-महाभोट-लाट-कासमीर करणाट- बईघाट-बंबाल । उद्धृत-गुडंत- भुटंत- भोटियो भाटी भोम भंभाल ॥१०॥ ॥ ५॥ । ७॥ ॥ ८॥ Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लख्ख-सवालख्ख-पाल-नेपाल सिंधु अनइ सोवीर । हिच्छं-भुच्छ-भुंच्छाल-जटाला हम्म-हाम्म-हम्मीर ॥ ११॥ अंग-वंग-कुलिंग-तिलंगा गोड-चोड-कनोज । भाल-भलिंद-मगध-मागध पाली-पंथ-कंबोज ॥१२॥ कासी-कोसल-करठ-मरहठ बहुलीनइ जट-जाट । निमच-नील-नलउ नीलाब नीलकंठ कैरखाट ॥ १३॥ कछ-महाकछ-कुंकण-कलहत्थ पाखर-पंड-खंडोर। गाजण-गंगापार-पूरवियो पारदल पंडोर ॥१४॥ उटकोट-अघाट-कलिंजर स्यालकोट चउसाल । कल्हर-काल्हर-होर-हाडोटी हुर हार हम्मीर ॥ १५॥ कुरूप-कारूप-जालंधर-चिल्लर डाहल डंड डंडीआण । कान्हड-कचूउ-कल्ल-कलंदर मंड-मंडोर-मंडाण ॥ १६।। विकंड-घाट-लुंटाक-गुआलेर नरवर पंच भरतारो । स्त्रीराजा राज करई जिहां हइ हनुमन्त हकारो ॥१७॥ भरड भोरदर गुंड गुंडवाणो दक्खण सच्च साचोरो । सोवन भिन्नमाल भल सिंहल छपन धूत धूतारो ॥ १८॥ कुणाल कामरु महीमड मालव खानदेस नमीआड। दम्मण सोरठ गुज्जर वागड मारुआड मेवाड ॥१९॥ इत्यादिक जे देस सवालख्य तेहमांहि विख्यात । मध्यखंड विराजइ महीअल मोटो देस मेवात । २०। दूहा सकल देस मुखमंडनो श्री मेवात वडदेस । अकबर राज करतइ जिहां नहीं परदल प्रवेस ॥ २१॥ Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 54 राग-मधुमाघ देस मनोहर श्रीमेवात जिहां जन न करइ कोणनी ताता लोक घणा दातार तु जय जय । ठाम ठाम ते दाननी साल पर्वं घणी जिहाँ विसाला पथिक पामइं संतोष तु जय जय ॥ २२॥ वस्तु वाना कोना पइ घाट चोर चरड नवि लागइ वाट कनक उछालई हिंडइ तु जय जय ॥ २३॥ वरसइ जिहाँ किणि माग्या मेह धरति धरइ अधिक सनेह नीपजइ बहुला अन्न तु जय जय ॥ २४॥ न पडइ जिहाँ किणि कदाय दुकाल धान्य पाणीतणु सुगाल रंग-रंगीला लोक तु जय जय ॥ २५॥ लोकतणि घरि घणां य दुझाणां दधिअ दुध आपइ रिझाणा । अति घनइ अणमांग्या तु जय जय ॥ २६॥ देस देसना जिहां व्यापारी निज अधिकार धरि अधिकारी । बसइ ते लोकनी चिंता तु जय जय ॥२७॥ चामल यमुना नदी य मनोहरा वापी कूप अनइ सरोवर। वनवाडी आराम तु जय जय ॥२८॥ सूरीपुर हथनाउर सार मोटां तीरथ जिहां जूहारइं। जाइ पातिक दूर तु जय जय ॥२९॥ आगरुं बयानु पीरोजाबाद महिम अलवर अभिरामाबाद । दीली मथुरां हंसार तु जय जय ॥३०॥ तेजाराप्रमुख बहु गाम कोस कोस अन्तर अभिराम । जिन प्रसाद सहित तु जय जय सात व्यसन काढ्य जिहां कूटी । । अमारी सरग्वी जिहां य वधूटी । || ३ || Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 45 ॥ ३७॥ अमर सरिखा पुरुष तु जय जय ॥ ३२॥ स्याहि अकब्बरनी जिहां आण अधिक स्युं किजइ वखाण । स्वर्गखंड अवता तु जय जय ॥ ३३॥ राग-देसाख सोहि अमरपुरी अ समान मध्यखंडमंडनं प्रधान । नयर फतेपुर जगवदीत उत्तम घर घर छइ जिहां रीत ॥ ३४|| गढ मढ मंदिर पोल पगार चोपट चोहटा जिहां उदार । हट्ट तणी चिहुं पासि उल माणिकचोक विचइ अमोल ॥ ३५।। धनद समाना जिहां धनवंत वसइ व्यवहार्या अतिपुण्यवंत । भोग पुरंदरलीलविलास कियो काम निजरूपइ दास ॥ ३६।। रतिरूप जिहां सुंदर नार घूघर नेउरनइ रणकार । कामी केरां मन मोहंति मंथर मराली गति सोहंति निरखइ केइ नाटक रंगरोल करइ केइ कथाकल्लोल । गवडावइ बइठा केइ गान भावभेद प्रीछइ सुजान ॥ ३८॥ कनकदंडमंडित प्रासाद इन्द्रविमानसुं करता वाद । श्री जिनवर केरां जिहां तुंग कैलास तणा जाणे के तुंग ॥ ३९॥ जिहां मुनिवर पोसाल विशाल जग गुरु हीरजी दीइ रसाल । बइठां जिहां मधुरो उपदेश सुणइ सादर भविअन सविसेस ।। ४०॥ प्रबल प्रतापवंत महीनाह राज करइ तिहां अकबर स्याह । स्याहि हमाउ केरो पुत्र निज भुजबल सवि जित्या शत्रु ॥ ४१।। विस्तरइ जेहनी आगन्या चंड विकट रायना ते लइ दंड । पलावइ चिहुं खंड अमार जाणइ बीजो श्रीकुमार ॥ ४२।। न्यायनीतंइं जाणे के राम अवतरिउ कलियुग अभिराम । रूपई जाणई सोहद काम खानमलिक करद प्रणाम ।।१३।। Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 56 ॥४४॥ हस्ति जेहनइ पनर हजार बीजा दलतणो नहि पार । श्री जगगुरुना गुण समरंति राग-मालवीगुडु वस्तुं स्याहि अकब्बर मुद्गलाधीस वात पूछी तप कारइ । मोकली अ मेवाडा साहिबखाननइ गंधार थकीअ तेडावीआ । अतिमंडाण गुरुराज हीरनइ जगगुरु बिरुद , देइ करी राखइ चतुर चोमास । संवत सोल एकतालए लाभ देइ जास(२) । ॥ ४५॥ सोत्कण्ठं सोत्कण्ठं लिखति लेख मनोहरं । पुन्यहर्ष गुरु हीरनइ विनइ पूर्वक सादरं सोत्कण्ठं सोत्कण्ठं ॥ ४६॥ सकलदेश तणु विभूषण देश श्रीगुजरात ।। थंभनपास अलंकरी त्रंबावती विख्यातरी सोत्कंठं (२) ॥ ४७|| श्रीविजयसेनसूरि आदेसइ तिहां थकी करजोडरी । सस्नेहं सोल्लासं स्वकीयमान मोड री सोत्कंठं(२) ॥ ४८।। सानन्दं सप्रमोदं विकसितवर कपोलरी । रोमकूप समुल्लसंतं चकित लोचन लोल री सोत्कंठ(२) ॥ ४९।। प्रफुल्लित वदनारविंदं भूनिहितोत्तमांगरी । संयोजितशयभालपट्टे वामनीभूत अंगरी सोत्कंठं द्वादशाव्र(व)तवंनेनाभिवंद्य निजाशयं । विज्ञपयति विधिसहितं शिष्याणुकनिरामयं सोत्कंठं(२) ॥ ५१॥ यथाकृत्यं निर्वहंति सुखसमाधि अछि तिहां । श्रीतातपद प्रसादथी अवधारयो गुरुजी तिहां सोत्कंठं (२)।। ५२।। श्रीगुरुहीरजी तुम्हताणी चाउद भुवन मझार । ।। ५०।। Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 57 कीरति कमला विस्तरी उजवल अति उदार श्री गुरु हीरजी तुम्ह तणो महिमा मेरु समान ! ठाम ठाम गवाईइ सप्तस्वर बंधान राग- सिधू उगडी श्रीहीरविजयसूरीश्वरु जगगुरु तपगच्छराय । अनंत गुण गुरु तुम्हतणा मइ लिख्या नवि जाय रे प्रभु तुम्ह गुण घणा राग हृदय नवि माय रे 1 जागति प्रेरइ बहु कहो हवाइ कोण उपाय रे || प्रभु तुम्ह गुण घणा मइ लिख्या नवि जाय रे । प्रभु तुम्ह गउ घणा गंगा नदी वेलुकणा जो को गणीअ सकंति । तो हइ हीरजी तुम्हतणा तो हइ जगगुरु तुम्हतणा । गुणगणी न सकंति रे प्र० सकल समुद्रना बिन्दुआ जो को गणीअ सकंति । तो हर हीरजी तुम्हतणा तो कइ जगगुरु तुम्हतणा ॥ गुण गणी न सकंति रे प्र० गगन तारा ज्ञानी विना जो को, गणीअ संकति । तो हइ हीरजी तुम्हतणा तो हइ जगगुरु तुम्हतणा ॥ गुण गणी न सकंति रे प्र० चउदराज परमाणुआ जो. को, गणीअ सकंति । तो हइ हीरजी तुम्हतणा तो हइ जगगुरु तुम्हतणा ॥ गुण गणी न सकंति रे प्र० जलधि निज भुजा दंडई जो को तरी संकति । तो हइ हीरजी तुम्हतणा तो हइ जगगुरु तुम्हतणा ॥ गुण गणी न सकंति रे प्र० ॥ ५३॥ ॥ ५४॥ ॥ ५५॥ ५६॥ ॥ ५७॥ ॥ ५८॥ ॥ ५९॥ ॥ ६० ॥ ।। ६१ ।। Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . 8 मेरुगिरि शिखर उपरि जो पंगुअ चढीअ सकंति । तो हइ हीरजी तुम्हतणा तो हइ जगगुरु तुम्हतणा ॥ गुण गणी न सकंति रे प्र० ॥६२।। तरल तरुफल भूमिषु वामणो ग्रही जो सकंति । तो हइ हीरजी तुम्हतणा तो हइ जगगुरु तुम्हतणा ॥ गुण गणी न सकंति रे प्र० ।। ६३।। निज खंधई आरोहणं तुम्ह गुण गणना गुरुराज मंदबुद्धि हुं हुंसी गुण गणवा हुओ आज रे । प्रभु० ॥६४॥ गुरुजी तुम्ह गुण मीठडा मइ बोल्या नवि जाय । गुंगइ खाधी खंड जिम रस हृदय जणाय रे । प्रभु० ॥६५॥ राग धन्यासी दूहा समुद्र दोत मेरुलेखनी गगन कागल कराय । लिखई बृहस्पति तुम्ह गुण तो हइ लिख्या नवि जाय ॥६६।। श्री गुरु हीरजी तुम्ह तणी उपम आवि सोइ । भमतां महीमंडलमांहि मइ नवि दीठो कोइ ।। ६७॥ राग-आसाउरी मोहनमूरति पर उपगारी जुगप्रधान अवतार । सकलसुरासुर नरनारीनइ भवजलपार उतारई ॥६८॥ रे हीरजी । अनन्त गुण भंडार ताहरा गुम तणो नहीं पार । तुं तु टालइ सिथलाचार तुं तु पालइ सुद्ध आचारे हीरजी अनन्त गुण भंडार । जग गु० ॥६९।। सुगुण गुणमणि रोहण भूधर प्रणमित पद भूपाल । तपगच्छभारधुराधुरंधर षट्जीवनगोपाल रे हीरजी० ॥ ७०।। मकलकलाकमला वो प्रभु उपसमरम भंगार । Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 59 ।। ७२ ।। चतुर चातुरी रंजित जनतासुविहित साधु सिंगार रे हीरजी० ॥ ७१ ॥ भविक कमल वन खंड विकासन कमल बन्धु समान । दूरदूरिततिमिरभर टालइ गालइ मोहना मान रे हीरजी ० कामसुभट तइ हठ करी मार्यो क्रोध कीयो चकचूर । मायावेली अनमूलन उलट्य वंल्लोल कल्लोल जलपूर रे हीरजी० ॥ ७३ ॥ प्रसन्नहृदय करुणानु सिन्धु, बन्धुर जलधिगंभीर । वादि मानमतंगजकेसरी मेरुमहीधर धीर रे हीरजी० ।। ७४ ।। सेवक जन चिन्तामणि सगवड समीहित दान दात (ता) र 1 हणि कलियुग गुरु तुं अवतरिओ श्रीगौतम गणधार रे हीरजी० ॥ ७५ ॥ श्रीविजt दानसूरीश्वर पाटइं उदयो अविचल भाण । कर जोडी चतुर्विध श्रीसंघ मानइ तुम्ह तणी आण रे हीरजी० ॥ ७६ ॥ राग गोडी दूहा हीरजी तुम्हगुण वेलडी विस्तरी भुवनभरपूर । तारामिस समान फूली फल तिहां चंद्रनइ सू ॥ ७७ ॥ धन ते श्रावक-श्राविका जे तुम्ह सुणइ वखाण । धन जे निरखई तुम्ह मुख ग्रह उगमतई भाण ॥ ७८ ॥ परिमल तुम्ह गुण केतकी मन मोहन हो त्रिभुवन भुवन मझार । लाल मनमोहन हो मनमोहन हो श्रीहीरविजयलाल । मनमोहन हो सज्जननिज मस्तक वहइ म० । तुम्ह गुणकुसुम उदार लाल० ॥ ७९ ॥ पंडित जन कंठई वहइ म० । जगगुरु तुम्ह गुणमाल लाल० । इन्द्राणी राइ रम म० । मेरुकानन रसाल० लाल० ॥ ८०॥ Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तुम्ह गुण गायवा हउ म० । सहस वदन शेषनाग लाल० । सहसलोचन इन्द्रई धर्या म० । जोवा गुण धरी राग लाल० ॥ ८१॥ जग सघलु ए धोलिउं म० । तुम्ह गुणे गुरुराज लाल० । पण कुमति मुख श्यामिका म० । हजी लगइ नहि गई आज लाल० ॥ ८२।। तुम्ह गुणा दरिओ उलट्य म० । प्लाव्या कुमति लोक लाल० । तुम्ह गुण रविकर विकसतइ म० । जाये भविक को(लो)क अशोका लाल० ॥ ८३।। स्याहि अकब्बर रंजिउ म० । गाइ तुम्ह गुणगान लाल० । सभामंडल बइठो सदा म० । सुणतइं मलिक उरखान लाल०| ८४|| अइ गुरु गुण तुम्ह तणा म० । लिखतां नावइ पार लाल० । तुम्ह गुण समुद्र मांहि झीलतां म० । देह निर्मल निरधार लाल० ॥ ८५॥ साह कुंरा कुलमंडणो म० । नाथी उदर राजहंस लाल० । नयर पाल्हणपुर अवतर्यो म० । उद्योत कियो उसबंसा लाल० ॥८६॥ सकल भट्टारक सिरधणी मनमोहन हो । अनोपम उपम अनंत । तेण करी तुम्हे भर्या(म०) जिम जल सरिदाकंत लाल० ॥ ८७॥ राग धन्यासी दूहा अथ निज सरीर परिकर सुख-समाधि समाचार । मोकलवा स्वशिय॑नि वलता श्री गणधार तुम्ह हस्ताक्षर पत्रिका दीठइ मन विकसति । मोकलवी ते कारणइ सेवकनी करी चिंता ।। ८९॥ ॥ ८८॥ Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ढाल श्री हीरविजयसूरी अकमना । पुण्यहर्षनी वंदना । वंदना अवधारज्यो गच्छपतिले ॥ ९ ॥ श्री विजयसेनसूरीश्वरु । तुम्ह पाटि उदयो दिनकरु । दिनकरु भविक जननइ सुखकरु ए ॥ ९१।। श्रीसकलचन्द्र वाचकवर श्रीधर्मसागर गुण आगर । आगर सागर सकल शास्त्र तणु मे ॥ ९२।। वाचक राजकल्याणजी जस नामइ होइ कल्याणजी । (कल्याणजी) मोहनवेली कन्दलु मे ॥ ९३।। पंडितश्री विद्याविमल रिंष श्रीरीडो निर्मल । निर्मल चारित्र पाल इण युगई ओ ॥ ९४॥ भोजहर्ष गणी लाभहर्ष निजबांधवगणि रत्नहर्ष । रत्नहर्ष सिद्धहर्ष ते हर्षतु ओ ॥ ९५॥ परमहर्ष आदई देइ गुज्जरमध्ये जे केइ ।। जे केइ मुनिवर वंदन वीनवइ ओ 1॥ ९६॥ प्रेमविजय वइरागी अ विशेष थकी पाय लागीअ __ पाय लागीअ श्री गुरुनइ कइइ वंदना ओ ॥ ९७।। श्रीगुरुनइ पासइ सोहइ श्रीविमलहर्ष ज मन मोहइ । मनमोहइ दीवाणदीपक श्रीशांतिजीओ ॥ ९८॥ श्रीसोमविजय समता भर्यो श्रीधनविजय उद्योत कर्यो । उद्योत कर्यो कलियुग जिनसासन तणु मे ॥ ९९।। लब्धिवंत श्रीलाभजी प्रमुख मुनिवर जेअ जी । जेअ जी श्रीगुरुचरण तलइ रहइ ॥१०० वंदना अनुवंदना बावन चंदन समवयना । समवयना जणावज्यो ते माहरी ॥ १०॥ Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिष्य सरिखं काजजी प्रसाद करयो गुरुराजजी। . गुरुराजजी शिष्य उपरि मया करीओ ॥१०॥ वंदन गुज्जर संघनी अवधारवी ते सहूअनी। बालगोपालतणी प्रभु ओ ।। १०३।। दूहा सकलसंध गुजरातिर्नु उह्मायो दर्शनकाज श्रीगुरुहीरजी तुम्ह तणई मुकी निज निज काज ॥ १०४॥ हीरविजइ सूरीस परमगुरु वाल्हा आवोनइ गुजरांति रे हवइ आवो नइ गुजराति रे, मोहन आवो नइ गुजराति रे, जगगुरु आवो नइ गुजराति रे, स्युं मोह्या तेणई देसडइ इहां समरइ संघ दिनरात्तिरे, तुम्हने समरइ जसंगजी दिनराति रे हीर० || १०५॥ समरइ जीम गयंद विंध्याचल विरहणी जिम भरतार रे चकवी जिम चकवानइ समरइ कोकिला जिम सहकार रे - हीर० ॥ १०६॥ मोर घनाघननइ जिम समरइ जिम सतीअ सीताराम रे समरइ जिम चकोर निसाकर दमयंती नल नाम रे हीर० ॥ १०७॥ जिम समरइ मानसरोवर हंसा भमरा जिम मकरंद रे चिदानन्दपदनइ जिम समरे लयलीनो जोगिंद रे हीर० ॥ १०८॥ माता जिम बालकनि समरि चंदन वन भोअंग रे बाछरुनि गो जिम समरे तापस निर्मल गंग रे हीर० ॥ १०९॥ जुआरी जिम सरिदाने धन रहीत हेम हेम रे बलदेव जिम समरि हरिनि राजीमती जिम नेमरे हीर० ॥ ११०॥ नलनी जिम समरि दिनकरनि श्री गौतम वीर वीर रे पुण्यवंत जिम समरि पुण्यनि तीम ईहा एक हीर हीर रे हीरः ॥ १११॥ Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 63 ॥ ११२ ॥ ।। ११३॥ बिसत ऊठत हीडता करि एक तुम्ह तणु ध्यान रे जपमालीइं एक हीर हीर इति जपि लोक अभीधान रे हीर० हृदिभ्यंतर तुम्ह गुण लखीआ तुम्हसु अधीक सनेह रे वाट जोय जन तुम्ह तणी जिम बापीहा मेह रे हीर० चटपटी लागी तुम्ह गुरु विरहि तुम्ह विन काइ न सुहाय रे डुंगर घेणा पंथ वेगलो कहो कीम करी य मेलाय रे ॥। ११४।। मोहन मुरत तुमतणी गुरु जोवा अलजइ अंखं रे । मन जाणि उडी मला सुकरीय नहीं पंख रे हीर० गुरजी घणु तुम्हे रह्या गुजराति कां वीसारी तेह रे । खि एक बोल्या हइजे साथि न विसारी सजन जन दे रे हीर० ॥ ११६ ॥ ॥ ११५ ॥ गुरजी मनमाहि अमे जाणता तुझे सरक सुकूमाल रे । तीहा गये अवडु कीम कीधु कठपणु दयार रे । हीर० ॥ ११७ ॥ संघतणी अवि चंत करीनि पधारखं जुहारवा देवरे । मन मनोरथ फलइ सहुना जिम करता तु पद सेव रे हीर० ॥ ११८ ॥ मनमांहि संदेसा भरीया ते कहसा अकांत रे । हवइ विहला पधारज्यो श्री तपगच्छपती अकांत रे । हीर० ॥ ११९॥ अधकी ओछी विनती लखाणी होय क्रीपाल रे । खमजयो गुरु गीरुआ अछो तुझइ बाल तणी ए आल रे हीर० 'दूहा विधु स्वामीमुख संवति वेद तनु आवास वर्षे चैत्रीपुर्णमा लेख लख्यो सोल्लास पूज्याराध्य भट्टारक श्रीहीरविजयसूरीस ॥ १२०॥ ॥ १२१ ॥ Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 64 चरणकमलानामेयं फतेपुर लेख आसीस राग गुडन्यासी विहलो तु जाओ भाइ दुत दुत नयर फतेपुर, जिहा छे गुरु माहरो हीरजी अ पडखे खीणु मत एक एक पंथ विचइ कीहां देखी नवनव कौतकां अ जाए अवछीन पयाण प्रयाणे मनमाहि रषे आणे तु परिश्रमपण अ दीजे गुरुजीने लेख लेख व्याच्यांनंतर करे, पाओ लागी विनती अ आखडी अभीग्रहा अनेक अनेक गुज्जर संघनि गुरुदरीसण उपरवणां अ करो कीपा महंत माहंत जगगुरुहीरजी अबीग्रहा ते पोहो चढीयओ पधारो प्रभु गुजराति गुजराति लाभ घणो होसि मनवंछीत अतिमोटकाओ कोई कहेछि एम एम पत्रीष्ठा करावीय ॥ १२२॥ ।। १२३ ।। ॥ १२४॥ ॥ १२५॥ ॥ १२६ ॥ ॥। १२७ ।। ॥ १२८॥ जो आवी गुरु हीरजीओ खरचाइव अनंत अनंत केई बोलि इम जो आवी० चोथाव्रततणी नांद नांद मडावा रंगसुं जो आवी० मालारोपण उपधान उपधान वहिय भावस्युं, ॥ १३३॥ जो आवि माहरो हीरजीओ बारव्रतना पोसा पोसा समक्यत उंचरीइ जो आवि गुरु० ॥ १३४ ॥ जो आवि गुरुराज राज देई ओलंभा करी बहुं बाड्णां ॥ १२९ ॥ ॥ १३०॥ ॥ १३१ ॥ ॥ १३२॥ ॥ १३५॥ Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अई गुरु तुह्मतणी प्रित प्रित मोह्या अकबरि लघु सेवक विसारीयाले ।। १३६॥ एक नही उत्यम रित रित प्रित करी पहलु देखाडि छे हो पछि ॥१३७॥ खिर निरनी प्रित प्रित तेहवी उत्यमनी गोपंथ सरखी अवरनीओ ॥१३८॥ धुतारा ते देसना लोक लोक भोलवीया तुह्मनि लाभ देखाडी अति घणाओ ॥१३९॥ अम्हे गुजराति लोक लोक भोला भद्रक कुडकपट कई नवी वेयाओ ॥१४०।। खमावे पछी तु दूत दूत पाए लागी गुरुनि अदीकु ओछु ए बोलीय ओ ॥ १४॥ वीनवे वडो वजीर धनविजयगणि जे छे गुरुनि मानीतो ओ || १४२॥ दीजे दूत अरदास अरदास हमाउनंदन स्याही अकबर निजई में ॥ १४३॥ कियावंत गुजरात गुजरात भेजो गुरुजनि उहि देसते तुम्ह तणो मे ॥१४४॥ वहलो तु आवे दूत दूत तेडी श्री गुरुनि दान देसा तुहुंनि घणु मे ॥ १४५।। देसा सोवननी जीह जीह मुगट वर रयणन नवलखो हार गलातणो मे ॥ १४६।। धनकनकनी कोड कोड देसा तुहनि दूतपणु ताहारु टालसा मे ॥ १४७|| Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 66 राग-धन्यासी सुगुण सलूणा हीरजीरे जामज्यो तपगच्छराय नेहागारा माणसाजीहो घडी वरसा सो थाय रे पूज्यजी पधारीय ॥१४८॥ लागो लागो तुमस्युं हम रागो रे कि जुओ जुओ तुमेतो नीरागो रे कि कहो कहो एह व्रतातो रे कुण आगल कहा ॥ १४९ ॥ रयणी विहाय झबकता दीवस दोहेलो रे जाय । नेहांगारु माणसा जीहो घडी वारसा सो थाय रे पूज्य० ॥ १५०॥ भूखतरस सव वीसरी रे लागो एक तुमसु तान । मन ते महारु तुम कनि जी हो काया ईहा छि सुजाण रे पूज्य० ॥ १५१ ॥ मन ते माहारि तु वस्यो रे जगगुरु अवर न कोय आकधतुरा ठाम ठाम पण भमरा मचकंदि जोय रे पूज्य० ॥ १५२ ॥ एकपखो सनेहडो रे का सरज्यो करतार एकनि मन ते दोहिलु रे जीहो एक मन नहीय लगार रे पूज्य०।। १५३॥ नेहागार माणसा रे झूरी झूरी पंजर होइ नस्नेहा भलाते बापडा जीहो पोसीजे आपणी काय रे पूज्य० ॥ १५४॥ केहा देउं उलंभडारे नीटर विधाता रे तोह का सरज्योति माणसारे लईए वडो अतिघणो मोह रे पूज्य० ॥ १५५॥ सरजनहार सरजीयो रे का माणसो देह सरज्यो तो भली सरजीयो लाईका सरज्यो वली नेह रे पूज्य० ॥ १५६ ॥ संदेसि ओलगडी रे होसि हम दयाल अम्रत सम तुम्ह वय (ण) डा रे श्रवणि सुणीय रसाल रे पूज्य० ॥ १५७॥ तुम्ह मुख चंद्र नीहालवा रे वाछि नयण चकोर थोडि लख्य घणु जाणज्यो जीहो तुमे छो चतुर चकोर रे पूज्य ० ॥ १५८ ॥ अकबर भूप प्रतिबोधीयो रे प्रतिबोधी रे मेवात जगगुरु वाहाला हीरजीरे हवइ आवोनि गुजरात रे पूज्य० ॥ १५९ ॥ Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राग-धन्यासी आज लेख लख्यो आज लेख लख्यो त्रंबावती नयरीथि पून्यहर्षि सकलसंघ मन हरख्यो आज लेख लख्यो आज लेख लख्यो॥१६०।। नीज नीज मंद्यरथी चली आइ बहुत जनि सो नरख्यो श्रीविजयसेनसूरी गछपतीइं मोहन नयन करी परख्यो आज० // 161 / / लिखत लेख दुत चलयो देई अतीव बहु सीख्यो / सुभसुकन होव तीपंथ चालत देती सुहव आसीध्यो आज० // 162 / / अनुक्रमि जाई दियो जगगुरुकु कउत करीसो देख्यो कुरणा रस मन कीयो आवन कु बाची सो सवी सीख्यो || आज० // 163 // (कळस) इय लखीतलेखो बहुवसेखो सजनजनमनरंजनो सुंदरवर्णो ललीतवर्णो दुर्जनजनमनगंजनो विविध अर्थो अती समर्थो मोकल्यो गुरु हीरनि आनंद दाता जगविख्याता मंगलकर्ण श्रीसंघनि // 164 // इतिश्री लेखशृंगार समाप्तः / गणि प्रवरगणि शिरोमणि गणि गजेन्द्र गणि श्रीरीडा शिशुरत्नहर्षगणिनालेखि . श्रीस्तम्भतीर्थे // श्रीरस्तु // कल्याणमस्तु / परोपकाराय //