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________________ 64 चरणकमलानामेयं फतेपुर लेख आसीस राग गुडन्यासी विहलो तु जाओ भाइ दुत दुत नयर फतेपुर, जिहा छे गुरु माहरो हीरजी अ पडखे खीणु मत एक एक पंथ विचइ कीहां देखी नवनव कौतकां अ जाए अवछीन पयाण प्रयाणे मनमाहि रषे आणे तु परिश्रमपण अ दीजे गुरुजीने लेख लेख व्याच्यांनंतर करे, पाओ लागी विनती अ आखडी अभीग्रहा अनेक अनेक गुज्जर संघनि गुरुदरीसण उपरवणां अ करो कीपा महंत माहंत जगगुरुहीरजी अबीग्रहा ते पोहो चढीयओ पधारो प्रभु गुजराति गुजराति लाभ घणो होसि मनवंछीत अतिमोटकाओ कोई कहेछि एम एम पत्रीष्ठा करावीय Jain Education International ॥ १२२॥ For Private & Personal Use Only ।। १२३ ।। ॥ १२४॥ ॥ १२५॥ ॥ १२६ ॥ ॥। १२७ ।। ॥ १२८॥ जो आवी गुरु हीरजीओ खरचाइव अनंत अनंत केई बोलि इम जो आवी० चोथाव्रततणी नांद नांद मडावा रंगसुं जो आवी० मालारोपण उपधान उपधान वहिय भावस्युं, ॥ १३३॥ जो आवि माहरो हीरजीओ बारव्रतना पोसा पोसा समक्यत उंचरीइ जो आवि गुरु० ॥ १३४ ॥ जो आवि गुरुराज राज देई ओलंभा करी बहुं बाड्णां ॥ १२९ ॥ ॥ १३०॥ ॥ १३१ ॥ ॥ १३२॥ ॥ १३५॥ www.jainelibrary.org
SR No.229563
Book TitlePunyaharsh Rachit Lekh Shrungar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahabodhivijay
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages18
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size387 KB
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