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________________ 51 त्यारबाद गुजरातमा रहेला प्रमुख साधुओना नाम आपी तेओनी वंदना जणावी छे, साधे सूरिजी जोडे रहेला केटलाक साधुओना नाम लईने वंदना पाठवी छे. कडी १०४थी सूरिजीने गुजरात पधारवा माटे कवि करारी रह्यो छे. गुरुजीनो विरह सहन थतो नथी ते वात तेमणे भिन्नभिन्न द्रष्टांतो वडे जणावी छे, बच्चे बच्चे मीठा ओलंभाओ पण आप्या छे. 'त्यांना देशमां तमे केम आटला बधा मोहाइ गया छो ? अमे तो तमने सुकुमाळ स्वभावना जाणता हता, तमे तो त्यां जईने बहु कठण मनना थइ गया छो... वगेरे. ' १२२मी कडीमां आ पत्रनी पूर्णाहुति करीने पत्र दूतने फत्तेपुर पहोंचाडवा आपे छे. जता दूतने उभो राखीने कवि कहे छे आ पत्र जलदीथी सूरिजीने पहोंचाड साथे जणावजे के आपना दर्शन न थाय त्यां सुधी गुजरातमा केटलाय लोकोए अभिग्रहो लीधा छे. आप पधारो एटले घणा लोको घणी जातना सुकृतो करवाना मनोरथो सेवी रह्या छे. साथे ए कहेवानुं न भूलतो के अमे गुजरातना लोको भलाभोळा छीए. अमने कूड-कपट नथी आवडता. गुरुजी ! ए देशना धूतारा लोकोए आपने मोटा मोटा लाभो बतावीने भोळवी दीधा छे. छेले दूतने कहे छे तुं गुरुजीने जलदी थी गुजरात लइ आव. तो अहींना संघो तने सोनानी जीभ, रत्नना मुगट, अगणित धन वगेरे आपीने कायम माटे तारुं दूतपणं टाळी देशे. दूतने रवाना कर्या पछी गुरुजीनी स्मृति वधु ने वधु घेरी थता मनोमन जाणे सूरिजी साथे वातो करता होय तेवी कडीओ आवे छे. पत्र रवानो थइ गयो छे. थोडा दिवसमा गुरुजीने मळी जशे ए कल्पनाथी आनंदमां आवीने जाणे मोटेथी न बोलता होय तेवी हर्षभरी त्रण कडीओ छे. अंते पत्र जगद्गुरुने प्राप्त थइ गयो छे, तेओ श्रीमदेवांच्यो छे, अने हवे आववानुं मन करी रह्या छे तेवी वात छे. छेल्ले कळश आपीने आ कृतिनी समाप्ति करो छे. आखी कृति आह्लादक छे. गुरुना विरहमां शिष्यना हृदयमां थतो वलोपात छतो थाय छे. पुनः पुनः आस्वाद माणवा जेवी आ कृतिना कर्ताना चरणोमां भावभरी वंदना. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229563
Book TitlePunyaharsh Rachit Lekh Shrungar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahabodhivijay
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages18
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size387 KB
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